संरक्षित पशु के रूप में बाघों की घटती संख्या को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जा रही है और इसमें सुधार के लिए तमाम अभियान चलाए गए। लेकिन इस मसले पर कोई अच्छी खबर नहीं मिल पा रही थी। बाघों की तादाद पर आए नए आंकड़े से यह साबित होता है कि इस मोर्चे पर इतने सालों के दौरान जो कवायदें की गर्इं, उनका सकारात्मक हासिल अब सामने आया है। विश्व बाघ दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री ने 2018 में की गई गिनती के जो आंकड़े जारी किए हैं, उसे इस मोर्चे पर काफी उत्साहवर्धक कहा जा सकता है। वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में बाघों की संख्या इस साल दो हजार नौ सौ सड़सठ पाई गई है। यह 2014 में बाघों की कुल संख्या के मुकाबले सात सौ इकतालीस ज्यादा है। यानी पिछले करीब पांच सालों के दौरान बाघों की तादाद में तैंतीस फीसद या करीब एक तिहाई की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जाहिर है, बाघों की कम संख्या को देखते हुए इनके संरक्षण को लेकर जिस तरह की चिंता जताई जा रही थी, उस लिहाज से ताजा आंकड़े काफी राहत भरे हैं।

गौरतलब है कि 2006 में जब बाघों की संख्या महज एक हजार चार सौ ग्यारह तक सिमट गई थी, तब इसे एक गंभीर समस्या के रूप में देखा गया था। दुनिया भर में बाघों के संरक्षण को लेकर जिस तरह के अभियान चल रहे थे, उसमें यह भारत के लिए ज्यादा असहज स्थिति और चिंता की बात थी। लेकिन उसके बाद से ही बाघों के संरक्षण और उनकी संख्या में बढ़ोतरी के लिए अभयारण्यों के विस्तार से लेकर उनके अनुकूल माहौल बनाने के तमाम उपाय किए गए और इसी का हासिल है कि आज बाघों की तादाद में संतोषजनक बढ़ोतरी दर्ज हुई है। हालांकि इस बार बाघों की गणना के लिए अट्ठाईस मानकों का उपयोग किया गया। इनमें गिनती के लिए दायरे में विस्तार से लेकर सर्वे के आकार तक में वृद्धि की गई। इसके अलावा, 2014 में जहां डेढ़ साल और इससे ज्यादा उम्र के बाघों की गिनती की गई थी, वहीं इस बार इस सर्वे में एक साल के बाघों को भी शामिल किया गया। विशेषज्ञों के मुताबिक दुनिया भर में बाघों के लिए इतना बड़ा सर्वे किसी देश में नहीं होता है। पहले सर्वे का आकार अपेक्षया कम होता था और इसी मुताबिक गिनती पर भी इसका असर पड़ता था।

बहरहाल, इसमें कोई शक नहीं कि ताजा सर्वेक्षण बाघों की संख्या में अच्छी बढ़ोतरी की राहत भरी खबर देता है, लेकिन सच यह है कि अभी भी खतरा टला नहीं है। बाघों के पर्यावास वाले इलाकों में इंसानी आबादी के अलग-अलग तरीके से दखल की वजह से समस्या गहराती गई थी और यह चुनौती आज भी बनी हुई है। इसके अलावा, जिस सुंदरबन को बाघों के लिए सबसे मुफीद जगहों में से एक माना जाता रहा है, वहां भी बढ़ती समुद्री सतह की वजह से एक बड़े हिस्से के डूब जाने का संकट मंडरा रहा है। अगर यह स्थिति सामने आती है तो फिर बाघ मनुष्य के रिहाइश की ओर रुख कर सकते हैं। इसके बाद सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इंसान और बाघों के बीच कैसे टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। जाहिर है, ताजा उपलब्धि की गति बनाए रखने के लिए जरूरत इस बात की है कि बाघों के पर्यावास को निर्बाध बनाने के अलावा उनके संरक्षण के अन्य उपायों या विकल्पों पर भी काम किया जाए।