जबकि यह कानूनी तौर पर अपराध है और कई बार इस क्रम में किसी पीड़ित या फिर आरोपी के साथ बेहद अमानवीय बर्ताव किया जाता है। राजस्थान में झालावाड़ जिले के एक गांव में यौन उत्पीड़न के एक आरोपी के साथ कुछ लोगों ने जैसा व्यवहार किया, वह किसी अराजक समाज की याद दिलाता है, जहां कानूनी रास्तों का सहारा लेना जरूरी नहीं समझा जाता है।
गांव के कुछ लोगों ने घर में अनाधिकार प्रवेश और एक महिला के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को पकड़ कर उसकी सार्वजनिक रूप से पिटाई की, उसे जूतों की माला पहनाई गई। फिर निर्वस्त्र करके उसकी परेड निकाली गई। मामले की शिकायत के बाद पुलिस ने ऐसा करने वाले आठ लोगों को गिरफ्तार किया। यौन उत्पीड़न के आरोपी को भी गिरफ्तार किया गया है।
हालांकि वहां के क्षेत्राधिकारी के मुताबिक शुरुआती जांच में यह सामने आया है कि एक व्यक्ति ने एक विवाहित महिला को फोन भेंट किया था और उनके बीच प्रेम संबंध होने का शक है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि अगर कुछ लोगों को ऐसा लगा कि आरोपी व्यक्ति का महिला के साथ कोई भी संबंध या फिर अवांछित व्यवहार सामाजिक मर्यादा या कानून के खिलाफ था, तो वे कानूनी प्रक्रिया का सहारा ले सकते थे। खासतौर पर अगर महिला के यौन उत्पीड़न का मामला है, तो ऐसे मामलों से निपटने के लिए सख्त कानूनी प्रावधान किए गए हैं।
लेकिन पुलिस को सूचना देने या कोई वैध रास्ता अख्तियार करने के बजाय कुछ लोगों ने स्थानीय स्तर पर ही यौन उत्पीड़न के आरोपी को जिस तरह पिटाई करते हुए निर्वस्त्र करके घुमाया, यह भी कानून-व्यवस्था को भंग करना है। सवाल है कि ग्रामीण इलाकों में या कहीं भी लोग कानून अपने हाथ में लेने से पहले यह क्यों ध्यान नहीं रख पाते हैं कि ऐसा करने का नतीजा क्या हो सकता है! आवेश में आकर वे किसी मामले के आरोपी को खुद ही सजा तो देना चाहते हैं, लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं होता है कि उनका यह कृत्य भी कानूनी तौर पर अपराध की श्रेणी में आता है।
ऐसे मामले सुर्खियों में रहे हैं जब किसी इलाके में दो अलग जाति या समुदायों के युवक-युवती के बीच प्रेम संबंधों के मामले में दखल देकर स्थानीय तौर पर कुछ लोगों या फिर खाप पंचायतों ने बेहद बर्बर फैसले सुनाए और उन पर अमल भी किया गया। अव्वल तो प्रेम संबंधों के मामले में ऐसे फैसले न केवल बेजा दखल और दो वयस्कों के संवैधानिक अधिकारों का हनन होते हैं, बल्कि संवेदनशील समाज के लिहाज से अमानवीय भी होते हैं।
यह देश में कानून के राज के बरक्स अपनी समांतर सत्ता चलाने की तरह है, जहां कुछ लोग खुद को कानूनी प्रक्रिया और संविधान से ऊपर मानने लगते हैं। सामाजिक नियम-कायदों, मर्यादाओं में अगर कोई ऐसी गतिविधि सामने आती है, जिससे पारंपरिक मानस में जीने वाले समाज या कुछ लोगों को शिकायत होती है तो उसकी भी कानूनी व्याख्या की गई है, संबंधित पक्षों के संवैधानिक अधिकार सुनिश्चित किए गए हैं और उसका हल कानून के मुताबिक ही निकालने की व्यवस्था है। लेकिन अगर लोग कानून हाथ में लेकर अपने स्तर पर मध्ययुगीन चलने के मुताबिक फैसले करके सजा देने लगे तो इसका खमियाजा खुद उन्हें भी भुगतना पड़ सकता है।