माना जाता है कि जिन समाजों में शिक्षा का प्रसार ठीक से नहीं हुआ है, उन्हीं में महिलाओं और बच्चों के साथ हिंसक व्यवहार अधिक होता है। मगर यह धारणा अनेक घटनाओं से गलत साबित हो चुकी है। पढ़े-लिखे और सभ्य कहे जाने वाले समाजों में भी महिलाएं न तो सुरक्षित हैं और न उन्हें अपेक्षित सम्मान हासिल है।

वहां भी वे दोयम दर्जे का ही नागरिक समझी जाती हैं। यही वजह है कि वे भी घरेलू हिंसा से नहीं बच पातीं। यह अलग बात है कि उनमें अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता अधिक है, इसलिए वे अपने प्रति हुए अन्याय की शिकायत करने का साहस दिखा पाती हैं। इस वर्ष मार्च में कोरोना संक्रमण पर काबू पाने के मकसद से लगाई गई पूर्णबंदी के दौरान दर्ज घरेलू हिंसा की श्किायतें इसका प्रमाण हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग के पास इस साल घरेलू हिंसा की पांच हजार से अधिक शिकायतें दर्ज कराई गर्इं।

पूर्णबंदी के दौरान महिलाओं से मारपीट, उनकी प्रताड़ना, अपमान आदि के पीछे एक कारण यह था कि पति-पत्नी और पूरा परिवार पूरे समय घर के अंदर रहने को मजबूर था। ऐसे समय में वैचारिक टकराव कुछ अधिक तीखे हुए और उनके साथ मारपीट की घटनाएं बढ़ीं।

मगर बंदी खुलने के बाद भी ऐसी घटनाएं चिंताजनक स्तर पर बनी रहीं। इसका मुख्य कारण आर्थिक तंगी, रोजगार और कामकाज का बाधित होना या छिन जाना था। महानगरीय जीवन में तनाव और हिंसा की स्थितियां सामान्यता देखी जाती हैं। इसकी वजहों के कई तंतु हैं। अर्थिक तंगी की वजह से कई लोग अपने भीतर का तनाव परिवार के सदस्यों पर निकालते हैं।

महिलाएं और बच्चे उनका आसान शिकार बनते हैं। इसके अलावा महत्त्वाकांक्षा भी एक वजह है, जिसके चलते महानगरीय चमक-दमक में कई लोग सपने तो बड़े पाल लेते हैं, पर जब वे पूरे होते नहीं दिखते तो उसकी खीझ पत्नी और बच्चों पर निकालते हैं। पूर्णबंदी के दौरान भी यही दोनों घरेलू हिंसा का अधिक कारण बने। अब राष्ट्रीय महिला आयोग और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने घरेलू हिंसा रोकने के उद्देश्य से जागरूकता कार्यक्रमों को और बढ़ाने का प्रयास शुरू कर दिया है।

घरेलू झगड़ों को सुलझाना, हिंसा पर विराम लगाना थोड़ा जटिल काम होता है। कुछ लोग आदतन हिंसक व्यवहार करते हैं, जो मामूली कमियों पर भी उग्र हो उठते हैं। बहुत सारे लोग अपने भीतर की उलझनों और तनावों के चलते किसी आवेश या नासमझी में हिंसक व्यवहार कर बैठते हैं। बाद में उन्हें अपने किए पर पछतावा होता है। इसी तरह कई महिलाएं तात्कालिक रोष में अपने पति के खिलाफ शिकायत तो दर्ज करा देती हैं, पर बाद में उनके साथ समझौता कर लेती हैं।

सच्चाई यह भी है कि अपने प्रिय जनों के साथ हिंसा आखिरकार किसी को पसंद नहीं होती। इसीलिए आर्थिक तंगी वगैरह के चलते जिन परिवारों में कलहपूर्ण वातावरण देखा जाता है, उसके सुधरते ही सौहार्द भी पनप जाता है। लिहाजा, घरेलू हिंसा की वजहों का बारीकी से अध्ययन करने की जरूरत होती है। अर्थिक तंगी के चलते अगर लोगों के परिवारों का सुख-चैन छिन रहा है, तो इसे दूर करने के उपायों पर सोचना होगा।