समय-समय पर भारतीय वैज्ञानिक अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाते रहे हैं। रविवार को एक बार फिर उत्साह बढ़ाने वाली खबर आई, जब आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में पूरी तरह स्वदेशी अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण के कुछ ही समय बाद इसरो यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने घोषणा की कि अभियान सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। स्वदेशी आरएलवी यानी पुन: प्रयोग किया जा सकने वाला यान पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में उपग्रहों को प्रक्षेपित करने और फिर वापस वायुमंडल में प्रवेश करने में सक्षम है। यह पहली बार है जब इसरो ने पंखों से लैस किसी यान का प्रक्षेपण किया है। यह लागत कम करने, विश्वसनीयता कायम रखने और मांग के मुताबिक अंतरिक्ष में पहुंच सुनिश्चित करने के मकसद से एक अहम पहल है। दरअसल, आरएलवी-टीडी प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन उन अभियानों की एक शृंखला है, जिन्हें अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की कोशिशों के क्रम में एक समग्र और पुन: प्रयोग के लायक यान ‘टू स्टेज टू आॅर्बिट’ को शुरू करने की दिशा में पहला कदम माना जाता है। जाहिर है, अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रमों के मामले में भारत ने अब जिस ओर कदम बढ़ाए हैं, उससे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिहाज से एक बेहतर भविष्य का संकेत मिलता है। ताजा प्रक्षेपण के बाद अगले चरणों में अगर फिर से इस्तेमाल में लाए जाने वाले यान वास्तविकता बनते हैं तो अंतरिक्ष की उड़ान की लागत में दस गुना तक कमी हो सकती है। यानी विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नई सफलताएं इस तरह भी दर्ज हो रही हैं कि नए प्रयोगों के साथ कम खर्च में पहले से बेहतर नतीजे हासिल किए जा रहे हैं।
भारत की ताजा कामयाबी का महत्त्व इस बात में भी है कि विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में अपेक्षया बेहतर माने जाने वाले देशों की अंतरिक्ष एजेंसियां फिलहाल इस तरह की तकनीक विकसित करने की कोशिश में जुटी हुई हैं। सूचना तकनीक के विस्तार के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, आपदा प्रबंधन, प्रतिरक्षा आदि के मद््देनजर भी नए अंतरिक्षीय प्रयोग पहले से कहीं अधिक जरूरी जान पड़ने लगे हैं। खासतौर पर सीमा सुरक्षा और आतंकवाद जैसी चुनौतियों से पार पाने के लिए पड़ोसी देशों का तकनीकों के जरिए आपसी जुड़ाव जरूरी है। इसलिए अंतरिक्ष विज्ञान और उसके सहयोग की अहमियत समझी जा सकती है। इसमें भी उपग्रहों के प्रक्षेपण की उन्नत तकनीक विकसित किए बिना आत्मनिर्भर होना मुश्किल है। ऐसे में भारत ने न सिर्फ अपनी जरूरत के मुताबिक उपग्रहों से लेकर अंतरिक्ष विज्ञान में दूसरे कामयाब प्रयोगों के साथ नई उपलब्धियां हासिल की हैं, बल्कि इसकी मदद से तीस देशों के साथ आपदा प्रबंधन आदि में भी सहभागिता कर रहा है। कुछ ही समय पहले इसरो ने व्यावसायिक प्रक्षेपणों के क्षेत्र में अपने पचास साल पूरे किए हैं। अंतरिक्ष अनुसंधान के मामले में इसरो कामयाबी के नए-नए अध्याय लिख रहा है। कई दर्जन उपग्रहों के कामयाब प्रक्षेपण के अलावा चंद्रयान और मंगलयान जैसी शानदार कामयाबियों ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को दुनिया भर में एक नई पहचान दिलाई है। यह बेवजह नहीं है कि कई विकसित देश भी खासतौर पर अपने व्यावसायिक उपग्रहों के प्रक्षेपण में सहयोग के लिए भारत से उम्मीद कर रहे हैं।