मणिपुर के संदर्भ में देखा जा सकता है कि किसी संवेदनशील मसले की अनदेखी या उसके हल को लेकर समय पर जरूरी कदम न उठाने का नतीजा क्या हो सकता है। इस हिंसा और अस्थिरता के लिए सभी संबंधित पक्ष अपने-अपने कारण बता और एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, लेकिन हिंसा की शुरुआत के समय ही यह साफ हो गया था कि इस मामले पर सरकार को वक्त रहते जो कदम उठाने चाहिए थे, उसे लेकर लापरवाही बरती गई।
अब हालत यह है कि सर्वोच्च न्यायालय को सरकार से यह पूछना पड़ा है कि उसने मणिपुर संकट के हल के लिए क्या किया। गौरतलब है कि मणिपुर में हिंसा को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से तीन मुख्य बिंदुओं पर राज्य सरकार से जवाब मांगा। इन बिंदुओं में वहां मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हो रही हिंसा को रोकने के लिए उठाए गए कदम, बेघर और हिंसा प्रभावित लोगों को दोबारा बसाने, सुरक्षा बलों की तैनाती और कानून-व्यवस्था की जानकारी देना शामिल है। यों सरकार यह जरूर कहती है कि उसने मणिपुर में बिगड़े हालात में सुधार के लिए जरूरी कदम उठाए हैं, लेकिन हकीकत यह है कि वहां दो महीने पहले मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति दर्जे से जुड़े मसले पर शुरू हुई हिंसा आज भी जारी है।
सवाल है कि देश के किसी राज्य में किसी भी सवाल पर भड़की हिंसा और अराजकता अगर इतने लंबे वक्त तक जारी रहती है तो यह किसकी नाकामी है और इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाएगा। राज्य सरकार की ओर से कानून-व्यवस्था को कायम रखने को लेकर जो भी कदम उठाए गए, उसका हासिल क्या हुआ है? इस सिलसिले में केंद्र सरकार की ओर से भी शांति समिति बनाने की पहल हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र और मणिपुर सरकार ने कहा है कि राज्य में स्थिति धीरे-धीरे ठीक हो रही है। मगर हकीकत यह है कि अब तक इस मसले को सुलझाने की कोशिशें नाकाम ही हुई हैं और मणिपुर में जातीय हिंसा जारी है। रविवार को भी वहां चल रहे संघर्ष में चार लोगों की हत्या कर दी गई। अब तक कुल एक सौ दस लोग मारे जा चुके हैं।
विचित्र है कि जहां हालात को नियंत्रित करने के लिए हर स्तर पर जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए, वहां के मुख्यमंत्री ने इसके पीछे विदेशी हाथ होने की आशंका जाहिर की है। अगर ऐसा है भी तो ऐसी ताकतों का पर्दाफाश करने और हिंसक संघर्षों को तुरंत रोकने की जवाबदेही किसकी है! अगर उग्रवादियों की ओर से किसी खास समुदाय के विनाश की खुलेआम धमकी देने की खबरें सही हैं, तो उनके खिलाफ ठोस और साफ संदेश देने वाली कार्रवाई करना किसका दायित्व है?
हालांकि केंद्रीय गृहमंत्री की ओर से राज्य में शांति और सौहार्द लौटाने की अपील के बाद कुछ कुकी संस्थाओं ने मणिपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगाए अवरोध हटा लिए थे, लेकिन जरूरत इस बात की है कि टकराव में शामिल सभी संबंधित पक्षों के बीच संवाद और विश्वास बहाली की प्रक्रिया बिना शर्त तुरंत शुरू की जाए, क्योंकि आखिरी हल संवाद के जरिए ही निकलना है। यह सुनिश्चित करना सरकार की ही जिम्मेदारी है। विडंबना है कि जो काम सरकार को अपनी ओर से करना चाहिए था, हिंसा और अराजकता को रोकने के लिए हर संभव उपाय करने चाहिए थे, उसके लिए सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ रहा है।