कम मात्रा वाले तेल और गैस के उनहत्तर उत्खनन क्षेत्रों को निजी हाथों में सौंपने के सरकार के फैसले से इन क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ने की उम्मीद जगी है। इन क्षेत्रों की असुविधाजनक भूगर्भीय स्थिति और आकार छोटे होने की वजह से ओएनजीसी और आयल इंडिया लिमिटेड जैसी सरकारी कंपनियां गैस और तेल का माकूल उत्खनन नहीं कर पा रही थीं। उन्होंने इन इलाकों को छोड़ दिया था।
ये कंपनियां खुद इन इलाकों को निजी कंपनियों को देना चाहती थीं, पर सरकार ने उन्हें रोक दिया था कि नीलामी प्रक्रिया से वह खुद इन क्षेत्रों का आबंटन करेगी। इन क्षेत्रों का मौजूदा मूल्य सत्तर हजार करोड़ रुपए आंका गया है। अगले तीन महीनों के भीतर इन क्षेत्रों की नीलामी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। माना जा रहा है कि इन क्षेत्रों में उत्खनन शुरू हो जाने के बाद अगले छह-सात साल में तेल-गैस के आयात में दस फीसद तक कमी आ सकती है। राजस्व साझा करने के मॉडल पर इन क्षेत्रोें की नीलामी की जाएगी। यानी जो कंपनी सबसे अधिक रकम और भारतीय तेल बास्केट की बोली लगाएगी, उसे इन क्षेत्रों में उत्खनन का अधिकार दिया जाएगा। दूरसंचार स्पेक्ट्रम और कोयला खदानों के आबंटन में हुई अनियमितताओं को ध्यान में रखते हुए यह सावधानी बरती गई है। इस मॉडल में राजस्व साझा करने की बाबत पारदर्शिता बरते जाने के भी उपाय किए गए हैं।
बढ़ती ऊर्जा जरूरतों के मद््देनजर तेल और गैस के उत्पादन में तेजी लाने की आवश्यकता काफी समय से रेखांकित की जाती रही है। इस लिहाज से सरकार का ताजा फैसला निस्संदेह उत्साहजनक कहा जा सकता है। पर यह काम कितना आसान होगा और निजी कंपनियां कितनी सहजता से इस ओर आकर्षित होंगी, कहना मुश्किल है।
जिन कम उत्खनन वाले क्षेत्रों की नीलामी की रूपरेखा तैयार की गई है उनमें से ओएनजीसी ने अपने तिरसठ और आयल इंडिया ने छह क्षेत्रों को पहले ही बेचने का प्रयास किया था, पर निजी कंपनियां आगे नहीं आर्इं। सरकार के ताजा फैसले के बाद कितनी कंपनियां उत्साहित होंगी, कहना मुश्किल है। फिर इन क्षेत्रों से निकलने वाले तेल और गैस की बिक्री भारतीय बाजारों में होगी। ऊंची कीमत पर बोली लगा कर ये कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में उपलब्ध कच्चे तेल और गैस की कीमतों से किस प्रकार प्रतिस्पर्द्धा कर पाएंगी, यह सवाल बना हुआ है।
पहले भी निजी कंपनियों को कुछ क्षेत्रों में तेल के उत्खनन का अधिकार दिया गया था, उन्हें यह भी अधिकार था कि वे खुले बाजार में अपना तेल बेचेंगी, पर सरकारी तेल कंपनियों से वे प्रतिस्पर्द्धा में पिछड़ गर्इं। नई नीलामी के बाद तेल और गैस का उत्खनन करने वाली कंपनियों के सामने भी यह संकट हो सकता है, इसलिए इन्हें कच्चे तेल पर उप-कर के भुगतान की छूट होगी। अगर यह फैसला कारगर रहा तो निस्संदेह तेल और गैस उत्पादन के मामले में राहत मिलेगी।
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