विमान सेवा के क्षेत्र में निश्चय ही यह सरकार की महत्त्वाकांक्षी पहल है। हमारे देश में अब भी हवाई सफर करने वाले लोग दो फीसद से अधिक नहीं हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि यहां अधिकांश आबादी की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह विमान यात्रा का खर्च उठा सके। करोड़ों लोग होंगे, जिन्होंने जिंदगी में एक बार भी हवाई सफर का अनुभव नहीं किया होगा। पर लोगों की आर्थिक स्थिति के अलावा, विमान सेवा का दायरा सिमटे रहने का एक कारण कारोबारी भी रहा है।
ज्यादातर कंपनियां अधिक कमाई वाले चुनिंदा हवाई मार्गों पर ही अपनी सेवाएं देना पसंद करती हैं। इन हवाई मार्गों पर खूब व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा नजर आती है, जबकि देश के अन्य हिस्सों के लिए उनमें पर्याप्त दिलचस्पी नहीं दिखती। लिहाजा, नई उड्डयन नीति का जोर दो बातों पर है। एक यह कि हवाई यात्रा को जहां तक हो सके, कम खर्चीला बनाया जाए। इस प्रकार नई नीति में मध्यवर्ग के अधिक से अधिक हिस्से को विमान सेवा की तरफ आकर्षित करने का प्रयास दिखता है। थोड़ा किफायती बनाने के साथ ही नई नीति का जोर क्षेत्रीय हवाई संपर्क-सुविधा बढ़ाने पर भी है।
दरअसल, ये दोनों पहलू एक दूसरे के पूरक हैं। विमान सेवा को अपेक्षया कम खर्चीला बनाने की कवायद में सरकार ने यह इरादा जताया है कि दो गैर-महानगरों के बीच एक घंटे की उड़ान का किराया ढाई हजार रुपए से ज्यादा नहीं होगा। क्षेत्रीय हवाई संपर्क सुविधा बढ़ाने के मकसद से तीन सौ बंद पड़े हवाई अड्डे फिर से शुरू किए जाएंगे। इन्हें उपयोग लायक बनाने के लिए इनमें से हरेक पर औसतन पचास करोड़ रुपए सरकार लगाएगी। ढांचागत सुधार और विस्तार का खर्च जुटाने के मकसद से नई नीति के मसविदे में हवाई टिकट पर दो फीसद उप-कर लगाने का प्रस्ताव है।
एटीएफ यानी विमान र्इंधन महंगा होने की सूरत में सरकार ने मुसाफिरों पर बोझ न पड़ने देने और मदद के लिए आगे आने का भरोसा दिलाया है। इस आश्वासन की अहमियत इसलिए है कि इस साल अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में आई कमी से जो राहत है, जरूरी नहीं कि वह आगे भी बनी रहे। मदद का अस्सी फीसद खर्च केंद्र और बीस फीसद राज्य उठाएंगे। क्षेत्रीय उड़ान के लिए एटीएफ पर सीमाशुल्क नहीं लगेगा। क्षेत्रीय सेवा को कम आवाजाही वाले इलाकों में भी उड़ान भरनी होगी। पर देखना है कि एक तरफ उप-कर और दूसरी तरफ हवाई किराए की प्रतिघंटे अधिकतम सीमा तय करने का समीकरण सरकार कैसे बिठाएगी। विमानन क्षेत्र में तेजी लाने के मकसद से सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआइ की सीमा बढ़ाने की संभावना के भी संकेत दिए हैं।
फिलहाल इस क्षेत्र में एफडीआइ की अधिकतम सीमा उनचास फीसद है। अगर मुक्त आकाश नीति लागू होने की स्थिति में एफडीआइ की सीमा पचास फीसद से अधिक करने की इजाजत दी जाती है, जैसा कि प्रस्ताव है, तो विदेशी विमानन कंपनियां भारत के लिए और यहां से बाहरी स्थानों के लिए असीमित संख्या में उड़ानों का परिचालन कर सकेंगी। नई नीति के मसविदे को मंत्रालय ने फिलहाल विचार-विमर्श के लिए पेश किया है ताकि इस पर सभी हितधारकों और नागरिकों के भी सुझाव आ सकें। अनुमान लगाया जा सकता है कि इस नीति का मोटे तौर पर स्वागत ही होगा।
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