वक्त के साथ सभ्य होती दुनिया में मनुष्य ने अपनी जीवन-स्थितियों को जहां ज्यादा से ज्यादा मानवीय बनाने की कोशिश की है, वहीं नकारात्मकता और मानव समाज को नुकसान पहुंचाने वालों के प्रति भी कई बार नरम रुख अख्तियार किया है। इसकी वजह यह है कि विपरीत हालात में भी इंसान में सुधरने की उम्मीद कायम रहती या फिर बाकी समाज को वैसा ही बनने से बचाने की मंशा होती है।
मगर आज भी कई ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जिनसे पता चलता है कि अभी सभ्यता का सफर अधूरा है और मौजूदा दौर में भी बर्बरता कई रूपों में दुनिया के सामने आ जाती है। मसलन, अफगानिस्तान के वार्दाक प्रांत में गजनी के एक फुटबाल स्टेडियम में जमा हजारों लोगों के बीच गुरुवार को सार्वजनिक तौर पर दो लोगों को मौत की सजा दी गई।
दोनों दोषियों पर अलग-अलग हमलों में दो लोगों की हत्या करने का आरोप था और तालिबान के सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें दोषी पाया था। सन 2021 में सत्ता पर कब्जा जमाने के बाद से अब तक तालिबान चार लोगों को इसी तरह सार्वजनिक रूप से सजा दे चुका है।
प्रथम दृष्टया इसे किसी देश के कानून के मुताबिक दी जाने वाली सजा और उसका आंतरिक मामला मान सकते हैं। अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को जिस रूप में देखा-जाना जाता है, उसमें किसी अपराधी को सार्वजनिक प्रदर्शन के साथ मौत की सजा देना कोई हैरानी नहीं पैदा करता है।
मगर जिस दौर में समूची दुनिया में आम लोगों के मानवाधिकारों और सभी स्तरों पर लोकतंत्र के विस्तार के लिए आवाजें उठ रही हैं, जेलों में बंद अपराधियों तक के मानवाधिकारों की वकालत की जा रही है, यहां तक कि मौत की सजा पाए दोषियों को सजा देने के कम दर्दनाक तरीके खोजे जा रहे हैं, वैसे में हजारों लोगों के जमावड़े के बीच बर्बर तरीके से सजा-ए-मौत दिए जाने को अमानवीय ही कहा जाएगा।
यह सही है कि हत्या के अपराधी को उचित सजा मिलनी चाहिए, लेकिन अगर उसके लिए कानूनी तौर पर मृत्युदंड भी तय किया गया हो, तो किसी उत्सव की तरह हजारों लोगों के जमावड़े के बीच उसका सार्वजनिक प्रदर्शन किसी सभ्य और लोकतांत्रिक समाज का लक्षण नहीं कहा जा सकता है।