दिल्ली में भूख की वजह से तीन बच्चियों की मौत ऐसी त्रासद घटना है, जिसके सामने विकास के तमाम दावों की पोल खुल जाती है। माना जाता है कि देश की राजधानी होने के नाते यहां की व्यवस्था ज्यादा प्रभावी तरीके से काम करती होगी। पर इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि यहीं से यह अफसोसनाक वाकया सामने आया है। गौरतलब है कि दिल्ली के मंडावली इलाके में एक ही परिवार की तीन बच्चियों की मौत हो गई। इसे शायद एक सामान्य घटना मान लिया जाता, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर हुआ कि मौत की वजह भूख है। उनके शरीर में अन्न का एक दाना भी नहीं मिला। आमतौर पर ऐसे मामले सामने आने पर भूख को एक वजह के रूप में स्वीकार करने से सरकार हिचकती है। शायद इसीलिए बच्चियों के शवों का दोबारा पोस्टमार्टम कराया गया। तब भी मौत का कारण भुखमरी ही सामने आया। अब प्रशासनिक स्तर पर मामले की जांच शुरू हो गई है, लेकिन दिल्ली में इन बच्चियों की मौत ने अपने पीछे कई सवाल छोड़ दिए हैं।

खबरों के मुताबिक बच्चियों का परिवार भयावह गरीबी में किसी तरह अपनी जिंदगी काट रहा था। कुछ दिन पहले उनके मकान मालिक ने बारिश के दौरान ही पूरे परिवार को घर से निकाल दिया था। एक दोस्त के घर में शरण मिली तो बच्चियों के पिता काम की तलाश में निकले और वापस नहीं आए थे। इस बीच किसी को पता नहीं चला कि तीनों बच्चियों ने कई दिन से कुछ भी नहीं खाया है। यह छोटी-सी तस्वीर बताने के लिए काफी है कि हम जिस व्यवस्था में रहते हैं, उसमें प्रशासन से लेकर समाज तक में संवेदनशीलता के लिए कितनी जगह बच गई है! जिस दिल्ली में सुदूर इलाकों के लोग जिंदगी बचाने और काम की आस में आते हैं, वहां अब रोजगार के हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। जनकल्याण की तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों के बावजूद सरकार की ओर से ऐसे इंतजाम अनुपस्थित दिखते हैं कि अगर कोई व्यक्ति या परिवार किन्हीं वजहों से भूखे रहने की नौबत में चला गया है, तो कम से कम पेट भर सकने लायक भोजन उसे मिल सके। देश में बाल कल्याण या संरक्षण समितियां काम कर रही हैं तो समाज में विषम स्थिति में रह रहे बच्चों की पहचान करने और उन्हें पोषण, पढ़ाई, सुरक्षा और समय पर मदद मुहैया कराने की जिम्मेदारी किसकी है?

यह बेवजह नहीं है कि वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत एक सौ उन्नीस देशों के बीच सौवें पायदान पर है और बांग्लादेश या उत्तर कोरिया जैसे देशों से भी पीछे है। जिस दौर में देश की अर्थव्यवस्था के फ्रांस से भी बेहतर हालत में होने की खबरें आ रही हैं, उसमें भूख से होने वाली मौतें बताती हैं कि आंकड़ों के आधार पर बताए जाने वाले विकास के दावों की हकीकत क्या है! इसके अलावा, तेजी से बदलते दौर में समाज धीरे-धीरे इस कदर संकुचित होता जा रहा है कि आसपास के लोगों से हालचाल तक पूछने की औपचारिकता गायब होती गई है। एक नागरिक अगर अपने स्तर और अपनी कोशिशों से सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के प्रति जानकारी हासिल नहीं करता, तो वह अपने अधिकारों तक से वंचित रह जाता है। जबकि किसी भी लोकतंत्र में यह सरकार की जिम्मेदारी है कि जनकल्याण से संबंधित कार्यक्रमों के बारे में वह जागरूकता फैलाए और जरूरतमंदों को उनका हक दिलाए।