बढ़ती आर्थिक चुनौतियों के बीच जब व्यापारिक गतिविधियों को गति देना चुनौती बना हुआ है, भारत ने अपनी नई विदेश व्यापार नीति जारी कर दी है। इसमें अगले सात सालों में निर्यात को दो हजार अरब डालर तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया गया है। इसे संतुलित बनाए रखने के लिए यह भी रेखांकित किया गया है कि वस्तुओं के निर्यात पर अधिक जोर होना चाहिए, ऐसा न हो कि केवल सेवाओं के निर्यात को प्रश्रय मिले।

अभी तक विदेश व्यापार नीति हर पांच साल पर जारी की जाती रही है, मगर यह पहली बार है, जब इसकी कोई अवधि निर्धारित नहीं की गई है। बदलती वैश्विक परिस्थितियों के मुताबिक इसमें बदलाव करने की नीति अपनाई गई है। यानी व्यापार नीति को खासा लचीला बना दिया गया है। स्वाभाविक ही, इससे व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में कुछ गति आने की उम्मीद बनी है।

यों, पहले ही सरकार व्यापार संबंधी नियमों को काफी लचीला बना चुकी है, जिससे निर्यात में अनेक जटिलताएं दूर हो चुकी हैं। इसी के चलते कोरोना काल में जब व्यापारिक गतिविधियां ठहर-सी गई थीं, भारत आर्थिक झंझावातों से जल्दी बाहर निकल आया। मगर आयात के मुकाबले निर्यात को बढ़ाना अब भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है।

पिछले महीने आए आंकड़ों के मुताबिक भारत का व्यापार घाटा कुछ कम हुआ है और अगले दो-तीन सालों में इसके और कम होने की उम्मीद जताई गई है। दरअसल, पिछले चार-पांच सालों में भारत का निर्यात लगातार कम होता गया है। इसके मुकाबले आयात बढ़ा है। इस तरह व्यापार घाटा बढ़ते हुए चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया था। फिर सरकार ने व्यापार घाटा कम करने पर ध्यान केंद्रित किया और उसके सकारात्मक नतीजे पिछले महीने देखने को मिले। मगर उसमें ऐसा भी नहीं कि निर्यात की दर बढ़ गई, बल्कि पिछले सालों की तुलना में कुछ कम ही हुई थी, मगर आयात में कमी करने की वजह से व्यापार घाटा कम दर्ज हुआ था।

इस तरह निर्यात की दर बढ़ाने को लेकर नए सिरे से रणनीति बनाने की जरूरत लगातार रेखांकित की जा रही थी। नई व्यापार नीति के जरिए इसमें उत्साह पैदा करने का प्रयास किया गया है। अनुमान है कि चालू वित्तवर्ष में निर्यात 765 अरब डालर का होगा। पिछले वित्तवर्ष में 676 अरब डालर का हुआ था। हालांकि इस रफ्तार से भी निर्यात बढ़ता रहा, तो अगले सात सालों में इसके दो हजार अरब डालर तक पहुंचना आसान बात नहीं होगी।

नई विदेश व्यापार नीति में उन देशों में निर्यात बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जहां डालर की पहुंच कमजोर हुई है या जो डालर के बजाय अपनी मुद्रा में व्यापार करने को इच्छुक हैं। भारत डालर के बजाय रुपए में व्यापार बढ़ाने पर जोर दे रहा है। वैसे भी दुनिया के कई देश अब वाणिज्य-व्यापार में डालर की बाध्यता से मुक्त होना चाहते हैं। रूस और चीन परस्पर व्यापार को युआन में करने पर जोर दे रहे हैं।

मगर अभी विकासशील देशों के लिए डालर के चक्र से बाहर निकलना इतना आसान नहीं है। भारत चाहे तो रूस और चीन के साथ इस मामले में कुछ मुक्त हो सकता है। बाकी देशों में वह किस तरह अपना तंत्र बनाता है, देखने की बात होगी। मगर असल चुनौती है कि कैसे दुनिया के बाजार में भारतीय उत्पाद के लिए जगह तलाशी और बढ़ाई जाए। इसके लिए दूतावासों को और सक्रिय करने की बात है।