सूचना तकनीक के तीव्र प्रसार ने जहां एक तरफ बहुत सारी सुविधाएं प्रदान की हैं, वहीं कई चुनौतियां भी पेश की हैं। इस तकनीक का उपयोग बहुत सारे ऐसे लोग भी करने लगे हैं, जो समाज में अस्थिरता, नफरत, वैमनस्यता और उत्तेजना फैलाना या किसी को बदनाम कर सनसनी पैदा करना चाहते हैं। झूठी खबरों और सूचनाओं के चलते अनेक जगहों पर लोगों को उत्तेजित होकर भीड़ हिंसा करते भी देखा जा चुका है।
ऐसी सूचनाओं पर लगाम कसने के लिए सरकार ने कड़े कानूनी उपाय किए हैं। मगर अब एक नई चुनौती के रूप में डीपफेक से फर्जी तस्वीरें बना कर इंटरनेट के सामाजिक मंचों पर साझा करने की प्रवृत्ति उभरी है। डीपफेक दरअसल कृत्रिम मेधा के जरिए किसी और के चेहरे पर किसी और का चेहरा चिपका कर नकली तस्वीर बनाने की विकसित कर ली गई एक तकनीक है।
पिछले दिनों इस विधि से कुछ फिल्मी अभिनेत्रियों की भोंडी तस्वीरें बना कर सोशल मीडिया पर प्रसारित की गई थी, जिसे लेकर उन्होंने गंभीर आपत्ति दर्ज कराई थी। उस पर चर्चा चली तो प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी भी इसी तरह की गरबा करते एक तस्वीर फैलाई गई थी। डीपफेक की बढ़ती प्रवृत्ति पर उन्होंने चिंता जाहिर की थी।
अब केंद्रीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इस तरह की तस्वीरें जारी किए जाने को लेकर गंभीरता दिखाई है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने सोशल मीडिया मंचों को संचालित करने वाली कंपनियों के साथ बैठक की और उन्हें ऐसी गतिविधियों की पहचान करने, उन पर रोक लगाने के उपाय तलाशने को कहा। मंत्री ने इसके लिए जल्द ही नए कानून बनाने की भी घोषणा की है।
दरअसल, डीपफेक ही नहीं, पूरी कृत्रिम मेधा को लेकर रचनात्मक काम करने वालों में गहरी चिंता और क्षोभ देखा जा रहा है। इससे बौद्धिक संपदा में खुली सेंधमारी होने, फर्जी सूचनाओं, तस्वीरों और रचनात्मक, संवेदनशील विधाओं में भोंडी नकल की अराजकता पसरने का खतरा महसूस किया जाने लगा है। बहुत सारे लोग इसका रोजगार पर भी बुरा असर भांप रहे हैं।
हालांकि कृत्रिम मेधा के चलन को पूरी तरह रोकने की हिमायत नहीं की जा सकती, क्योंकि विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में बदलती जरूरतों के मद्देनजर इसकी उपयोगिता असंदिग्ध कही जा सकती है। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इससे नई क्रांति की उम्मीद की जा रही है। मगर रचनात्मक कामों में इसका दुरुपयोग बड़े पैमाने पर शुरू हो चुका है। एक फर्जी और नकली रचनात्मक संसार पसरने लगा है। इसका सबसे अधिक दुरुपयोग समाज में विकृति पैदा करने वाले कर रहे हैं। इसलिए इस पर तत्काल लगाम लगाना वक्त की जरूरत है।
किसी भी तकनीक का विकास इस मंशा से नहीं किया जाता कि समाज और मानव जीवन को विकृत किया जा सके, विद्रूप रचा जा सके। मगर कुत्सित और उपद्रवी मानसिकता के लोग उनका दुरुपयोग कर ऐसा माहौल बनाने का प्रयास करते ही हैं। कानून के भय से ही उन पर अंकुश लगाया जा सकता है।
जब कृत्रिम मेधा को लेकर इतने बड़े पैमाने पर आशंकाएं जताई जा रही हैं और उसके दुरुपयोग के शुरुआती प्रभाव समाज पर दिखने शुरू हो गए हैं, तो निस्संदेह सरकार से इसके लिए एक प्रभावी नियामक तंत्र विकसित करने और कंपनियों को जवाबदेह बनाने की अपेक्षा की जाती है। अच्छी बात है कि सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्दी ही इसे लेकर समग्र रूप से व्यावहारिक कानून आएंगे, जिससे हर तरह की आशंका का शमन संभव हो सकेगा।