रिजर्व बैंक के गवर्नर पद से इस्तीफा देने का उर्जित पटेल का फैसला चौंकाने वाला इसलिए नहीं है, क्योंकि पिछले छह महीने से सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच कई मसलों पर टकराव चल रहा था। सरकार केंद्रीय बैंक से जिन फैसलों और कदमों की उम्मीद कर रही थी, उन्हें एक तरह से रिजर्व बैंक के अधिकार क्षेत्र में बढ़ता दखल माना जा रहा था। पिछले महीने रिजर्व बैंक के बोर्ड की बैठक में जिस तरह से सरकार हावी रही, उसे केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता पर एक तरह का हमला माना गया। हालांकि इस तरह के विवादों की नींव नोटबंदी के फैसले के वक्त ही पड़ चुकी थी, पर तब चीजें खुल कर सामने नहीं आई थीं। पिछले कुछ समय से इस बात के स्पष्ट संकेत मिलने लगे थे कि बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था के लिए केंद्रीय बैंक जिन कठोर कदमों के पक्ष में हैं, वे सरकार को अनुकूल प्रतीत नहीं हो रहे। ऐसे में जो हालात बन गए थे, उनमें निश्चित तौर पर किसी भी गवर्नर के लिए काम करना आसान नहीं होता। पर उर्जित पटेल ने धैर्य, संयम और विवेक का परिचय दिया। उनके इस्तीफे से इतना तो साफ है कि वे अब और दबाव में आने की स्थिति में नहीं थे।
रिजर्व बैंक देश की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा नियामक है। इसलिए उसके काम और स्वायत्तता में दखल के नतीजे गंभीर होते हैं। इस साल जुलाई में सरकार ने रिजर्व बैंक पर इस बात के लिए दबाव डाला था कि वह छोटे और मझोले उद्योगों को कर्ज देने के मामले में ढील दे, लेकिन केंद्रीय बैंक ने डूबते कर्ज की वजह से व्यावसायिक बैंकों पर उद्योगों को कर्ज देने के मामले में सख्ती कर दी थी। तब सरकार को लगा कि दखल दिया जाना चाहिए और उसने आरबीआइ अधिनियम की धारा-7 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करने तक की चेतावनी दे डाली थी। इसके अलावा सरकार केंद्रीय बैंक के रिजर्व कोष से भारी रकम की मांग कर रही थी, जिसे बैंक देने के पक्ष में नहीं था। इन बातों से विवाद गंभीर रूप लेता गया। तभी से ऐसी खबरें आने लगी थीं कि रिजर्व बैंक के गवर्नर सरकारी दखल से इतने आहत हैं कि इस्तीफा भी दे सकते हैं। ऐसी स्थिति इससे पहले कभी नहीं आई थी।
पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई अहम मुद्दे रहे जिन्हें लेकर सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच खींचतान चलती रही। एनपीए के मसले पर रिजर्व बैंक सख्ती के पक्ष में था, पर सरकार इसके खिलाफ थी। सरकार चाहती थी कि बिजली कंपनियों की मदद के लिए मानकों में बदलाव किया जाए, लेकिन रिजर्व बैंक किसी रियायत के पक्ष में नहीं रहा। सरकार चाहती है एक स्वतंत्र भुगतान नियामक बोर्ड बनाना, लेकिन रिजर्व बैंक पर इसे अपने नियंत्रण रखना चाहता है। वित्तीय समाधान एवं जमा बीमा विधेयक-2017, आर्थिक पूंजी ढांचा, सरकारी और निजी बैंकों को लेकर नियामकीय अधिकारों की मांग जैसे कई मुद्दे हैं, जिन पर सरकार और रिजर्व बैंक के बीच रस्साकशी चल रही है। पटेल सरकार से केंद्रीय बैंक को और अधिकार दिए जाने की मांग करते रहे थे, ताकि बैंकिंग क्षेत्र की समस्याओं से निपटा जा सके। उन्होंने कृषि कर्ज माफी का भी खुल कर विरोध किया था। पिछले महीने रिजर्व बैंक बोर्ड की बैठक से लगा था कि सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच गतिरोध अब दूर हो चुके हैं। लेकिन लगता नहीं है कि सब कुछ ठीक हो गया है। उर्जित पटेल का इस्तीफा रिजर्व बैंक की साख के लिए भी चुनौती है।
