जम्मू-कश्मीर को लेकर पिछले सवा साल के दौरान केंद्र सरकार ने जो महत्त्वपूर्ण फैसले किए हैं, वे प्रदेश के स्थायित्व और विकास को नई दिशा देने वाले साबित होंगे, इसमें अब कोई संशय नहीं रह गया है। केंद्र ने एक और बड़ा कदम उठाते हुए अब जम्मू-कश्मीर के भूमि कानून भी बदल डाले हैं। नए कानूनों के लागू होने से अब इस प्रदेश में देश का कोई भी नागरिक जमीन-जायदाद खरीद सकेगा और कारोबार कर सकेगा। अभी तक पुराने कानूनों की वजह से यह संभव नहीं था।
सिर्फ जम्मू-कश्मीर के स्थायी नागरिकों ही वहां जमीन खरीदने और कारोबार करने की छूट थी। यह एक ऐसी हैरानी भरी अड़चन थी जो हर भारतवासी को जम्मू-कश्मीर से अलग होने का अहसास कराती रहती थी। सवाल तो यह है कि जब कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है तो वहां के कायदे-कानून देश के बाकी राज्यों से अलग क्यों होने चाहिए, क्यों नहीं देश के हर नागरिक को वहां रहने और काम-धंधा करने का कानूनी अधिकार मिलना चाहिए।
लेकिन अब संशोधित भूमि कानूनों से दूसरे प्रदेशों की तरह कश्मीर के दरवाजे भी सबके लिए खुल गए हैं। कश्मीर में बसने के लिए वहां का स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र होने की अनिवार्यता भी खत्म कर दी गई है। आने वाले दिनों में सरकार के ये प्रयास रंग ला सकते हैं। इससे उद्योगपति राज्य में निवेश करने को प्रेरित होंगे, आर्थिक गतिविधियों को बल मिलेगा और रोजगार के अवसर भी बनेंगे।
पिछले कई दशकों से जम्मू-कश्मीर जिन संकटपूर्ण हालात से गुजरा है, उससे उबरने के लिए सबसे पहली जरूरत वहां आर्थिक विकास के रास्ते तैयार करने की है, ताकि नौजवानों को काम मिले और वे किसी के बहकावे में न आएं। भूमि कानूनों में संशोधन का केंद्र का यह फैसला महत्त्वपूर्ण इस मायने में है कि अब जम्मू-कश्मीर में जमीन के मालिकाना हक और विकास, वन भूमि, कृषि भूमि सुधार और जमीन आबंटन से संबंधित सभी कानूनों से ‘जम्मू-कश्मीर का स्थायी नागरिक’ शब्द हटा दिया गया है।
जम्मू-कश्मीर वन अधिनियम को खत्म कर उसे भारतीय वन अधिनियम कर दिया गया है। कश्मीर में स्थानीय लोगों के रोजगार का साधन पर्यटन, खेती व पशुपालन है। इसलिए इस बात का ध्यान रखा गया है कि खेती की जमीन सिर्फ किसान को ही बेची जाए। अगर राज्य में कृषि और कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा मिलता है तो इससे लोगों का जीवन बदल सकता है।
भूमि कानूनों में संशोधन के बाद कश्मीरी लोगों में यह डर बैठना स्वाभाविक है कि अगर दूसरे प्रदेशों के लोग वहां बसने लगेंगे तो इससे स्थानीय कश्मीरियों का रोजगार प्रभावित होगा। स्थानीय राजनीतिक दल भी इसे हवा दे रहे हैं। लेकिन यह डर निराधार है। देश के हर राज्य में दूसरे राज्यों के लोग काम-धंधा करते मिल जाएंगे और इससे आर्थिकी को बढ़ावा ही मिलता है।
अगर बाहर के लोग कश्मीर में उद्योग लगाते हैं तो स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बनेंगे। इस हकीकत से इंकार नहीं किया जा सकता कि जम्मू-कश्मीर के विकास में अनुच्छेद 370 एक बड़ी बाधा बना हुआ था। अगर इसे निष्प्रभावी नहीं किया जाता तो आज भूमि कानूनों में बदलाव संभव नहीं होता और भारत के लोग कश्मीर में बसने का सपना ही देखते रहते।
आजादी के बाद हर सरकार ने जम्मू-कश्मीर को लेकर जोखिम उठाने से परहेज किया और इसका नतीजा प्रदेश में आतंकवाद की जमती जड़ें और इससे हुई तबाही के रूप में देखने को मिला। जम्मू-कश्मीर को लेकर सरकार के दृढ़ संकल्प ने यह संदेश दिया है कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और इसके विकास के लिए अब कानूनों को बाधा नहीं बनने दिया जाएगा।