फ्रांस इस वक्त फुटबॉल विश्वकप की जीत के खुमार में डूबा है। पेरिस सहित देश के दूसरे शहरों में जश्न मनाते लोग और आइफिल टॉवर के आसपास हुई आतिशबाजी विश्वकप की जीत की खुशी बताने के लिए काफी है। विश्वकप के लिए फ्रांस दो दशक से इंतजार में था। इसलिए जैसे ही उसने क्रोएशिया को चार-दो से हराया, खेल देख रहे फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुअल मेकरॉन खुशी से झूम उठे। विश्वकप भले ही फ्रांस ने जीता हो, लेकिन क्रोएशिया ने भी फुटबॉल प्रेमियों को निराश नहीं किया, बल्कि जिस तरह से खेला, उसने लोगों का दिल जीत लिया। क्रोएशिया पहली बार फाइनल में पहुंचा, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। इसके साथ ही, फ्रांस के कोच डिडिएर डेशचैंप्स दुनिया के तीसरे ऐसे खिलाड़ी बन गए, जिन्होंने खिलाड़ी और कोच दोनों रूपों में विश्वकप जीतने का गौरव हासिल किया है। उनकी कप्तानी में 1998 में फ्रांस ने विश्वकप जीता था। इस बार का विश्वकप दिलचस्प तो रहा ही, चौंकाने वाला भी रहा। कई उलटफेर हो गए। जहां नए-नए खिलाड़ियों ने अपने को साबित करके स्थापित किया, वहीं दिग्गज देश सेमी-फाइनल तक भी नहीं पहुंच पाए।
फ्रांस की टीम में उन्नीस साल के एमबापे पहली बार विश्वकप में खेले और गोल करने की अपनी ताकत से सबको चौंका दिया। प्री-क्वार्टर फाइनल में एमबापे ने अर्जेंटीना के खिलाफ दो गोल ठोके थे। आने वाले वक्त में उनसे बड़ी उम्मीदें हैं। फ्रांस के ही एंटोनी ग्रीजमैन फ्री किक, कॉर्नर किक, पेनाल्टी और बेहतरीन पास देने में सबसे अच्छे साबित हुए और इस टूर्नामेंट में उन्होंने चार गोल दागे, फाइनल में पेनाल्टी पर भी गोल दागा। रूस के बाईस साल के एलेक्जेंडर गोलोविन ने भी अपनी प्रतिभा दिखाई और अब उन्हें दुनिया के कई बड़े क्लबों से प्रस्ताव मिल रहे हैं। इंग्लैंड के बाईस साल के मिडफील्डर डेले अली भी भविष्य के सुपरस्टार के रूप में देखे जा रहे हैं। मैक्सिको के बाईस साल के लोजानो ने जर्मनी के खिलाफ गोल दाग कर टीम को यादगार जीत दिलाई थी, जिसकी वजह से मैक्सिको नॉकआउट में पहुंचा। फुटबॉल के जिन बड़े दिग्गजों से उम्मीदें थीं, उनमें से ज्यादातर पहले ही धराशायी हो गए। यह मान कर चला जा रहा था कि अर्जेंटीना, पुर्तगाल, स्पेन, जर्मनी, ब्राजील में कोई तो सेमीफाइनल तक पहुंचेगा। पर ब्राजील को छोड़ कोई क्वार्टर फाइनल तक नहीं पहुंच पाया और क्वार्टर फाइनल में ब्राजील को बेल्जियम ने बाहर का रास्ता दिखा दिया।
विश्वकप का यह आयोजन दुनिया के सारे फुटबॉल प्रेमियों के लिए महाकुंभ से कम नहीं होता। हमारे यहां भले क्रिकेट का खुमार फुटबॉल से कहीं ज्यादा सिर चढ़कर बोलता है, लेकिन फुटबॉल प्रेमी भारत में भी कम नहीं हैं। ऐसे में मन में यह बात उठती है कि हम फुटबॉल जैसे विश्वकप आयोजन में क्यों नहीं पहुंच पाते। हकीकत यह है कि भारत में क्रिकेट जैसा खेल इतना हावी है कि दूसरे सारे खेल उसके आगे बौने बना दिए गए हैं। फुटबॉल के लिए जो बुनियादी सुविधाएं और प्रशिक्षण चाहिए, वह हमारे यहां है ही नहीं। ऐसे में इस खेल के प्रति जिनमें जज्बा अगर पैदा होता भी है, तो वह जल्द ही खत्म भी हो जाता है। एक वक्त था, जब भारतीय फुटबॉल टीम पूरे विश्व में न सही, लेकिन एशिया की सबसे अच्छी टीमों में से एक थी। हालांकि इधर पिछले तीन-चार साल में भारत में फुटबॉल को लेकर फिर से सुगबुगाहट पैदा हुई है। इसलिए भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान सुनील छेत्री की इस अपील पर गौर करना चाहिए कि ‘कृपया आओ और हमें समर्थन दो, हमें प्रोत्साहित करो, हमारी निंदा करो, हमारी आलोचना करो, लेकिन स्टेडियम में हमें खेलते समय देखने अवश्य आओ। भारत में फुटबॉल की जरूरत है।’