रेलवे को साफ-सुथरा बनाने का दावा लंबे समय से किया जा रहा है। इसके लिए आधुनिक उपकरणों और निजी एजेंसियों की भी मदद ली गई। मगर हकीकत निराश करने वाली है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से रोजाना अतिविशिष्ट श्रेणी के लोगों का आना-जाना होता है, पर वहां भी गंदगी पसरी रहती है। स्वाभाविक ही एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने नाराजगी जाहिर करते हुए रेलवे को फटकार लगाई और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की साफ-सफाई के निरीक्षण के लिए एक रेजीडेंट कमिश्नर नियुक्त कर दिया है।
अगली सुनवाई पर रेलवे को बताना है कि किन वजहों से वह स्टेशनों पर माकूल साफ-सफाई करा पाने में विफल साबित हो रहा है। स्टेशनों और रेल की पटरियों पर फैली गंदगी के चलते किस प्रकार लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, यह छिपी बात नहीं है। मगर रेलगाड़ियों और स्टेशनों को विश्व मानकों के अनुरूप बनाने के बरसों से किए जा रहे दावों के बावजूद रेल महकमा इस समस्या पर काबू नहीं पा सका है। रेलवे के आधुनिकीकरण के नाम पर टिकट बुकिंग को आसान बनाने और स्टेशनों पर वाइ-फाइ सुविधा वगैरह मुहैया कराने जैसे पहलुओं पर अधिक जोर दिखाई देता है, जबकि कई साल पहले गाड़ियों में हरित शौचालय लगाने और स्टेशनों की साफ-सफाई के लिए आधुनिक उपकरणों के इस्तेमाल का लिया गया संकल्प संजीदगी के अभाव में हवाई साबित हो रहा है।
रेलवे स्टेशनों पर गंदगी का यह आलम तब है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान शुरू करने के बाद हर सरकारी महकमा इसके संकल्प वाला पोस्टर-बैनर टांगे दिखता है। हर सरकारी चिट्ठी-पत्री पर स्वच्छता अभियान का निशान छपा होता है। अब सफाई के नाम पर सरकार ने रेलवे सहित तमाम सेवाओं पर दो प्रतिशत उप-कर लगा दिया है। यानी जो काम पहले संस्थाओं के जिम्मे डाल कर पूरा करने का मंसूबा बांधा गया था, उसे अब सरकार आम लोगों से अतिरिक्त कर वसूल कर संपन्न करेगी। मगर इस तरह जुटाए गए पैसे का भी कितना सदुपयोग हो पाएगा, कहना मुश्किल है। सर्वशिक्षा अभियान के लिए भी इसी तरह सेवाओं पर उपकर लगाया गया था, मगर उससे शिक्षाधिकार अधिनियम के लक्ष्य तक पहुंच पाने में कितनी कामयाबी मिल पाई है, छिपी बात नहीं है।
साफ-सफाई दरअसल, संस्थाओं की मुस्तैदी का मामला है। मगर कचरे के निपटान, मलबा हटाने, झाड़ू-बुहारी जैसे काम भी अलग-अलग प्राधिकारों की जिम्मेदारी मान कर टालने की जैसे आदत बन चुकी है। प्रधानमंत्री की बार-बार की अपीलों के बावजूद अगर संस्थाओं में इस समस्या के प्रति गंभीरता नहीं आ पा रही, तो उप-कर से जुटाए पैसे से इस पर काबू पाना कितना संभव हो पाएगा, कहना मुश्किल है। रेलवे देश की सबसे बड़ी परिवहन सेवा है, उसके आय-व्यय को लेकर अलग से बजट पेश होता है। ऐसा भी नहीं कि वह घाटे में चल रहा कोई उपक्रम है।