उत्तर प्रदेश में संभल जिले के रजपुरा गांव में सामूहिक बलात्कार के बाद महिला को जिंदा जला देने की जो घटना सामने आई है, उससे साफ है कि राज्य में बेलगाम अपराधियों में शायद पुलिस और कानून का कोई खौफ नहीं है। इस घटना में महिला को अकेली पाकर पांच अपराधियों ने उसके घर में घुस कर सामूहिक बलात्कार किया और किसी को न बताने की धमकी देकर चले गए। इसके बाद महिला ने मदद के खयाल से पुलिस को फोन लगाया, लेकिन वहां किसी ने फोन नहीं उठाया। तब उसने अपने चचेरे भाई को फोन पर ही सारी बात बताई। लेकिन उसी गांव में रहने वाले अपराधियों का मनोबल इस कदर बढ़ा हुआ था कि वे सब दोबारा महिला के घर लौटे और उसे घसीटते हुए पास के मंदिर में ले गए, फिर वहां यज्ञशाला में जिंदा जला दिया। इस समूचे घटनाक्रम में अपराधियों ने जिस कदर बेखौफ होकर यह सब किया, आखिर उसके क्या कारण हो सकते हैं? यह तथ्य भी सामने आया है कि आरोपी पिछले कुछ महीने से महिला को परेशान कर रहे थे। आखिर क्यों वे इस बात से निश्चिंत थे कि गांव में उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता और पुलिस या कानून की कीमत उनके लिए कुछ नहीं है? कहीं भी कानून-व्यवस्था के संतोषजनक स्थिति में होने की कसौटी क्या होती है?
दिल दहला देने वाली इस बर्बर घटना में पुलिस के उस दावे की हकीकत भी सामने आई, जिसमें वह अकसर हमेशा सजग होने और अपराधियों के खिलाफ अभियान चलाने के दावे करती है। पीड़ित महिला की ओर से मदद के लिए पुलिस को किए गए फोन को सुनने वाला कोई नहीं था तो यह किस तरह की महिला-सुरक्षा का इंतजाम है? पुलिस महकमा इसके लिए एक-दो पुलिसकर्मियों को जिम्मेदार मान कर उनके खिलाफ कोई औपचारिक कार्रवाई कर देगा। लेकिन क्या यह सच नहीं है कि अगर उस महिला का फोन सुन लिया गया होता, तो संभव है कि समय पर उसके लिए कोई मदद पहुंच जाती और कम से कम उसकी जान बच जाती? एक ओर सरकार लगातार ये दावे कर रही है कि महिलाओं की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा, दूसरी ओर स्थिति यह है कि महिलाएं अपने घर में ही सुरक्षित नहीं हैं और कई बार पुलिस की लापरवाही की वजह से उन्हें समय पर मदद भी नहीं मिल पाती।
हाल में आए एक आंकड़े के मुताबिक पिछले दो सालों के मुकाबले इस साल सिर्फ जनवरी से मार्च के बीच महिलाओं के खिलाफ अपराधों में चौबीस फीसद की बढ़ोतरी हुई है। राज्य में रोज औसतन आठ महिलाओं का बलात्कार होता है और तीस महिलाओं का अपहरण कर लिया जाता है। हत्या के मामले में स्थिति इसी तरह चिंताजनक है। सवाल है कि प्रदेश सरकार कानून-व्यवस्था को ठीक कर देने के जो दावे करती रही है, उनका आखिर क्या हुआ? राज्य में अपराधी बेलगाम हैं। जेलें अपराध का गढ़ बन गई हैं। हालत यह है कि राज्य में अपराधों की बिगड़ती स्थिति के मसले पर राज्यपाल तक नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। दुनिया को बताने के लिए राज्य सरकार के पास मुठभेड़ में मारे गए अपराधियों के आंकड़े हैं। लेकिन अगर सरकार इसे अपनी कामयाबी के रूप में पेश करती भी है तो यह समझना मुश्किल है कि अपराधियों के खिलाफ इस कथित सख्त अभियान के बावजूद अपराधों के ग्राफ में तेजी से बढ़ोतरी क्यों हुई है!