ऊंची विकास दर के दावे के बरक्स भारत में बच्चों की मृत्यु दर भयावह है। जिन बीमारियों को पिछले तीन दशक से बच्चों की मौत के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना गया है, उनमें एक जापानी बुखार (जैपनीज इंसेफ्लाइटिस) भी है। यह बुखार लंबे समय से उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में हर साल बच्चों के लिए यमदूत बना हुआ है, लेकिन हाल में इसने ओड़िशा में भी कहर बरपाया है। दो महीने में ओड़िशा में अस्सी से अधिक बच्चों की मौत इस बुखार की वजह से हुई है। मलकानगिरी नामक जिला इससे ज्यादा प्रभावित है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने माना है कि फिलवक्त देश के 131 जिले इसके संक्रमण की चपेट में हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में जापानी बुखार के चलते 1980 से लेकर अब तक बारह हजार से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है।

यह आंकड़ा सिर्फ सरकारी अस्पतालों में हुई मौतों का है। ओड़िशा में हो रही बच्चों की मौतों पर केंद्र और राज्य सरकारों का रवैया ढीला-ढाला है। न तो राज्य सरकार बीमारों को चिकित्सा-सुविधा मुहैया करा पा रही है और न केंद्र की ओर से कोई ठीकठाक इमदाद मिल पा रही है। राज्य सरकार की लापरवाही का नतीजा यह है कि उसने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा इस बारे में जानकारी मांगे जाने के सात अक्तूबर के नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया है। आयोग ने बच्चों की मौतों के संदर्भ में जानना चाहा था कि वहां चिकित्सा के क्या उपाय किए जा रहे हैं।

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केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, उन्हें पहले से पता है कि यह बीमारी ऐसे मौसम में सिर उठाती है। फिर, प्रभावित इलाकों में समय रहते टीकाकरण आदि की समुचित व्यवस्था क्यों नहीं की जाती? एहतियाती उपाय और आपातकालीन इंतजाम क्यों नहीं किए जाते? और तो और, धड़ाधड़ हो रही मौतों के बावजूद ओड़िशा सरकार उदासीन नजर आती है। सही है कि अभी तक इस बीमारी का कोई कारगर इलाज नहीं खोजा जा सका है, लेकिन समय रहते यदि प्रभावित क्षेत्रों में टीकाकरण कर दिया जाए तो इसके पनपने की आशंका बहुत कम रहती है। यह रोग धान के खेतों में पनपने वाले मच्छरों (मुख्य रूप से क्यूलेक्स ट्रायटेनियरहिंच्स ग्रुप) के काटने से होता है। ये मच्छर जापानी इन्सेफलाइटिस वायरस से संक्रमित हो जाते हैं। उनसे यह पालतू सूअरों और जंगली पक्षियों में फैल जाता है। उनसे बच्चों में फैलता है। इसकी कोई विशेष चिकित्सा नहीं है। गहन चिकित्सा ही उपाय है। ऐसा इलाज बीमारों को नहीं मिल पाता। इसलिए मौत के मुंह में जाने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं होता।

लेकिन इस रोग के पनपने और भयावह होने के पीछे कुछ कारण और भी हैं। आमतौर पर यह ग्रामीण क्षेत्रों में फैलता है, जहां बड़ी आबादी वैसे ही विपन्न और साधनहीन होती है। राजनीतिक हलकों और सरकारों तक पहुंचाने के लिए उनके पास कोई ‘ऊंची आवाज’ भी नहीं होती। जापानी बुखार में मरनेवाले बच्चे महज एक आंकड़ा होकर रह जाते हैं। यही वजह है कि ओड़िशा में दो महीने के भीतर इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के मरने की घटना पर न कोई हंगामा हुआ न किसी के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठी। हो सकता है बाल अधिकार संरक्षण आयोग के दोबारा जवाब तलब करने से कोई फर्क पड़े।