पर्यावरण विज्ञानी जलवायु परिवर्तन से बढ़ते वैश्विक ताप के खतरे बार-बार रेखांकित करते रहते हैं। मगर उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में जिस तरह गर्मी और लू ने कहर बरपाना शुरू किया है, उससे इस बात की जरूरत रेखांकित हुई है कि इसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए व्यावहारिक उपाय बहुत जरूरी हैं।

उत्तर प्रदेश के बलिया में जिला अस्पताल में लू लगने से करीब छप्पन लोगों की मौत और अनेक के गंभीर रूप से बीमार हो जाने की खबर ने भय का माहौल बना दिया है। हालांकि अस्पताल प्रशासन का कहना है कि लू लगने की वजह से केवल दो लोगों की मौत हुई, बाकी लोगों की मौत की वजह दूसरी हैं।

मगर इससे इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि जिन लोगों में पहले से मधुमेह, हृदय संबंधी परेशानी आदि हो, उन्हें अगर लू लग जाए, तो उनकी तकलीफ बढ़ जाती है। इसका समय रहते उपचार न हो पाए तो वह जानलेवा साबित होता है। लू लगने से न केवल निर्जलीकरण खतरनाक साबित होता है, बल्कि तंत्रिका तंत्र को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर देता है। इसलिए अस्पताल प्रशासन छोटी-मोटी तकनीकी वजहों का हवाला देकर इस अव्यवस्था पर परदा नहीं डाल सकता।

कुदरत के मिजाज को एकदम से बदलना किसी के वश की बात नहीं होती। वह केवल उससे बचाव के उपायों पर अमल कर सकता है। ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि लू से बचाव के तरीके ग्रामीण लोगों को नहीं पता होते। मगर इस मौसम में उन्हें काम की वजह से बाहर निकलना मजबूरी हो जाती है, तभी वे लू आदि की चपेट में आ जाते हैं।

शादी-विवाह में शामिल होने, खेती-किसानी के काम या फिर किसी व्यावसायिक वजहों से उन्हें इस तपती गरमी में भी घर से बाहर निकलना ही पड़ता है। ग्रामीण इलाकों में लू की मार इसलिए भी अधिक पड़ती है कि वहां खुला इलाका होता है। वे इससे बचाव के भी यथासंभव उपाय करते ही हैं। मगर गांवों में ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है, जिन्हें पेड़ों के नीचे दिन गुजारना पड़ता है। जिनके पास पक्की छतें हैं, उनके घरों में बिजली की समुचित आपूर्ति न हो पाने से उन्हें पंखे तक की हवा नसीब नहीं हो पाती। ऐसे लोगों को लू लगने की आशंका बहुत रहती है, लगती भी है।

मगर इससे भी त्रासद स्थिति तब हो जाती है, जब लू लगने के बाद लोग अस्पताल पहुंचें और वहां उन्हें समुचित उपचार उपलब्ध न हो सके। सरकारी अस्पतालों की हालत किसी से छिपी नहीं है। जब सामान्य दिनों में उनके पास रोगों के लक्षण जांचने, उनका उपचार उपलब्ध कराने की जरूरी व्यवस्था नहीं होती, तो जिस मौसम में बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है, वहां क्या हाल होता होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है।

बिस्तरों, चिकित्सकों, परिचारकों, जांच उपकरणों, दवाओं आदि की भयानक कमी की स्थिति में मरीजों का दबाव झेल पाना अस्पतालों के वश की बात नहीं रह जाती। जब लू लगने जैसी स्थिति से निपटने में कोई अस्पताल इस कदर असहाय देखा जाता है, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि संक्रामक बीमारियों के फैलने पर वह कैसे काबू पा सकता होगा। उत्तर प्रदेश सरकार विकास के रोज नए कीर्तिमान रचने के दावे करती है, मगर वहां जब लू लगने से इलाज के अभाव में इतने सारे लोग मर जा रहे हों, तो फिर उस विकास का क्या मतलब।