प्रधानमंत्री का अरुणाचल प्रदेश दौरा चीन को खटक गया है। उसने भारत के समक्ष राजनयिक आपत्ति दर्ज कराई कि अरुणाचल में इस तरह भारतीय नेताओं के दौरे से दोनों देशों के बीच चल रहे सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे मामले और उलझ सकते हैं।

अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है और वहां भारतीय नेताओं के दौरों को किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता। चीन के इस दावे को भारत ने खारिज कर दिया है। विदेश मंत्रालय ने फिर दोहराया है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अंग था, है और रहेगा। दरअसल, पिछले हफ्ते शनिवार को प्रधानमंत्री ने अरुणाचल प्रदेश में बनी सेला सुरंग राष्ट्र को समर्पित की।

असम के तेजपुर से अरुणाचल के तवांग को जोड़ने वाली यह सुरंग हर मौसम में आवागमन की सुविधा प्रदान करेगी। इससे सामरिक महत्त्व के तवांग इलाके तक हर मौसम में भारतीय सैनिकों की आवाजाही आसान हो जाएगी। करीब तेरह हजार फुट की ऊंचाई पर बनी इस सुरंग को दुनिया की सबसे लंबी सुरंग माना जा रहा है। जाहिर है, इससे चीन असहज हो उठा है। तवांग तक भारतीय सैनिकों की पहुंच आसान होने का अर्थ है, चीन को बड़ी सामरिक चुनौती।

चीन लंबे समय से अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत कहते हुए अपना क्षेत्र बताता रहा है। पिछले वर्ष जब उसने भारतीय क्षेत्र की कुछ जगहों को अपने नक्शे में दिखाते हुए उनके नाम बदल दिए थे, तो उनमें अरुणाचल प्रदेश भी शामिल था। चीन ने अरुणाचल का नाम बदल कर जैगनान रख दिया है। इस पर भारत ने उस वक्त भी सख्त नाराजगी जाहिर की थी।

कोई भी देश इस तरह किसी दूसरे देश के किसी हिस्से का नाम बदल कर उसे अपने नक्शे में शामिल कर ले, तो इससे अंतरराष्ट्रीय सीमा का कोई अर्थ ही नहीं रह जाएगा। भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर हुए समझौते के अनुसार अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है। वहां रहने वाले लोगों को बकायदा यहां की नागरिकता प्राप्त है। मगर चीन समय-समय पर यह जताने से बाज नहीं आता कि भारत ने अरुणाचल पर अवैध कब्जा कर रखा है। जबकि हर बार भारत ने उसके इस दावे का पुरजोर खंडन किया है। इस बार भी उसके दावे को निराधार बता कर खारिज कर दिया गया है।

वास्तविक नियंत्रण रेखा संबंधी समझौते को झुठलाने और वहां अस्थिरता पैदा करने की चीन की कोशिशें किसी से छिपी नहीं हैं। अक्सर उसके सैनिक सीमा पार कर भारत के अधिकार वाले हिस्से में आ जाते हैं। जब उन्हें चुनौती दी जाती है, तो वे लौट जाते रहे हैं। करीब चार वर्ष पहले उसके सैनिक गलवान घाटी में घुस कर भारतीय सैनिकों से गुत्थमगुत्था हो गए थे।

उस झड़प में दोनों तरफ के सैनिक शहीद हो गए। तबसे दोनों देशों के बीच रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं। हालांकि सीमा विवाद सुलझाने के लिए चीन के सैन्य अधिकारी बातचीत की मेज पर आते रहे हैं। यह दिखाने का प्रयास करते रहे हैं कि वे इस मुद्दे को लेकर गंभीर हैं, मगर हकीकत में यह मसला अभी तक उलझा हुआ है।

सीमा विवाद सुलझाने को लेकर चीन कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह भारत के हिस्से वाली कई जगहों के नाम बदल कर उन्हें अपना हिस्सा बताता रहा है। मगर भारत ने उसकी विस्तारवादी नीतियों को हर समय ठोस चुनौती दी है।