देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक ने जो बड़े कदम उठाए हैं, वे उद्योग जगत के लिए बड़ी राहत साबित हो सकते हैं। सरकार की प्राथमिकता कोरोना महामारी से निपटने के साथ ही अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की भी है। पूर्णबंदी के दौरान देशभर में आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ जाने से गंभीर संकट खड़ा हो गया है। छोटे-बड़े सभी उद्योग बंद हैं और लाखों मजदूर अपने-अपने घरों को पलायन कर गए हैं। हालांकि सरकार ने कुछ क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां शुरू करने के लिए कदम उठाए हैं। पर अभी कारोबारियों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत पैसे की है। हाथ में पैसा हो तो काम शुरू हो। इसलिए केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट तो स्थिर रखा है, लेकिन रिवर्स रेपो दर में एक चौथाई यानी 0.25 फीसद की कमी कर दी है। इस कवायद का मकसद यही है कि बैंक अपनी नगदी रिजर्व बैंक के पास रखने के बजाय उस पैसे को उद्योगों को दें। जब तक छोटे और मझोले उद्योगों के पास पैसा नहीं होगा, तो उत्पादन शुरू होगा कैसे?
इसके अलावा, केंद्रीय बैंक ने राज्यों को भी बड़ी राहत देते हुए अग्रिम की सीमा तीस फीसद से बढ़ा कर साठ फीसद कर दी है, जो तीस सितंबर तक जारी रहेगी। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के सामने भी गंभीर आर्थिक संकट है, वित्तीय संसाधनों का बड़ा हिस्सा कोरोना से निपटने में जा रहा है। राज्यों के अपने खर्चे हैं, जिसमें सबसे बड़ा खर्च और उत्तरदायित्व कर्मचारियों के वेतन से जुड़ा है। ऐसे में राज्यों को फिलहाल आर्थिक संकट से बचाने के लिए यह अहम कदम है। दूसरा बड़ा कदम यह है कि उद्योगों और कंपनियों के लिए फंसे हुए कर्ज की गणना अब तीन के बजाय छह महीने में की जाएगी। इसमें बैंकों और एनबीएफसी के कर्जदारों शामिल किया गया है। केंद्रीय बैंक ने पिछले दिनों में एक लाख करोड़ से ज्यादा की नगदी बाजार में डाली है। अब आने वाले दिनों में अलग-अलग चरणों में अर्थतंत्र में पचास हजार करोड़ रुपए और डालेगा। इसमें पच्चीस हजार करोड़ रुपए नाबार्ड को, पंद्रह हजार करोड़ सिडबी को और दस हजार करोड़ रुपए राष्ट्रीय आवास बैंक को दिए जाएंगे और ये वित्तीय संस्थान कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र, छोटे उद्योगों, आवास वित्त कंपनियों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और सूक्ष्म वित्त संस्थानों को लंबी अवधि के कर्ज देंगे।
सरकार और केंद्रीय बैंक का इस वक्त सारा जोर इस बात पर है कि किसी तरह उन उद्योगों को चालू किया जाए, जो रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़े सामान का उत्पादन करते हैं। इस समय बड़ा संकट मजदूरों की उपलब्धता का भी खड़ा हो गया है। कृषि और उद्योगों दोनों पर ही इसका असर पड़ रहा है। अगर उद्योग चालू होंगे तो मजदूरों के लौटने की उम्मीद बनेगी। केंद्रीय बैंक ने साफ कर दिया है कि जैसे-जैसे जरूरत होगी, वह ऐसे कदम उठाता रहेगा। हालांकि राज्य सरकारें केंद्र सरकार के समक्ष जीएसटी के मद में अपने बकाए की मांग पहले ही कर चुकी हैं। लेकिन मुश्किल यह है कि केंद्र सरकार लंबे समय से जीएसटी संग्रह के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रही है। यह समस्या अभी बढ़ेगी। जाहिर है, केंद्र और राज्य सरकारें आर्थिक दबाव में हैं। ऐसे में आर्थिक नफे-नुकसान की परवाह किए बिना पहली प्राथमिकता कृषि और उद्योग को तात्कालिक राहत पहुंचाने की होनी चाहिए। व्यावसायिक बैंकों को भी इसमें थोड़ी उदारता बरतनी होगी।
