तकनीक अपने आप में एक निरपेक्ष संसाधन है, जिसका मकसद मनुष्य के जीवन को ज्यादा सुविधाजनक बनाना रहा है। ज्यों-ज्यों इसका विस्तार होता गया, इसके बहुस्तरीय लाभ भी देश-दुनिया को मिले। मगर इसके समांतर ज्यादातर तकनीकों तक कुछ ऐसे लोगों के हाथ भी पहुंचे, जिन्होंने न सिर्फ उसे अवैध या गलत तरीके से कमाई और ठगी का जरिया बनाया, बल्कि आम लोगों के सामने कई तरह के जोखिम भी पैदा किए हैं। आज ज्यादातर लोग अपने बहुत सारे दस्तावेजी कामकाज के साथ-साथ आर्थिक लेनदेन के लिए डिजिटल माध्यमों का उपयोग करते हैं।

डिजिटल माध्यमों में हर वक्त सावधान रहने की मजबूरी हो गई

निश्चित रूप से यह कई मायनों में सुविधाजनक है, लेकिन अब साइबर अपराध का दायरा इस कदर फैलता जा रहा है कि डिजिटल माध्यमों का उपयोग करने वालों के लिए हर वक्त सावधान रहने की मजबूरी खड़ी हो गई है। यों साइबर सेंधमारी सरकारों तक के लिए चुनौती बन गई है, लेकिन भारत में इंटरनेट को ठगी और वेबसाइट या ईमेल हैक करने से लेकर भयादोहन तक का जैसा जरिया बना लिया गया है, वह कई स्तरों पर चिंता पैदा कर रहा है।

भारत में वैश्विक औसत की तुलना में सेंधमारी की घटनाओं में करीब दोगुनी बढ़ोतरी

गौरतलब है कि देश के राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक ने रविवार को एक कार्यक्रम में कहा कि भारत की साइबर दुनिया में वैश्विक औसत की तुलना में सेंधमारी की घटनाओं में करीब दोगुनी बढ़ोतरी देखी गई है। यह स्थिति तब है जब सरकार से लेकर निजी क्षेत्र तक, सभी ओर से कामकाज के लिए डिजिटल माध्यमों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाता और इसे सुरक्षित बनाने के तमाम इंतजाम करने के दावे किए जाते हैं।

पिछले दस महीनों में औसतन 1.54 अरब अमेरिकी डालर के लिए साइबर हमला

मगर हकीकत यह है कि आम लोगों से अलग-अलग तरीकों से साइबर ठगी करने की तो दूर, बेहद सुरक्षित तकनीकी दीवार के भीतर माने जाने वाले अनेक सरकारी संस्थानों से लेकर कुछ बैंकों की वेबसाइटों तक पर बड़े साइबर हमले हो चुके हैं। रोजाना न जाने कितने लोग ऐसे ठगों का शिकार होते हैं और कितनी रकम खातों से उड़ाई जाती है। आंकड़ों के मुताबिक, पिछले दस महीनों में औसतन 1.54 अरब अमेरिकी डालर के लिए साइबर हमला किया गया। इन हमलों में 2022 के बाद से दोगुनी बढ़ोतरी हो गई है। ये वे मामले हैं, जिनके खिलाफ औपचारिक शिकायत दर्ज कराई गई। ऐसी तमाम सेंधमारी और ठगी की घटनाएं होती हैं, जिनमें साधारण लोग इसका शिकार होते हैं, मगर वे कई वजहों से शिकायत दर्ज नहीं करा पाते।

सवाल है कि अगर आम जनजीवन में सुविधा के लिए चलन में लाई गई कोई तकनीक इस कदर असुरक्षित हो गई है कि इसके इस्तेमाल को लेकर हर वक्त भयग्रस्त और सावधान रहना पड़ता है तो इसे एक आम व्यवस्था बनाने के प्रयासों को कैसे देखा जाए। ऐसी खबरें भी आती रहती हैं कि अवांछित समूहों द्वारा कई तरह से आम लोगों के निजी ब्योरे को कहीं से हासिल करके उसकी खरीद-बिक्री की जाती और इस तरह व्यक्ति की निजता का हनन करने से लेकर साइबर अपराध की भूमिका रची जाती है।

यह ध्यान रखने की जरूरत है कि भारत में अभी साइबर दुनिया की सुरक्षा की दीवार पुख्ता नहीं है और इंटरनेट की दुनिया में आंकड़ों की हेराफेरी से लेकर ठगी तक के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। दूसरे देशों में भी इंटरनेट के उपयोग को पूरी तरह सुरक्षित नहीं कहा जा सकता है। जाहिर है, तकनीक के इस सुविधाजनक दिखते संसार को साइबर सेंध से अभेद्य बनाना दुनिया के तमाम देशों के सामने एक बड़ी चुनौती है।