अपने परंपरागत विरोधी पाकिस्तान को अलग-थलग कर भारत, ईरान के रास्ते अफगानिस्तान तक पहुंचने वाले वैकल्पिक मार्ग यानी चाबहार बंदरगाह को चालू कराने में कामयाब हो गया है। इसके परिचालन का पहला चरण रविवार को पूरा हो गया। भारत के लिए रणनीतिक और कारोबारी लिहाज से बेहद अहम इस बंदरगाह का उद्घाटन ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी ने किया। इस मौके पर भारत के जहाजरानी राज्यमंत्री पी. राधाकृष्णन समेत दूसरे कई देशों के मंत्री और राजदूत वगैरह भी मौजूद थे। इससे एक दिन पहले यानी शनिवार को शंघाई सहयोग संगठन की रूस में संपन्न बैठक से वापस लौटते हुए विदेशमंत्री सुषमा स्वराज तेहरान रुकी थीं। वहां उन्होंने अपने ईरानी समकक्ष जावेद शरीफ से मुलाकात की और दूसरे मुद््दों के साथ-साथ चाबहार पर भी चर्चा की। रोहानी ने कहा कि यह बंदरगाह कई इलाकों को जोड़ेगा; यह एक ऐतिहासिक दिन है।

इस परियोजना के पहले चरण को ‘शाहिद बेहश्ती पोर्ट’ के नाम से जाना जाएगा। अब भारत अपने उत्पादों को अफगानिस्तान तक बिना किसी रोक-टोक केभेज सकेगा। गौरतलब है कि पाकिस्तान ने अपने क्षेत्र से भारतीय उत्पादों को अफगानिस्तान ले जाने की इजाजत देने से मना कर दिया था। तब भारत ने चाबहार को वैकल्पिक मार्ग के तौर पर विकसित करने की योजना बनाई, जो आखिरकार अब पूरी हुई। मगर गौरतलब है कि यह बंदरगाह महज एक रास्ता नहीं है। यह भारत की कारोबारी और कूटनीतिक, दोनों नजरिए से एक बड़ी कामयाबी है। चीन पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में ग्वादर बंदरगाह को विकसित कर रहा है। वह अपने साजोसामान वहां बेरोकटोक लाना चाहता है। ऐसे में ईरान की जमीन पर भारत द्वारा चाबहार को विकसित करना कारोबार के अलावा सामरिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वहां से ग्वादर की दूरी महज अस्सी किलोमीटर है।

असल में चीन जिस आक्रामक तरीके से हिंद महासागर में भारत को घेरने के लिए विभिन्न देशों में बंदरगाहों को विकसित कर रहा है, उसके मद््देनजर चाबहार उसे एक तगड़ा जवाब है। ‘स्ट्रिंग आॅफ पर्ल्स’ नामक परियोजना के तहत चीन, पाकिस्तान के ग्वादर से लेकर श्रीलंका के हम्बनटोटा तक बंदरगाह विकसित रहा है। अब चाबहार के चालू होने से पहला झटका पाकिस्तान को लगा है, क्योंकि भारत-अफगानिस्तान के बीच बढ़े व्यापार को रोकने की उसकी कोशिश नाकाम हो गई है। इसके अलावा, यह बंदरगाह मध्य एशिया तक भारत की पहुंच बढ़ाने में सहायक होगा। पाकिस्तान के रास्ते चीन की सुरक्षित लाइन बनाने की कोशिश को किसी संकट की स्थिति में भारत अब बाधित कर सकता है। भारत ने इस बंदरगाह को विकसित करने के लिए पचास करोड़ डॉलर का करार किया था। इस करार की नींव 2002 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और तब के ईरानी राष्ट्रपति सैयद मोहम्मद खातमी ने डाली थी। अब भारत इस रास्ते भारी मात्रा में अपना माल भेज सकता है। यों भी ‘चाबहार’ का वहां की स्थानीय भाषा में मतलब होता है- ऐसी जगह जहां बारहों मास बहार छाई रहती हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि ईरान और अफगानिस्तान से भारत के संबंधों में छाई यह बहार यों ही कायम रहे।