प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए नियमों व शर्तों को और ज्यादा नरम बना कर केंद्र सरकार ने जता दिया है कि वह आर्थिक सुधारों के प्रति कितनी प्रतिबद्ध और उत्साही है। सोमवार को सरकार ने जहां नागर विमानन, रक्षा व खाद्य प्रसंस्करण में सौ फीसद एफडीआइ की मंजूरी दे दी, वहीं सिंगल ब्रांड रिटेल, प्रसारण, दवा उद्योग, पशुपालन जैसे कई क्षेत्रों में एफडीआइ के नियम काफी ढीले कर दिए। सरकार के ताजा फैसले को रिजर्व बैंक के गवर्नर के तौर पर दूसरा कार्यकाल न लेने की रघुराम राजन की घोषणा के बाद उद्योग जगत की निराशा भरी प्रतिक्रियाओं के मद््देनजर भी देखा जा रहा है। कांग्रेस ने इसे रघुराम राजन के एलान के बाद घबराहट में उठाया गया कदम बताया है। इस पर वाणिज्यमंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि ऐसे कदम एकाएक नहीं उठाए जाते, बल्कि महीनों की तैयारियों का नतीजा होते हैं। जो हो, उद्योग जगत के प्रमुख संगठनों ने एफडीआइ संबंधी सरकार के ताजा फैसले का स्वागत किया है; उनकी राय में यह सरकार का सकारात्मक कदम तथा कारोबार सुगमता की दिशा में एक अहम मुकाम है।

मुंबई के शेयर बाजार ने भी अपने सूचकांक में बढ़ोतरी प्रदर्शित कर अपनी खुशी दर्ज कराई। सरकार के ताजा फैसले की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि इन एफडीआइ सुधारों के साथ ही भारत अब विश्व की सबसे खुली अर्थव्यवस्था बन गया है। विडंबना यह है कि विपक्ष में रहते हुए भाजपा रक्षा क्षेत्र में एफडीआइ के मामले में फूंक-फूंक कर कदम रखने की वकालत करती थी, बल्कि उसका ज्यादा जोर स्वदेशी रक्षा उत्पादन पर होता था। पर अब उसने रक्षा क्षेत्र में एफडीआइ के लिए अत्याधुनिक तकनीक की शर्त भी हटा ली है। इसलिए आलोचना के भी स्वर उठे हैं। मसलन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने सरकार पर घरेलू हितों तथा सुरक्षा संबंधी तकाजों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है, वहीं संघ सेजुड़े एक और संगठन ने इसे जनता के साथ विश्वासघात करार दिया है।

ये मतभेद बयानों तक सीमित रहेंगे, या कोई ज्यादा गंभीर शक्ल अख्तियार करेंगे, फिलहाल इस बारे में कुछ कहना मुश्किल है। पर एफडीआइ सुधारों के इस नए कदम की अहमियत जाहिर है। यह घोषणा ऐसे वक्त की गई है जब ऊंची विकास दर के आंकड़े आने के बावजूद निजी क्षेत्र नए निवेश में हिचक रहा है। उम्मीद की जा सकती है कि उसकी हिचक टूटेगी तथा एफडीआइ के नए प्रवाह से अर्थव्यवस्था में और तेजी आएगी। पर खोले गए सभी दरवाजे समान परिणाम देंगे, ऐसा नहीं कहा जा सकता। दरअसल, नियम व शर्तें कितने भी नरम कर दिए जाएं, विदेशी निवेशक उन्हीं क्षेत्रों में ज्यादा दिलचस्पी लेंगे जिनमें उन्हें ज्यादा व जल्दी मुनाफा बटोरने के अवसर दिखेंगे।

डीटीएच टीवी, खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में पिछले कुछ बरसों में उछाल आया है। इनमें पैसा लगाना जल्द कमाई के मौके दे सकता है। जबकि हवाई अड्डे के निर्माण जैसे काम में कमाई देर से शुरू होगी। अलबत्ता जिन विदेशी निवेशकों का अनुभव आधारभूत संरचना के क्षेत्र में ही होगा, वे जरूर इधर रुख कर सकते हैं। उदारता के साथ-साथ कई बार सरकार को नियंत्रण का भी कदम उठाना पड़ता है, या उससे ऐसी अपेक्षा की जाती है। मसलन, दवा उद्योग में एफडीआइ के नियम कितने भी ढीलें हो, लोग चाहते हैं कि सरकार दवाओं की कीमतों को एक हद से पार न जाने दे। एफडीआइ सुधारों तथा ऐसी अपेक्षाओं के बीच संतुलन बिठाना सरकार के सामने एक प्रमुख चुनौती होगी।