हौसला बुलंद हो तो कामयाबियों की राह अपने आप खुल जाती है। हाल ही में एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने साबित किया कि सही दिशा में की गई कोशिश से मैदान में जीत और उपलब्धियों का परचम लहराया जा सकता है। अब उसके कुछ ही दिनों बाद हांगझोउ में आयोजित पैरा एशियाई खेलों में भी भारतीय पैरा एथलीटों ने अपनी जिस काबिलियत का प्रदर्शन किया, वह देश और यहां के लोगों के लिए सुखद भविष्य की उम्मीद जगाता है।

एशियाई पैरा खेलों में हमारे खिलाड़ियों ने कुल एक सौ ग्यारह पदक जीते

हांगझाउ में शनिवार को समाप्त हुए एशियाई पैरा खेलों में शुरुआत से ही भारतीय खिलाड़ियों ने अपनी मजबूत मौजूदगी बनाए रखी और वह निरंतरता आखिर तक बनी रही। अपनी जीत के अभियान में हमारे खिलाड़ियों ने कुल एक सौ ग्यारह पदक जीते, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित बहु-खेल प्रतियोगिता में देश के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है। अलग-अलग खेलों में पैरा एथलीटों ने उनतीस स्वर्ण पदक, इकतीस रजत और इक्यावन कांस्य पदक जीते। इस कामयाब प्रदर्शन के बूते भारत ने इन खेलों की पदक तालिका में पांचवा स्थान हासिल किया, जो पिछले प्रदर्शनों के मुकाबले काफी बेहतर रहा।

पहला पैरा एशियाई खेल 2010 में चीन के ही ग्वांगझू में आयोजित हुआ था

गौरतलब है कि पहला पैरा एशियाई खेल 2010 में चीन के ही ग्वांगझू में आयोजित किया गया था और उसमें भारत को सिर्फ एक स्वर्ण सहित चौदह पदक से संतोष करना पड़ा था। तब भारत पदक तालिका में पंद्रहवें स्थान पर रहा था। उसके बाद धीरे-धीरे सुधार हुआ, मगर इस बार पांचवें थान पर आना यह बताता है कि भारतीय खिलाड़ी अब किसी प्रतियोगिता में सिर्फ उपस्थिति दर्ज कराने के लिए नहीं, बल्कि सक्षम और मजबूत माने जाने वाले देशों के मुकाबले में खड़ा होकर मैदान जीतने के लिए जाते हैं। इस बार की सामूहिक कामयाबी में एथलेटिक्स का सबसे ज्यादा यानी पचपन पदकों का योगदान रहा। दूसरे स्थान पर भारतीय शटलर रहे, जिन्होंने इक्कीस पदक जीते।

बिना हाथ की तीरंदाज शीतल देवी ने एक ही सत्र में दो स्वर्ण पदक जीतीं

इसी तरह शतरंज, तीरंदाजी और निशानेबाजी में भी भारतीय खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा साबित की। मसलन, बिना हाथ की तीरंदाज शीतल देवी इन खेलों में एक ही सत्र में दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला बनीं। सभी खिलाड़ियों ने अपने इसी तरह के जज्बे का प्रदर्शन किया। इस पैरा एशियाई खेलों में खिलाड़ियों ने अपनी जिस क्षमता का प्रदर्शन किया उससे साफ है कि प्रतिभा की खोज और सही दिशा में उनका प्रशिक्षण सुनिश्चित करके अवसर मुहैया कराए जाएं, तो नतीजे चौंकाने वाले आ सकते हैं।

हांगझाउ में ही एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने 107 पदक जीते थे

इससे पहले हांगझाउ में ही एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ी ‘अबकी बार, सौ के पार’ के लक्ष्य के साथ मैदान में उतरे थे और उसे पार कर एक सौ सात पदक जीते थे। अब पैरा एशियाई खेलों में उससे चार पदक ज्यादा हासिल करना इस बात का संकेत है कि आने वाले वक्त में अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भारतीय खिलाड़ियों को भी इस क्षेत्र में दुनिया के मजबूत देशों के समकक्ष रख कर देखा जाएगा। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि भारत में प्रतिभाएं बिखरी पड़ी हैं, जरूरत बस उन्हें चुनने की है।

कई बार दूरदराज में वंचित समुदायों के बीच कोई ऐसा बच्चा होता है, जिसमें बेहतरीन संभावनाएं छिपी होती हैं, लेकिन अवसर, सलाह, संसाधन, प्रशिक्षण और सही दिशा न मिलने की वजह से उसे दुनिया के सामने अपनी प्रतिभा को साबित करने का मौका नहीं मिल पाता। अब दुनिया के खेल मैदानों में भारत मजबूत दखल देने लगा है। अवसर उपलब्ध हों तो छिपी प्रतिभाएं देश के लिए गौरव का नया अध्याय रच सकती हैं।