एक बार फिर नए विषाणु का संक्रमण तेजी से फैलना शुरू हो गया है। इन्फ्लूएंजा (Influenza) का यह विषाणु भी कोविड विषाणु की तरह ही लोगों को प्रभावित कर रहा है, हालांकि इससे उस तरह भयभीत होने की जरूरत नहीं है, मगर इसका लंबे समय तक लोगों पर असर बना रह रहा है। खांसी, बुखार, गले में जलन आदि जैसी तकलीफें इसमें देखने को मिल रही हैं। इस विषाणु के पैदा होने की एक वजह मौसम के अचानक सर्द से गर्म होने को बताया जा रहा है। अब यह विषाणु इतनी तेजी से संक्रमण फैला रहा है कि अस्पतालों में भीड़भाड़ देखी जाने लगी है, कई अस्पतालों ने इसके लिए अलग से वार्ड बना दिया है।
देश की अधिकतर आबादी को टीके लग चुके होने से राहत
इसी विषाणु के प्रभाव में कोरोना के मामले भी बढ़े हुए दर्ज हो रहे हैं। स्वाभाविक ही स्वास्थ्य विभाग लोगों से सावधान रहने और बचाव के उपाय आजमाने की अपील कर रहा है। मगर इसमें राहत की बात यह है कि भारत की अधिकतर आबादी को कोरोना के टीके लगाए जा चुके हैं, बहुत सारे लोग एहतियाती खुराक भी ले चुके हैं, इस तरह ज्यादातर लोगों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है। मगर जब भी कोई विषाणु अपने पांव पसारता है, तो स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां बरतने की अपेक्षा सदा बनी रहती है, क्योंकि विषाणु न सिर्फ तेजी से संक्रमण फैलाते, बल्कि अपने रूप भी बदलते रहते हैं।
कोरोना के समय भी यही हुआ, जब विषाणु ने दूसरे दौर में अपना रूप बदल कर खुद को इतना ताकतवर बना लिया था कि बहुत सारे लोगों को उसका प्रकोप झेलना मुश्किल हो गया था। इसलिए इन्फ्लुएंजा के विषाणु का प्रभाव बेशक सामान्य मौसमी खांसी, जुकाम, बुखार जैसा लग रहा हो, पर उसे नजरअंदाज करने की बिल्कुल जरूरत नहीं। विषाणुओं के प्रभाव से बचने का सबसे बेहतर उपाय साफ-सफाई रखना, भीड़भाड़ से बचना, हाथ धोते रहना, मास्क पहनना बताया जाता है।
सतर्कता नहीं बरतने पर संक्रमण का खतरा बढ़ने की आशंका
इसलिए लोगों से कहा जा रहा है कि वे इस विषाणु से बचने के लिए भी कोरोनोचित व्यवहार करें। आमतौर पर देखा जाता है कि कोई भी नया विषाणु इसलिए अधिक ताकतवर होकर फैलता है कि लोग उससे बचाव के उचित उपाय नहीं आजमाते। भारत जैसे देश में, जहां आबादी का दबाव अधिक है और प्राय: बड़ी आबादी साफ-सफाई को लेकर सतर्क नहीं देखी जाती, विषाणुओं के संक्रमण का खतरा अधिक बना रहता है। इसलिए इससे बचाव को लेकर सतर्कता ही पहला और प्रभावी उपाय है।
कई बार ऐसा भी होता है कि जब कोई विषाणु फैलना शुरू होता है तो लोगों में एक प्रकार का भय व्याप्त हो जाता है। इन्फ्लुएंजा का यह विषाणु वैसा घातक नहीं है, इसलिए अधिक भयभीत होने की जरूरत नहीं है। सामान्य रूप से शारीरिक स्वच्छता, खानपान संबंधी सतर्कता के जरिए इसके प्रभावों से बचा जा सकता है। वैसे भी जिस तरह पर्यावरणीय विसंगतियां पैदा हो रही हैं और जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम का मिजाज बदल रहा है, उसमें नई-नई बीमारियां पैदा करने वाले विषाणुओं के उत्पन्न होने की आशंका लगातार बनी रहती है।
इसलिए भी लोगों से अपने स्वास्थ्य को लेकर लगातार सावधान रहने की अपेक्षा की जाती है। बाहर निकलते समय ऐसे तमाम उपाय करने की सलाह दी जाती है, जिनसे वातावरण में पनप रहे विषाणुओं को शरीर में प्रवेश करने से रोका जा सके। पर ऐसी स्थितियों में सरकारी स्वास्थ्य तैयारियां भी पहले से रहनी चाहिए, ताकि लोगों में अफरातफरी जैसी स्थिति न बनने पाए।