दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर 2020) के जीडीपी के आंकड़े इस बात का संकेत दे रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था अब संकट के दौर से निकलने लगी है। अभी राहत की बात सिर्फ इतनी ही है कि पहली तिमाही के मुकाबले दूसरी तिमाही में गिरावट का प्रतिशत उल्लेखनीय रूप से कम रहा। पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में 23.9 फीसद की गिरावट दर्ज की गई थी, वहीं दूसरी तिमाही में यह प्रतिशत घट कर साढ़े सात अंक पर आ गया। गिरावट की रफ्तार का कम पड़ना बता रहा है कि औद्योगिक गतिविधियां अब जोर पकड़ने लगी हैं।
हालांकि तमाम रेटिंग एजेंसियों और वित्तीय संस्थानों को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि हालात तेजी से सुधरने लगेंगे, इसीलिए रेटिंग एजेंसियों के अनुमान हालात की गंभीरता को कहीं ज्यादा आंक रहे थे और दूसरी तिमाही में गिरावट की दर दस फीसद से ऊपर रहने की बात कर रहे थे। लेकिन दूसरी तिमाही के आंकड़ों ने इन्हें गलत साबित करते हुए अर्थव्यवस्था में जोश पैदा किया है।
इससे इतनी उम्मीद तो बंधी है कि तीसरी तिमाही के आंकड़े दूसरी से बेहतर नहीं, तो कम भी नहीं रहेंगे। संतोषजनक यह है कि कृषि क्षेत्र, विनिर्माण क्षेत्र और बिजली क्षेत्र के प्रदर्शन ने अर्थव्यवस्था में जान फूंकने में बड़ा योगदान दिया। हालांकि कृषि क्षेत्र की स्थिति पहली तिमाही में भी अच्छी रही थी और यही एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा, जिसमें वृद्धि दर शून्य से ऊपर ही बनी रही।
दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था में सुधार का बड़ा कारण यह रहा कि पूर्णबंदी का दौर लगभग खत्म हो जाने से व्यापारिक गतिविधियों ने जोर पकड़ा। अक्तूबर में त्योहारी मांग निकलने से बाजारों में तेजी रही। वाहनों और उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री में तेजी आई। इन सबका असर दूसरे उद्योगों पर भी पड़ा। कच्चे माल की आपूर्ति से लेकर उत्पादन तक की प्रक्रिया में उद्योग एक दूसरे पर निर्भर होते हैं।
इसलिए बिजली, गैस, जलापूर्ति जैसे क्षेत्रों में 4.4. फीसद की वृद्धि दर्ज की गई। विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि भले 0.6 फीसद रही हो, लेकिन यह महत्त्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि पहली तिमाही में इसमें उनतालीस फीसद से ज्यादा की गिरावट आई थी। कारखानों और फैक्ट्रियों के चक्के चल जाने से इन पर निर्भर छोटे उद्योगों में भी फिर से जान आ गई है। अर्थव्यवस्था और उद्योगों की रीढ़ माने जाने छोटे और लघु उद्योगों का खड़ा होना बहुत जरूरी है, क्योंकि बड़े उद्योगों को ज्यादातर कच्चा माल यही तैयार करके देते हैं।
लेकिन दूसरी तिमाही के आकंड़ों से हमें खुश होकर बैठ नहीं जाना है। असल चुनौतियां बरकरार हैं। सुधार के संकेत सिर्फ कुछ ही क्षेत्रों से आए हैं। सबसे चिंताजनक तो यह है कि अर्थव्यवस्था में चालीस फीसद तक योगदान करने वाले सेवा क्षेत्र की हालत खस्ता बनी हुई है। दूसरी तिमाही में सेवा क्षेत्र में दस फीसद से ज्यादा की गिरावट रही।
जाहिर है, पर्यटन व इससे जुड़े कारोबार, संचार व अन्य सेवाओं में मांग अभी ठंडी पड़ी है। रीयल एस्टेट क्षेत्र की हालत भी खराब ही है। संकट अभी यह है कि बड़ी संख्या में लोगों के पास काम-धंधा नहीं है। पूर्णबंदी के दौरान जिन लोगों की नौकरियां चली गईं, उन्हें फिर से काम मिल नहीं रहा। असंगठित क्षेत्र के कामगारों की हालत तो और बुरी है।
लोगों के पास रोजमर्रा के खर्च के पैसे भी नहीं हैं। महंगाई ने कमर तोड़ कर रख दी है। ऐसे में कैसे मांग में तेजी आएगी, यह बड़ा सवाल है। कहने को सरकार ने प्रोत्साहन पैकेज दिए हैं, लेकिन जब तक लोगों के हाथ में नगदी नहीं आएगी, तब तक आर्थिकी के चक्र को चला पाना आसान नहीं होगा।