रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने नीतिगत दरों में कमी कर इस बात का संकेत दिया है कि महंगाई अब काबू में है, मुश्किलों का दौर खत्म हो रहा है और अर्थव्यवस्था के लिए आने वाले दिन अच्छे होंगे। मौद्रिक नीति समिति की तीन दिन तक चली बैठक के आखिरी दिन इस बात के संकेत आने लगे थे कि इस बार महंगाई काबू में रहने के कारण केंद्रीय बैंक लचीला रुख अपनाएगा और नीतिगत दरों में कमी करेगा। केंद्रीय बैंक ने अब रेपो और रिवर्स रेपो दर में एक चौथाई फीसद की कमी कर दी है। रिजर्व बैंक के इस फैसले का लंबे समय से इंतजार था। कर्ज सस्ता या महंगा होने का गणित इसी पर टिका होता है और इसका सीधा और पहला असर उन उपभोक्ताओं पर पड़ता है जिन्होंने घर, गाड़ी, शिक्षा जैसी जरूरतों के लिए अपने बैंक से कर्ज लिया है या जो लोग इस इंतजार में रहते हैं कि कब कर्ज सस्ता हो और वे घर और गाड़ी खरीदने की योजना बनाएं।
रिजर्व बैंक की नीतिगत दरों के अनुरूप ही व्यावसायिक बैंक अपने कर्ज और सावधि जमाओं की ब्याज दरें तय करते हैं। इसलिए अब यह तय है कि व्यावसायिक बैंक भी कर्ज की दरें घटाएंगे, इससे कर्ज सस्ता होगा और बैंकों से कर्ज लेने वाले उपभोक्ताओं की मांग तेजी से बढ़ेगी। इसका सीधा और तात्कालिक असर वाहन बाजार और रियल एस्टेट बाजार पर पड़ेगा। लंबे समय से रियल एस्टेट बाजार में मंदी छाई हुई है और घर खरीदने वाले सस्ते कर्ज के इंतजार में थे। अगर रियल एस्टेट और वाहन बाजार उठता है तो इससे जुड़े अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों में भी तेजी का रास्ता बनेगा। हालांकि सावधि जमाओं पर ब्याज में कटौती निराश कर सकती है। मौद्रिक नीति समिति की यह बैठक पहली बार नए गवर्नर की अगुआई में हुई है। छह में से चार सदस्य नीतिगत दरों को कम करने के पक्ष में थे। दो सदस्यों का कहना था कि इसे स्थिर बनाए रखने की जरूरत है। इससे यह संकेत मिलता है कि नए गवर्नर ने तटस्थ रुख अपनाना बेहतर समझा है। यह इस बात का भी संकेत माना जा सकता है कि आने वाले वक्त में रेपो दर और कम की जा सकती है। अभी तक केंद्रीय बैंक महंगाई के जोखिम के मद्देनजर सख्त रुख अपनाए हुए था। लेकिन डेढ़ साल में पहली बार ऐसा हुआ है जब पिछले साल दिसंबर में मुद्रास्फीति सबसे कम (2.2 फीसद) रही और नीतिगत दरें कम करने का रास्ता साफ हुआ।
रिजर्व बैंक का अनुमान है कि अब महंगाई परेशान नहीं करेगी और इस वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में महंगाई दर 2.8 फीसद रहेगी। अगर ऐसा रहा तो रिजर्व बैंक नीतिगत दरों को नीचे ला सकता है। लेकिन बाद के महीनों में महंगाई दर बढ़ने का जोखिम बरकार है। इसीलिए मौद्रिक समिति ने साफ तौर पर कहा है कि सब्जियों और तेल की कीमत, स्वास्थ्य और शिक्षा महंगी होने, वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव और मानूसन को लेकर सतर्क रहने की भी जरूरत है। रिजर्व बैंक को अभी उम्मीद है कि अंतरिम बजट में कर रियायतों और किसानों के लिए जो घोषणाएं हुई हैं उनसे बाजार में मांग बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था पर इसका अच्छा असर दिखेगा। पिछले साल केंद्रीय बैंक ने जून और अगस्त में रेपो दर बढ़ाई थी। बैंक को यह सख्त कदम इसलिए उठाना पड़ा था कि महंगाई का ग्राफ तेजी से ऊपर जाने का खतरा बना हुआ था। ऐसे में लंबे समय बाद नीतिगत दरों में कटौती उपभोक्ताओं को राहत देने वाली होगी।