देश में लंबे समय से कुपोषण की समस्या बहस के केंद्र में रही है और सरकारें समय-समय पर इसे दूर करने के लिए कदम भी उठाती रही हैं। इस समस्या को दूर करने के मकसद से कमजोर तबकों के लोगों के लिए सस्ती दर पर या फिर मुफ्त अनाज मुहैया कराया जाता रहा है। इसी क्रम में जरूरतमंद आबादी को अतिरिक्त पोषक तत्त्वों से युक्त यानी फोर्टिफाइड चावल देने की योजना भी है।
सरकार का उद्देश्य विकास की राह में कुपोषण की बाधा को दूर करना
जाहिर है, सरकार का उद्देश्य विकास की राह में कुपोषण की बाधा को दूर करना और आम लोगों की सेहत में सुधार करना है। मगर इस चावल को लेकर कुछ चिंताएं उभरी हैं और कुछ स्थितियों में इससे नुकसान होने की आशंका जाहिर की गई है। इसी मसले पर दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में केंद्र सरकार को खाद्य सुरक्षा और मानक खाद्य पदार्थों का सुदृढ़ीकरण कानून के तहत उठाए गए सभी कदमों के बारे में अवगत कराने का निर्देश दिया है। इसके अलावा, अदालत ने कहा कि अतिरिक्त पोषणयुक्त चावल की थैलियों पर अंकित की गई जानकारियों में यह सलाह भी दी जानी चाहिए कि यह ‘सिकल सेल रक्ताल्पता’ और थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों के लिए हानिकारक है।
गौरतलब है कि खाद्य सुरक्षा से जुड़े कानून के तहत सूक्ष्म पोषण वाले लौह-तत्त्व से भरपूर भोजन की हर थैली पर यह स्पष्ट रूप से अंकित होना चाहिए कि थैलेसीमिया रोग से पीड़ित लोगों को चिकित्सीय देखरेख में रखा जा सकता है और सिकल सेल रक्ताल्पता का सामना कर रहे लोगों को लौह तत्त्व से युक्त फोर्टिफाइड खाद्य उत्पादों का सेवन न करने की सलाह दी जाती है।
कुछ बीमारियों में यह चावल हानिकारक भी है
दरअसल, चावल, दूध और नमक जैसे रोजमर्रा के उपयोग वाले प्रमुख खाद्य पदार्थों के पोषण स्तर में सुधार करने के मकसद से इनमें रासायनिक या सिंथेटक विटामिनों, यानी लौह तत्त्व, आयोडीन, जिंक, विटामिन ए और विटामिन डी जैसे प्रमुख पोषक तत्त्वों और खनिजों को मिलाया जाता है। कुपोषण की व्यापक समस्या का सामना करने के मामले में इससे काफी मदद मिलने की संभावना जताई गई है। लेकिन याचिका में वैज्ञानिक सबूतों का हवाला देते हुए इस बात पर चिंता जाहिर की गई है कि कुछ चिकित्सीय स्थितियों से पीड़ित लोगों के लिए आयरन-फोर्टिफाइड चावल विपरीत असर करता है। इसलिए इस बारे में आम लोगों को स्पष्ट रूप से जानकारी दी जानी चाहिए और इस संबंध में कानूनी व्यवस्था भी यही है।
इसमें दो राय नहीं कि अतिरिक्त पोषण से युक्त चावल आम लोगों को देने के पीछे सरकार का मकसद एक बड़े तबके के बीच पसरी कुपोषण की समस्या को दूर करना रहा है। इस गंभीर समस्या को दूर करने के लिए अलग-अलग स्तर पर उठाए गए कदमों में से यह भी एक है। लेकिन अगर इस तरह के चावल को लेकर विशेषज्ञों की ओर से कोई आशंका जताई गई है तो उस पर भी विचार किया जाना चाहिए।
आखिर किसी अनाज में अतिरिक्त पोषक तत्त्व शामिल करने के पीछे सरकार का उद्देश्य भी आम लोगों के बीच व्यापक कुपोषण की समस्या को दूर करना और सेहत को बेहतर करना ही है। हालांकि कई बार ऐसा होता है कि एक ही रसायन, खनिज या पोषक तत्त्व किसी कमजोर सेहत वाले के लिए फायदेमंद होता है तो वही किसी खास बीमारी का सामना कर रहे व्यक्ति के शरीर पर विपरीत असर डाल सकता है। इसलिए अगर स्वास्थ्य की किसी परेशानी के दायरे में आने वाले लोगों को ऐसा अनाज सेवन न करने की सलाह पहले ही दी जाए तो एक अन्य समस्या के गहराने से बचा जा सकता है।