पिछले कुछ समय से लगातार ऐसी खबरें आ रही थीं कि रोजगार दिलाने का हवाला देकर रूस ले जाए गए कुछ लोगों को युद्ध के मोर्चे पर लगा दिया गया और अब वहां से उनकी वापसी मुश्किल हो गई है। इसी क्रम में आई एक खबर के मुताबिक, सहायक की नौकरी मिलने के भरोसे पर रूस गए एक भारतीय को रूसी सेना में भर्ती करा दिया गया, जहां युद्ध में गोलीबारी की वजह से उसकी जान चली गई।
यह इस तरह की दूसरी घटना है। अब इस मामले के तूल पकड़ने के बाद ऐसे अनेक मामले सामने आने लगे हैं, जिनमें कई लोगों को नौकरी दिलाने का झांसा देकर सहायक के रूप में रूस की सेना के साथ युद्ध में झोंक दिया गया। ऐसे कम से कम सौ लोगों के रूसी सेना में काम करने की खबर आई है। हाल में वहां पर्यटक वीजा पर वहां ले जाए गए सात लोगों को हिरासत में ले लिया गया और बाद में ‘सहायक’ के रूप में रूसी सेना में भर्ती होने पर मजबूर किया गया। साथ ही यह धमकी दी गई कि अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें दस वर्ष की कैद की सजा दी जाएगी।
अब रूस में युद्ध के मोर्चे पर फंसा दिए गए लोग और उनके परिजन उन्हें बचाने के लिए मदद मांग रहे हैं, दूसरी ओर भारत सरकार की ओर से ऐसे लोगों को देश वापस लाने की कोशिश की जा रही है। जाहिर है, रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध में अब वैसे लोगों का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है, जो रोजी-रोटी के लिए नौकरी की भूख में अपने घर से जोखिम उठा कर किसी के भरोसे पर निकल गए थे।
यों यह एक जगजाहिर हकीकत है कि युद्ध के दौरान उसमें शामिल पक्ष शायद ही किसी नैतिकता या मानवीयता की बात पर गौर करते है। इसलिए रोजगार के जरूरतमंदों को इस कदर जाल में फंसा कर उन्हें युद्ध के मोर्चे पर झोंक देना कोई हैरान करने वाली बात नहीं है, लेकिन धोखा देकर अन्य देशों के नागरिकों को जंग के जानलेवा जोखिम में डालने को किसी भी हाल में उचित नहीं कहा जा सकता। रूस एक ताकतवर देश है, मगर यह विचित्र है कि उसे अपनी ओर से युद्ध लड़ने के लिए सैनिकों की जरूरत को अन्य देशों से आए रोजगार के भूखों को धोखा देकर पूरा करने की दशा का सामना करना पड़ रहा है।
किसी को जीने के लिए रोजगार की जरूरत होती है और उसके हालात का फायदा उठा कर उसे धोखे से जानलेवा जोखिम के दलदल में धकेल दिया जाता है। अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं कि पढ़ाई और रोजगार के नाम पर विदेश भेजने वाले एजंटों का तंत्र कैसे काम करता है। इसी क्रम में ऐसा लगता है कि रूस और भारत में कुछ समूह रोजगार की तलाश करते युवाओं को ज्यादा तनख्वाह से लेकर अन्य सुविधाओं सहित तरह-तरह के प्रलोभन देकर जाल में उलझाते हैं।
इसमें फंसने वाले युवाओं को जब वास्तविकता का पता चलता है, तब तक देर हो चुकी होती है। विचित्र यह भी है कि दूसरे देश जाने या वहां से आने वाले हर एक व्यक्ति पर निगरानी रखने के दावे के बीच यह भी समांतर तंत्र के तौर पर देखा जाता है कि कुछ एजंट लोगों को बरगला कर गलत तरीके से कहीं ले जाते हैं और वहां किसी जाल में फंसने के लिए छोड़ देते हैं। ऐसे में यह सरकार की भी जिम्मेदारी है कि किसी अन्य देश जाने वाले लोगों की सुरक्षा और सहायता को लेकर वह कोई ठोस तंत्र बनाए।