भारत के अमीर और ज्यादा अमीर होते जा रहे हैं, उनकी संपत्ति-रुपए पैसे में और इजाफा हो रहा है। यह खबर चौंकाने वाली नहीं है कि अमीर पहले के मुकाबले और बड़े धनपति हो रहे हैं। चिंताजनक तथ्य यह है कि गरीब की गरीबी दूर नहीं हो रही। गरीब और अमीर के बीच खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। स्विट्जरलैंड के शहर दावोस में विश्व आर्थिक मंच का सम्मेलन भी शुरू हो रहा है जिसमें दुनिया के प्रमुख नेता, उद्योगपति और अर्थशास्त्री समूचे विश्व की आर्थिक हालत और भविष्य की चुनौतियों पर चर्चा करेंगे। अमीरों की जमात का यह सम्मेलन हर साल इसी शहर में होता है और तभी पता भी लगता है कि दुनिया के अमीर-गरीब का हाल क्या है। इस सम्मेलन से ठीक पहले दुनिया से गरीबी दूर करने का बीड़ा उठाने वाले संगठन आॅक्सफेम ने अपनी रिपोर्ट जारी है। इस रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ कि भारत के नौ अमीरों के पास जितनी संपत्ति है वह देश की आधी आबादी के पास मौजूद कुल संपत्ति के बराबर है। ऐसे अध्ययनों के अपने कई मापदंड और तरीके होते हैं। इनसे जो नतीजे सामने आते हैं वे व्यापक स्तर पर बन रही तस्वीर को दिखाने के लिए पर्याप्त होते हैं। इसलिए इन नतीजों को खारिज नहीं किया जा सकता।

चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले साल भारत के अरबपतियों की संपत्ति में रोजाना बाईस अरब रुपए का इजाफा हुआ और एक फीसद अमीरों की संपत्ति तो साल भर के भीतर उनतालीस फीसद तक बढ़ गई और नौ अमीरों ने देश की आधी आबादी के पास मौजूद कुल संपत्ति के बराबर अपना खजाना भर लिया। दूसरी ओर गरीबों की संपत्ति का ग्राफ मात्र तीन फीसद बढ़ा। भारत में अमीरों की चांदी उस वक्त में हुई जब देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाली के संकेत दे रही है, औद्योगिक उत्पादन उत्साहवर्धक नहीं रहा, सरकारी और निजी क्षेत्र, दोनों में ही नौकरियां तेजी से खत्म की जा रही हैं और बेरोजगारों की फौज बढ़ती जा रही है। पिछले साल कई महीनों तक रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर पड़ा रहा, पेट्रोल-डीजल ने लोगों के पसीने छुड़ा दिए थे और देश का कृषि क्षेत्र और अन्नदाता किसान अपनी बदहाली पर आज भी रो रहा है। ऐसे में सवाल है कि अमीरों के इस बढ़ते खजाने पर किसको और क्यों खुश होना चाहिए!

भारत के समक्ष चुनौतियां गंभीर हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी और सार्वजनिक सेवाओं के मोर्चे पर सरकारें एकदम नाकाम रही हैं। देश में सरकारी चिकित्सा सुविधाओं की हालत दयनीय है। आबादी के अनुपात में पर्याप्त संख्या में न तो अस्पताल हैं, न चिकित्साकर्मी। यही हाल प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा का है। उच्च शिक्षा क्षेत्र इतना महंगा कर दिया गया है कि अब आम भारतीय परिवार बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के बारे में सोच भी नहीं सकता। यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि आने वाले वक्त में भारत के गरीब तबके की तस्वीर कैसी होगी। यह सोच कर खुश हुआ जा सकता है कि हम दुनिया की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर हैं, फ्रांस को पछाड़ चुके हैं और ब्रिटेन को पीछे छोड़ने वाले हैं, लेकिन इसके स्याह पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। समावेशी विकास हो या फिर मानव पूंजी सूचकांक, भारत अपने छोटे पड़ोसी देशों से भी पीछे है। दरअसल, भारत अब अमीरों की मुट्ठी में है। नीतियां अमीरों के लिए ही बन रही हैं और इनका असर भी साफ नजर आ रहा है। कर्ज पीकर मौज करने वालों की संख्या में इजाफा भी अमीरों की संख्या को बढ़ाता है। ऐसे में गरीबों की तादाद तो बढ़ेगी ही, लेकिन उनकी संपत्ति और ताकत घटेगी!