जैसा कि तय था, लंदन से स्वदेश लौटते ही पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनकी बेटी मरियम को गिरफ्तार कर लिया गया। नौ दिन पहले उन्हें पाकिस्तान की जवाबदेही अदालत ने भ्रष्टाचार के एक मामले में दस साल की सजा सुनाई थी। साथ ही, इसी मामले में मरियम को भी सात साल की सजा सुनाई गई थी। नवाज के खिलाफ भ्रष्टाचार का यह कोई पहला मामला नहीं है, न वह पहली बार जेल गए हैं। अपने सैंतीस साल के राजनीतिक सफर में उन्होंने अपनी सरकार का सेना द्वारा तख्तापलट और जेल से लेकर निर्वासन तक, कई बड़े उतार-चढ़ाव देखे हैं। पर इसके पहले वे हर झंझावात से देर-सबेर निकल आए, चुनाव जीता और तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। क्या वे नई मुसीबत से भी उबर जाएंगे? इस बारे में फिलहाल कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन लंदन से पाकिस्तान आने पर जिस तरह उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उनका जोरदार स्वागत और उन्हें जेल भेजे जाने के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया, वह इसी ओर संकेत करता है कि नवाज और मरियम के जेल जाने के साथ यह अध्याय बंद नहीं हुआ है, बल्कि राजनीतिक स्तर पर इसमें अभी बहुत-से नए पन्ने जुड़ने हैं।
अपनी बेहद बीमार बीवी को लंदन में अल्लाह के सहारे छोड़ मुल्क और आने वाली पीढ़ियों की खातिर लौटने और कुर्बानी देने की बात कह कर नवाज ने सहानुभूति और समर्थन बटोरने की भरपूर कोशिश की है। नई संसद के लिए पच्चीस जुलाई को होने जा रहे मतदान में इसका कितना फायदा नवाज की पार्टी यानी पाकिस्तान मुसलिम लीग (नवाज) को मिलेगा, यह तो बाद में पता चलेगा, पर इतना तय है कि जेल भेज दिए जाने के बावजूद नवाज शरीफ ही फिलहाल पाकिस्तान की सियासत के केंद्र में हैं। यों खुद को बेदाग साबित करने के लिए उनके पास कोई ठोस दलील नहीं है; देश से बाहर अवैध रूप से संपत्ति जमा करने के सबूतों को वे कैसे झुठला सकते हैं? पर पाकिस्तान के वह एकमात्र राजनेता नहीं हैं जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। इस तरह के और भी नाम हैं।
लिहाजा, पाकिस्तान में एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिन्हें यह सवाल चुभता है कि अकेले नवाज को ही जेल क्यों? कहीं इसके पीछे यह वजह तो नहीं कि वे फौज के दबदबे के खिलाफ बोलते रहे हैं? पर भ्रष्टाचार के मामलों में चुनिंदा ढंग से कार्रवाई अकेले पाकिस्तान की कहानी नहीं है। शरीफ के मौजूदा संकट की शुरुआत अप्रैल 2016 में हुई, जब पनामा पेपर्स कांड का खुलासा हुआ। कोई साल भर पहले वहां की सर्वोच्च अदालत ने शरीफ को पद के अयोग्य ठहरा दिया और उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा। फिर, इस साल के शुरू में अदालत ने यह भी साफ कर दिया कि उन पर लगी पाबंदी ताजिंदगी है यानी अब वे कभी भी चुनाव नहीं लड़ सकते। शायद इसी के मद््देनजर उन्होंने अपनी बेटी मरियम को सियासी वारिस घोषित किया था। पर अब मरियम भी जेल में हैं और पार्टी की अगुआई का सारा दारोमदार शरीफ के छोटे भाई शाहबाज शरीफ पर है। संकट से निजात पाने के लिए नवाज शरीफ के सामने जो कानूनी विकल्प हो सकते थे वे चुक गए हैं। अब उनकी सारी उम्मीद इस पर टिकी है कि संसदीय चुनाव में उनकी पार्टी को कितनी सीटें मिलती हैं।