किसी देश की अर्थव्यवस्था का आकलन इस बात से भी किया जाता है कि वहां की मुद्रा का मूल्य क्या है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी साख कैसी है। हालांकि कारोबार या अन्य स्थितियों में आने वाले उतार-चढ़ाव की वजह से कुछ समय के लिए मुद्रा की कीमतों पर असर पड़ सकता है, लेकिन अगर यह स्थिति ज्यादा वक्त तक बनी रहती है तो वह देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाली एक कारक बन जाती है।
इस लिहाज से देखें तो भारतीय रुपए की कीमत में गिरावट का जो रुख बना हुआ है, वह चिंता की बात है और इसमें सुधार के लिए कोई रास्ता तत्काल निकालने की जरूरत है। गौरतलब है कि सोमवार को डालर के मुकाबले रुपए के मूल्य में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई, जिसके तहत रुपया 83.29 प्रति डालर तक नीचे आ गया।
यों ‘इंटरबैंक फारेन करंसी एक्सचेंज’ बाजार में अमेरिकी डालर के मुकाबले रुपए में इस उल्लेखनीय गिरावट के लिए कच्चे तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी को जिम्मेदार बताया जा रहा है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय बाजार में दूसरी मुद्रा की तुलना में डालर मजबूती के रुख पर है। इसका सीधा असर रुपए पर पड़ा है।
कहने को भले आर्थिक स्थिति में लगातार बेहतरी का दावा किया जा रहा हो, लेकिन रुपए में गिरावट से कई आशंकाएं भी खड़ी हो रही हैं। दरअसल, मुद्रा के लगातार ऐसी स्थिति में बने रहने के नतीजे में अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीदें कमजोर और मंदी की संभावनाएं भी खड़ी होने लगती हैं। हाल ही में सामने आए आंकड़े के मुताबिक देश में आयात और निर्यात, दोनों ही मोर्चे पर गिरावट दर्ज हुई है और एक तरह से इस मामले में निराशा हाथ लगी है। इसका स्वाभाविक असर रुपए की कीमत पर देखा जा रहा है। पिछले हफ्ते जारी सरकारी आंकड़ों में बताया गया कि अगस्त में भारत का निर्यात 6.86 फीसद घटकर 34.48 अरब डालर रह गया है।
जबकि बीते वर्ष इसी महीने यह आंकड़ा 37.02 अरब डालर का था। इसी तरह आयात में भी गिरावट आई और यह 5.23 फीसद घट कर 58.64 डालर रह गया। साल भर पहले इसी दौरान यह 61.88 अरब डालर का दर्ज किया गया था। किसी देश की मुद्रा की कीमत मांग और आपूर्ति पर आधारित होती है। वैश्विक पूंजी बाजार में जिस मुद्रा की ज्यादा मांग होगी, उसकी कीमत भी अधिक होगी। हालांकि अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां कई बार मुद्रा की कीमतों पर असर डालती हैं, लेकिन यह पहले से ही आर्थिक मोर्चे पर संघर्ष कर रहे देशों को प्रभावित करती है।
दुनिया में व्यापार के मामले में चूंकि अमेरिकी डालर एक खास जगह रखता है, इसलिए रुपए की कीमत में गिरावट को मुख्य रूप से इसी कसौटी पर आंका जाता है। फिलहाल, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के साथ-साथ रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध की वजह से कारोबार पर असर पड़ा है। मगर केवल इसी कारण को रुपए के कमजोर होने के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता।
आमतौर पर किसी भी देश की मुद्रा में गिरावट आना कई अन्य स्थितियों पर भी निर्भर करता है। मसलन, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में सिकुड़न आने या खरीदारी कम होने का सीधा असर मुद्रा की कीमतों पर भी पड़ता है। इसका मुख्य कारण लोगों की क्रय शक्ति घटना होता है, जिसके चलते निवेश भी प्रभावित होता है। ऐसे में अगर रोजगार के अवसर कमजोर होते हैं, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस सबका कुल नतीजा मुद्रा की तस्वीर पर और क्या पड़ सकता है!