चंद्रमा और सूर्य के अध्ययन के लिए अंतरिक्ष यान भेजने के बाद अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने एक और कामयाबी हासिल कर ली है। गगनयान टीवी-डी1 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण कर भारत ने मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन के क्षेत्र में कदम रख दिया है। गगनयान का मकसद पृथ्वी से चार सौ किलोमीटर की कक्षा में मनुष्य को भेजना और फिर उन्हें सुरक्षित वापस लाना है। हालांकि अभी इस योजना का प्रायोगिक चरण पूरा हुआ है।

2025 में तीन लोगों को बिठा कर तीन दिन के लिए भेजा जाएगा

अगले साल इस यान में एक रोबोट को भेजा जाएगा। फिर 2025 में तीन लोगों को बिठा कर तीन दिन के लिए भेजा जाएगा। अगर यह मिशन कामयाब होता है, तो भारत मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। इसके पहले अमेरिका, रूस और चीन अंतरिक्ष में मनुष्य को सैर के लिए भेजने का परीक्षण कर चुके हैं। दरअसल, अंतरिक्ष में यान भेजना और उसे फिर से धरती पर सकुशल उतार पाना एक कठिन चुनौती है, इसलिए ऐसे अभियानों को लेकर वैज्ञानिक प्राय: सशंकित रहते हैं। गगनयान को भी इसीलिए पूरी तरह सुरक्षित बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

यान के जिस हिस्से में लोगों को बिठा कर भेजा जाएगा, उसे इस तरह बनाया गया है कि उसमें पृथ्वी जैसा वातावरण रहे और समुचित भोजन आदि की व्यवस्था मिले, मगर सबसे बड़ी चुनौती किन्हीं विषम परिस्थितियों में अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित वापस लाने की है।

रोमांचक सपने की तरह है अंतरिक्ष में जाना और उसे देखना

अंतरिक्ष सदा से मनुष्य के लिए रहस्य रहा है। अंतरिक्ष में जाना और उसे देखना, अनुभव कर पाना बहुत सारे लोगों के लिए एक रोमांचक सपने की तरह है। ऐसे में तकनीकी रूप से सक्षम हर देश सुगम अंतरिक्ष यात्रा को न सिर्फ एक वैज्ञानिक उपलब्धि के रूप में हासिल करना चाहता है, बल्कि इसे एक नए कारोबारी क्षेत्र के रूप में भी देख रहा है। कुछ निजी उद्यमी भी इस क्षेत्र में उतरने को आतुर दिखते हैं। एलन मस्क भी घोषणा कर चुके हैं कि 2025 में वे अंतरिक्ष की सैर कराने का अपना कारोबार शुरू कर देंगे। इस दृष्टि से भारत का गगनयान भी अंतरिक्ष की सैर पर जाने को तैयार हो रहा है।

पूरी तरह से देशी तकनीक से तैयार किया गया है गगनयान

सबसे उत्साहजनक बात यह है कि इस यान को पूरी तरह देशी तकनीक से तैयार किया गया है। पहले ही पीएसएलवी, चंद्रयान और आदित्य एल-1 जैसे यान पूरी तरह भारतीय तकनीक से विकसित होकर कामयाबी हासिल कर चुके हैं। गगनयान उसी कड़ी में अगली उपलब्धि है।

अंतरिक्ष में पहुंच बनाना और निरंतर नई-नई संभावनाओं की तलाश करते रहना अब केवल जिज्ञासा शमन के लिए नहीं, बल्कि कारोबारी दृष्टि से भी जरूरी हो चुका है। भारत ने देशी तकनीक से प्रक्षेपण यान विकसित कर अब दुनिया के उपग्रह प्रक्षेपण कारोबार में अपनी एक मजबूत स्थिति बना ली है। यह दुनिया में सबसे सस्ती दरों पर उपग्रह प्रक्षेपण करता है, जिससे बहुत सारे देश इसकी मदद पर निर्भर हैं। इसी तरह चंद्रमा, मंगल, शुक्र आदि ग्रहों पर यान भेज कर न केवल उनकी वास्तविकता समझने की कोशिश की जा रही है, बल्कि वहां उपलब्ध खनिजों के उपभोग का भी अवसर जुटाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

गगनयान का मकसद किसी शोध से नहीं, बल्कि लोगों को अंतरिक्ष की सैर कराने से जुड़ा है। चार सौ किलोमीटर ऊपर की कक्षा में अभी तीन दिनों के सफर की योजना है, आगे तकनीकी क्षमता विकसित होने पर निस्संदेह इसकी अवधि और दूरी बढ़ाने पर विचार होगा। यह वैज्ञानिक उपलब्धि के अलावा अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में भी सहायक होगा।