भारतीय खिलाड़ियों में जैसी क्षमता दिखती है, उससे उम्मीद है कि देश वैश्विक खेल परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लेगा। मगर इसके बरक्स जिस तरह डोपिंग के मामले बढ़ रहे हैं, वह चिंता का विषय है। गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2036 ओलंपिक की दावेदारी के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल के दौरे के समय अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक परिषद ने डोपिंग में देश के खराब रिकार्ड पर चिंता जताई है।
दरअसल, भारत पिछले महीने विश्व डोपिंग रोधी एजंसी के 2023 के जांच आंकड़ों में उन देशों में शीर्ष पर था, जिन्होंने पांच हजार या उससे ज्यादा नमूनों की जांच कराई थी, जबकि इसमें प्रतिबंधित पदार्थों का फीसद 3.8 दर्ज किया गया। ज्यादातर खेलों में डोपिंग की समस्या है। मगर दौड़ और कुश्ती में यह निराशाजनक है।
अन्य खेलों के मुकाबले कुश्ती में डोपिंग के सबसे अधिक उन्नीस मामले हैं
राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजंसी की निलंबित खिलाड़ियों की सूची बताती है कि अन्य खेलों के मुकाबले कुश्ती में डोपिंग के सबसे अधिक उन्नीस मामले हैं। इनमें अगर पांच खिलाड़ी नाबालिग हैं, तो इससे साफ है कि उन्हें उचित मार्गदर्शन नहीं मिला और उन्होंने गलत कदम उठा लिया।
लिहाजा अब यह सोचना होगा कि ऐसे खिलाड़ी सिर्फ खेल भावना के साथ देश के लिए खेलें और कुछ भी ऐसा न करें, जिससे उनके भविष्य पर प्रतिकूल असर पड़े।
कोई भी कामयाबी आत्मविश्वास और अनुशासन से ही मिलती है। हमारे खिलाड़ियों ने कड़ी मेहनत और लक्ष्य का संधान कर भारत का गौरव बढ़ाया है। मगर जल्द से जल्द शोहरत-सम्मान पाने की भूख चंद खिलाड़ियों को गलत रास्ते पर ले जा रही है। यह सही है कि किसी भी प्रतियोगिता में खिलाड़ी पदक के दावेदार के तौर पर सामने आते हैं, लेकिन विजेताओं को आर्थिक लाभ के साथ सरकारी नौकरियां मिलने से उनकी मानसिकता पर असर पड़ा है।
दूसरी ओर उन्हें गुमराह करने वाले भी मिल जाते हैं। नतीजा यह है कि जानते-बूझते हुए भी वे गलत राह अपना लेते हैं। ऐसे में कोच का भी दायित्व है कि वे खिलाड़ियों के भीतर जागरूकता पैदा करें।
फिलहाल एक बड़ा कदम भारतीय ओलंपिक संघ की कार्यकारी परिषद ने उठाया है। उसने एक पैनल का गठन कर स्पष्ट कर दिया है कि ऐसे मामले बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।