इस तरह एक महीने से अधिक समय से दोनों के बीच चल रहा चूहे-बिल्ली का खेल समाप्त हो गया। पंजाब सरकार अब अपने कंधे थपथपा रही है कि उसने शांति भंग करने वालों पर नकेल कसने में कामयाबी हासिल की है। जबकि अमृतपाल ने कहा कि उसने आत्मसमर्पण किया है।
अमृतपाल पिछले करीब छह महीने से ‘वारिस पंजाब दे’ नामक संगठन के जरिए खालिस्तान के समर्थन में लोगों को उकसा रहा था। इस बात के भी प्रमाण उजागर थे कि उसे ब्रिटेन में बैठे खालिस्तान समर्थकों से मदद मिल रही थी। पंजाब में अपना जनाधार मजबूत करने के लिए अमृतपाल ने गुरुग्रंथ साहब की आड़ ली और सिख धर्म की रक्षा का नारा बुलंद किया था।
इस तरह उसने अच्छी संख्या में युवाओं को अपने साथ खड़ा कर लिया था। उसकी ताकत तब समझ में आई जब उसके एक समर्थक को पुलिस की गिरफ्त से छुड़ाने के लिए बड़ी संख्या में लोगों ने हथियारबंद होकर अजनाला थाने पर हमला कर दिया था। आखिरकार उसके उस समर्थक को छोड़ना पड़ा था। मगर अमृतपाल तभी से पंजाब पुलिस की नजर में चढ़ गया था। अजनाला की घटना के बाद वह इतना उद्दंड हो गया था कि खुलेआम केंद्र सरकार और केंद्रीय गृह मंत्रालय को चुनौती देने लगा था।
आखिरकार केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पंजाब पुलिस को उसकी गिरफ्तारी में मदद की और पुख्ता रणनीति के तहत उसे पकड़ने की कोशिश की गई। मगर पुलिस को चकमा देकर अमृतपाल भाग निकला और करीब पैंतीस दिनों तक छिपता फिरा। फिर पंजाब के मोगा जिले के रोडे गांव के गुरुद्वारे में उसके होने की सूचना मिली और बिना किसी कवायद के वह पकड़ा गया।
अमृतपाल के सभी प्रमुख समर्थक पकड़े जा चुके हैं। इस तरह उसके पकड़े जाने के बाद अब खालिस्तान के समर्थन में भड़काई जा रही चिनगारी के शांत पड़ जाने की उम्मीद की जा रही है। पंजाब सरकार ने भी चेतावनी दी है कि जो भी राज्य में शांति भंग करने का प्रयास करेगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा। पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है और वहां सुरक्षा-व्यवस्था के मामले में किसी भी तरह की कोताही किसी बड़ी आतंकी साजिश को हवा दे सकती है।
ऐसे में अमृतपाल वहां अलगाववादी आंदोलन भड़काने की कोशिश कर रहा था, फिर भी पंजाब पुलिस उस तरह सख्ती बरतती नजर नहीं आई थी, जैसी अपेक्षा की जाती है। क्या वजह थी कि अजनाला थाने पर हमले के बाद भी उसे निर्भय घूमते रहने का मौका दिया गया और वह पत्रकारों को साक्षात्कार दे रहा था।
फिर जब पुलिस अमृतपाल को पकड़ने के लिए सक्रिय हुई, तब भी वह कैसे पुलिस घेरे के भीतर से भाग निकला, इस सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिल सका है। पैंतीस दिनों तक वह लुकाछिपी का खेल खेलता रहा। कभी कहीं किसी सीसीटीवी में वह नजर आ जाता, तो कभी कहीं। जबकि उसे पकड़ने के लिए केंद्रीय सुरक्षाबल और पंजाब पुलिस मिल कर तलाशी अभियान चला रहे थे।
कैसे उस तक पहुंचने में उनका खुफिया तंत्र इतने समय तक नाकाम रहा। अच्छी बात है कि अमृतपाल की गिरफ्तारी के बाद पंजाब में किसी तरह का बड़ा उपद्रव नहीं हुआ। इससे यह स्पष्ट है कि अमृतपाल का कोई बड़ा जनाधार था भी नहीं। मगर इसका अर्थ यह नहीं कि पंजाब सरकार को इतने भर से संतोष कर लेना चाहिए। सतत निगरानी रखनी पड़ेगी कि उसकी सुलगाई चिनगारी फिर न धधकने पाए।