हवाई सेवाओं में निजी कंपनियों को इसलिए प्रवेश दिया गया था कि उससे प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी, कीमतें कम होंगी और उसका लाभ उपभोक्ताओं को मिलेगा। ऐसा हुआ भी। अनेक निजी कंपनियों ने अपनी हवाई सेवाएं शुरू कीं और प्रतिस्पर्द्धी दर पर सेवाएं देने की उनमें होड़ लग गई। छोटे शहरों के लिए भी हवाई उड़ानों की बारंबारता बढ़ गई। कई कंपनियां कम भीड़भाड़ वाले मौसम में पहले टिकट खरीदने पर सौ दो सौ रुपए में भी सफर कराने की योजनाएं पेश करती देखी जाने लगीं।

इसका असर यह हुआ कि लंबी दूरी का सफर करने वाले लोगों ने रेल के बजाय हवाई यात्रा का रुख कर लिया। हवाई जहाजों में भी अच्छी-खासी भीड़भाड़ दिखाई देने लगी। क्योंकि रेलें एक तो समय अधिक लगाती हैं और उनमें भी अच्छी गाड़ियों के प्रथम श्रेणी का टिकट हवाई जहाजों के आसपास ही पहुंच गया है। हवाई जहाज से बेशक कुछ अधिक पैसा लगता है, पर समय काफी बच जाता है, इसलिए लोग हवाई यात्रा को प्राथमिकता देते देखे जाते हैं। मगर कोरोना की वजह से बंदी होने के कारण हवाई सेवाओं को काफी घाटा उठाना पड़ा। इसलिए जब बंदी हटी तो राहत देने के मकसद से सरकार ने उन्हें टिकट की दरों में कुछ बढ़ोतरी की इजाजत दे दी। अब हवाई टिकटों में दस से तीस फीसद की बढ़ोतरी हो गई है।

पूर्णबंदी हटने के बाद जब हवाई सेवाएं शुरू हुईं, तो विमानन कंपनियों ने पहले खुद टिकट की दरें तय करना शुरू कर दिया था, जिससे मुसाफिरों की जेब पर भारी बोझ पड़ रहा था। उसे लेकर विवाद शुरू हुआ तो उड्डयन मंत्रालय ने उसमें दखल देते हुए कहा कि टिकटों की दरें विमानन कंपनियां खुद नहीं, बल्कि सरकार तय करेगी। इस तरह उसमें इस बात का ध्यान रखा गया कि कोरोना संक्रमण के बचाव के मद्देनजर दूरी और सुरक्षा इंतजामों आदि को देखते हुए दरें इस तरह बढ़ाई जाएं कि मुसाफिरों की जेब पर अधिक बोझ न पड़े और विमानन कंपनियों को भी नुकसान न हो।

फिलहाल पहले की तरह पूरी हवाई सेवाएं शुरू नहीं हो पाई हैं, इसलिए विमानन कंपनियों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता। ऐसे में टिकट की दरों में बढ़ोतरी स्वाभाविक थी। अच्छी बात है कि उड्डयन मंत्रालय ने इसमें दखल देते हुए दरों को तार्किक बनाए रखने का प्रयास किया। फिलहाल बढ़ी हुई दरें भी चालू वित्तवर्ष के अंत तक ही लागू रहेंगी। उम्मीद है, आगे स्थितियां अनुकूल होने और आवाजाही सुगम होने पर ये दरें घटाई भी जा सकती हैं।

यह सही है कि सार्वजनिक यातायात, रेल और हवाई सेवाएं महंगी होती हैं तो उसका असर उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों पर भी पड़ता है। यों ईंधन की बढ़ी कीमतों के अनुपात में टिकटों की कीमत बढ़ाने की मांग होती रहती है, पर सरकार उसे इसीलिए संतुलित रखने का प्रयास करती है कि महंगाई पर काबू पाया जा सके। इस वक्त महंगाई पर काबू पाना कठिन है, फिर भी हवाई सेवाओं के खर्च को देखते हुए उन पर अपनी दरें नीचे रखने का दबाव नहीं बनाया जा सकता।

इसलिए सरकार ने दूरी के हिसाब से टिकट दरों की सात श्रेणियां तय की हैं और विमानन कंपनियों को निर्देश है कि वे अपने अधिकतर टिकटों की बिक्री इन्हीं श्रेणियं के अंदर रखेंगी। मार्च के बाद अगर कोरोना संक्रमण पर काबू पा लिया जाता है और पहले की तरह हवाई सेवाएं चल सकेंगी, तो निस्संदेह इन बढ़ी हुई दरों के भी नीचे आने का रास्ता साफ होगा।