चंडीगढ़ नगर निगम मेयर का चुनाव निर्वाचन प्रणाली में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हो चुका है। सर्वोच्च न्यायालय ने उस चुनाव में मतपत्रों को गलत तरीके से निरस्त करने और एक हारे हुए पक्ष के प्रत्याशी को मेयर घोषित करने पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संविधान की आधारभूत संरचना का हिस्सा है। इसे सुनिश्चित कराना जरूरी है।

गौरतलब है कि चंडीगढ़ मेयर के चुनाव में पीठासीन अधिकारी ने कुछ मतपत्रों पर खुद निशान लगा कर उन्हें निरस्त कर दिया था। वह सारा वाकया कैमरे में भी दर्ज हुआ था। इस तरह मनमानी और धोखाधड़ी करके सरेआम किसी पार्टी के प्रत्याशी को हराने और किसी पार्टी के प्रत्याशी को विजयी घोषित करने का यह पहला प्रत्यक्ष प्रमाण था। इस पर सर्वोच्च न्यायालय की नाराजगी स्वाभाविक थी।

मगर चुनावों में मत चोरी और धोखाधड़ी कोई नई बात नहीं है। पहले जब मतपत्रों के जरिए मतदान होते थे, तब कई जगह दबंगों के मतपेटी लूटने और उन्हें अपने पक्ष के मतपत्रों वाली पेटी से बदल देने की घटनाएं खूब हुआ करती थीं। उसे रोकने के लिए मतदान मशीनों का इस्तेमाल शुरू हुआ। दावा किया गया कि इससे मतदान में पारदर्शिता आएगी और किसी भी प्रकार की गड़बड़ी की आशंका दूर होगी।

मगर अब तो मतदान मशीनों पर भी गंभीर शक जाहिर किया जाने लगा है। विपक्षी दल मतपत्रों के जरिए मतदान कराने या फिर मतदान मशीन को त्रुटिपूर्ण बनाने की मांग कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि मतदान मशीनों को बाहर से संचालित किया जा सकता है। इस तरह सत्ताधारी दल दूसरे दलों के मतों को हटा कर अपने पक्ष में मतों की संख्या बढ़ा लेता है।

विपक्षी दलों का दावा है कि उनके पास इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं। कुछ जगहों पर मतगणना के बाद मतदाता सूची पर अंकित मतों और मतदान मशीन से निकले मतों में अंतर भी देखा गया है। इस तरह अब निर्वाचन आयोग की निष्ठा पर भी सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में यह सवाल अब बड़ा बन चुका है कि सर्वोच्च न्यायालय के इस कथन का पालन कैसे हो कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हों।

चुनाव लोकतंत्र की आत्मा है। अगर वही प्रश्नांकित होने लगा है, तो लोकतंत्र की अवधारणा धुंधली होगी ही। फिर तो लोगों के मतों का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा, जो मतों को अपने पक्ष में कर सकेगा, वही सत्ता में बना रहेगा।

चंडीगढ़ की घटना ने चुनाव प्रक्रिया पर उठ रहे सवालों को और गहरा किया है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित पीठासीन अधिकारी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की सलाह दी है। मगर सवाल पूरी चुनाव प्रणाली को पारदर्शी बनाने का है। अगर बड़ी संख्या में राजनीतिक दलों को वर्तमान चुनाव प्रक्रिया पर संदेह है और आम मतदाता भी इसे लेकर सशंकित हैं, तो इसके निराकरण का उपाय होना ही चाहिए।

चंडीगढ़ मेयर के चुनाव में तो बहुत कम मतपत्र थे, मगर जब उसमें धांधली करने की कोशिश की गई, तो बड़े पैमाने पर पड़ने वाले मतों में अगर इसी तरह हेराफेरी होने लगे, तो वह लोकतंत्र पर घातक प्रहार साबित होगा। मगर निर्वाचन आयोग इसे लेकर अब भी गंभीर नजर नहीं आता। उसे लोकतंत्र के पहले पायदान पर ही पारदर्शिता लाने के असीमित संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं, अगर वह उनका इस्तेमाल करे, तभी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का भरोसा कायम हो सकता है।