दिल्ली के आनंद विहार इलाके में दो कारों के बीच टक्कर और उसमें तीन लोगों की मौत की घटना लगातार सड़क हादसों की एक और कड़ी है। इस तरह की दुर्घटनाएं एक बड़ी समस्या बन चुकी हैं और रोजाना इनमें अनेक लोगों की जान जा रही है। बुधवार को आनंद विहार में एक फ्लाइओवर पर विपरीत दिशा से आ रही दो कारों की सीधी टक्कर सिर्फ इसलिए हो गई कि एक कार चालक ने सुरक्षित तरीके से गाड़ी चलाने के बजाय रफ्तार तेज रखी और संतुलन बिगड़ने के बाद बेलगाम होकर पहले डिवाइडर को तोड़ा, फिर सामने से आ रही एक कार से टकरा गया। टक्कर इतनी तेज थी कि दोनों कारों में तुरंत आग लग गई और उसमें तीन लोग जिंदा जल गए। उन कारों में मौजूद दो लोग झुलसी हालत में किसी तरह बाहर निकल सके। यह हादसा एक और उदाहरण है कि सड़क पर वाहन चलाने वाले किसी एक व्यक्ति की लापरवाही कैसे कई लोगों की जान ले लेती है और कई परिवारों को लाचार बना जाती है।

यह समझना मुश्किल है कि वाहन चलाते हुए लोगों को यह ध्यान रखना जरूरी क्यों नहीं लगता कि बेहद मामूली लापरवाही की वजह से अगर गाड़ी का संतुलन बिगड़ा तो न केवल दूसरों की, बल्कि खुद उनकी जान भी जा सकती है। लगता है, हमारे यहां ज्यादातर लोग सड़कों पर सिर्फ वाहन चलाना जानते हैं, सड़क-सुरक्षा से जुड़े नियम-कायदों का पालन करना उन्हें जरूरी नहीं लगता। जबकि ऐसी दुर्घटनाओं में से लगभग सभी में यही बात सामने आती है कि किसी खास वाहन के चालक ने नियमों को धता बता दिया था। यह बेवजह नहीं है कि देश भर में होने वाले सड़क हादसों में रोजाना सैकड़ों लोग मारे जाते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में हर साल सड़क हादसों में होने वाली मौतों का दसवां हिस्सा अकेले भारत का होता है। खुद भारत सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि 2015 में देश भर में पांच लाख से ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिसमें करीब डेढ़ लाख लोगों की जान चली गई।

यह आंकड़ा इसलिए चिंताजनक है कि इतने लोग आपदाओं, आतंकवादी हमलों या फिर अन्य संघर्षों में भी नहीं मारे जाते। फर्क यह है कि आतंकी हमलों जैसी घटनाओं में मारे गए लोगों की गिनती होती है, लेकिन हादसों में जान गंवाने वालों के आंकड़े हमें परेशान नहीं करते। जबकि सड़क हादसों में मारे जाने वालों में ज्यादातर लोग कामकाजी होते हैं और उनमें ज्यादा संख्या युवाओं की होती है। यानी ये हादसे न केवल बड़ी तादाद में जनक्षति की वजह बनते हैं, बल्कि इनसे देश की अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान होता है। विधि आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर सड़क दुर्घटना के एक घंटे के भीतर घायलों को अस्पताल पहुंचा दिया जाए या उन्हें आपात चिकित्सा मिल जाए तो करीब पचास फीसद की जान बचाई जा सकती है। लेकिन एक बड़ी समस्या यह भी है कि बहुत सारे लोगों की जान इसलिए भी चली जाती है कि हादसे के बाद अगर कोई व्यक्ति बुरी तरह घायल अवस्था में होता है तो उसे समय रहते आपात चिकित्सा की सुविधा नहीं मिल पाती। सड़क सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाले तंत्र से लेकर लोगों की अपने स्तर पर सुरक्षित वाहन चलाने को लेकर जागरूकता की भूमिका जब तक सक्रिय नहीं होगी, तब तक ऐसी घटनाएं देश के लिए बड़े नुकसान की वजह बनती रहेंगी।