जमीन के नीचे का जलभंडार पेयजल और सिंचाई का प्रमुख स्रोत रहा है, पर देश के ज्यादातर हिस्सों में यह भंडार तेजी से खाली होता जा रहा है। दूसरे, जल मुख्य रूप से राज्यों का विषय है, इसलिए राज्यों के सहयोग के बगैर इस मामले में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया जा सकता। इन दोनों बातों के मद््देनजर केंद्र को भूजल की बाबत एक मॉडल बिल तैयार करने की जरूरत महसूस हुई। मॉडल बिल में भूजल के नियमन के अलावा वर्षाजल संचयन का प्रावधान भी शामिल है। इसका मसविदा सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को भेजा गया। करीब आधे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने मॉडल बिल का अनुसरण करते हुए अपना कानून बना लिया है, वहीं बाकी राज्यों को यह काम अभी पूरा करना है। लेकिन कानून बनाने से बड़ा काम है उसे प्रभावकारी तरीके से लागू करना।

भूजल के मामले में तो यह और भी कठिन है, क्योंकि इसमें लोगों की पुरानी आदतों और जड़ जमा चुकी मानसिकता से जूझना होगा। इसलिए बड़े पैमाने पर जन-जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। यों तो देश के अधिकतर इलाकों में आम लोग अपने अनुभवों से जानते हैं कि पानी की समस्या कैसे और गहराती जा रही है; भूजल स्तर दिनोंदिन और नीचे गिरता जा रहा है। लेकिन इस समस्या पर कैसे काबू पाया जा सकता है इसकी कोई योजना उनके सामने नहीं है। स्वच्छ भारत अभियान में भी अभी तक यह आयाम नदारद रहा है, जबकि अनियंत्रित दोहन के साथ-साथ भूजल से जुड़ी एक बड़ी समस्या उसकी विषाक्तता की है, जो कि लगातार बढ़ती जा रही है। एक ताजा अध्ययन के मुताबिक देश के चार सौ से अधिक जिलों में भूजल लगातार जहरीला होता जा रहा है; इन इलाकों के भूजल में आयरन, सीसा, नाइट्रेट, आर्सेनिक, कैडमियम, फ्लोराइड, क्रोमियम जैसे खतरनाक रसायन पाए गए हैं। इन रसायनों की मात्रा बढ़ती जा रही है और कई बीमारियों के फैलने का सबब बन रही है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल ढाई करोड़ से ज्यादा लोग फ्लोराइड तथा जल विषाक्तता से होने वाली अन्य बीमारियों के शिकार होते हैं; प्रदूषित पानी के कारण हर साल लाखों बच्चे मौत के मुंह में चले जाते हैं। भारत में स्वास्थ्य पर सरकारी बजट यों ही काफी कम रहता है। ऐसे में यह और भी जरूरी है कि बीमारियों से निपटने पर खर्च करने के बजाय पानी के प्रबंधन पर ज्यादा ध्यान दिया जाए। इसका अर्थ है कि ऐसे सारे उपाय करने होंगे कि खतरनाक रसायन भूजल में न मिलें। अभी तो हालत यह है कि नालों से लेकर कारखानों के जहरीले अपशिष्ट तक जल-स्रोतों में जाकर मिलते रहते हैं और किसी पर कोई कार्रवाई नहीं होती। भूजल को प्रदूषित होने से रोकने के साथ ही उसे बचाने का भी जतन करना होगा। उसके दोहन की हद बांधनी होगी। नगर नियोजन का ऐसा ढांचा विकसित करना होगा कि उसमें वर्षा से प्राप्त होने वाले पानी को जमीन के भीतर जज्ब होने देने का इंतजाम शामिल हो। भूजल के बेलगाम दोहन का एक बड़ा कारण कृषि की वर्तमान प्रणाली है जिसमें पानी की बहुत ज्यादा जरूरत पड़ती है। इसलिए खेती तथा सिंचाई के ऐसे तरीके अपनाने व विकसित करने होंगे जिनमें पानी की कम खपत हो। अगर ये जमीनी काम नहीं किए गए, तो भूजल संबंधी कानून एक कागजी कवायद होकर रह जाएगा।