न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे देश में बच्चियों के साथ बढ़ रही दरिंदगी भयावह और चिंतानजक है। मंगलवार को पश्चिमी दिल्ली के बाबा हरिदासनगर में जिस तरह एक स्कूली वैन के चालक ने नर्सरी की चार वर्षीय छात्रा के साथ दुष्कृत्य किया है, उसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। पुलिस ने अट्ठाईस साल के आरोपी वाहन चालक को गिरफ्तार कर लिया है और बच्ची को अस्पताल में भर्ती करा दिया है। जरूरी है कि अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा मिले। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति जयहिंद ने पीड़िता और उसके परिवार से मिलकर यथासंभव मदद देने का आश्वासन दिया है। लेकिन यह सब कार्यवाही तो अपराध होने के बाद की खानापूरी ही होती है। असल सवाल है कि अगर दिल्ली जैसे महानगर में, जो देश की राजधानी भी है और जहां आबादी के अनुपात में पुलिस बल की मौजूदगी देश के अन्य तमाम हिस्सों से ज्यादा है, वहां ऐसी घटनाएं क्यों घट रही हैं?

जिस बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ, वह इलाके के एक पब्लिक स्कूल में नर्सरी में पढ़ती है और दूसरे बच्चों के साथ निजी वाहन से आती-जाती है। घटना के दिन वैन चालक दूसरी बच्चियों को उनके घर उतारने के बाद इस बच्ची को अकेले लेकर जा रहा था। रास्ते में एक किलोमीटर का क्षेत्र सुनसान पड़ता है। उसने एकांत में वैन रोक कर बच्ची के साथ दुराचार किया। इसकी जानकारी बच्ची के परिजनों को तब हुई जब घर पहुंचने पर उसकी तबियत खराब हो गई। सवाल यह भी उठता है कि छोटी-छोटी बच्चियों को सिर्फ एक चालक के भरोसे छोड़ना कहां तक ठीक है? स्कूल प्रशासन की ओर से या परिजनों की तरफ से इस तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया गया कि बच्ची को अकेले चालक के साथ छोड़ना किसी भी तरह से निरापद नहीं है?

निर्भया कांड के बाद भी दिल्ली पुलिस बलात्कार को रोकने में पूरी तरह नाकाम रही है। जब घटनाएं घट जाती हैं और किसी तरह से वे प्रकाश में आती हैं तभी पुलिस की भागदौड़ शुरू होती है, नहीं तो वह लकीर की फकीर बनी रहती है। पिछले 17 जून को बिंदापुर में छह साल और 13 मई को कापसहेड़ा में सात साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ। इसके अलावा 5 सितंबर 2016 को द्वारका सेक्टर-23 में, 27 जून 2016 को पंजाबीबाग में, 8 जून को नजफगढ़ इलाके में तथा 16 मई 2016 को निहाल विहार में बच्चियों के साथ दुष्कर्म हुए। राजधानी में ऐसी घटनाओं का सिलसिला क्या जाहिर करता है? आखिर हम किस तरह के समाज में रह रहे हैं, या यह कैसा समाज बन रहा है? निर्भया कांड के बाद तो केंद्र सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए अलग से कोष की भी व्यवस्था की थी। दिल्ली पुलिस ने जन-जागरूकता अभियान भी चलाया। सभी वाहनों पर उनके मालिकों और चालकों के मोबाइल नंबर लिखाए गए थे। इसके बाद भी ऐसी घटनाएं नहीं रुक रही हैं तो ठहर कर दोबारा सोचने और नए तरीके से कार्ययोजना बनाने की जरूरत है।