कड़ी रस्साकशी के बाद ब्रिटेन के जनमत संग्रह का जो नतीजा आया वह यूरोपीय संघ के लिए बड़ा झटका है। इससे यूरोप ही नहीं, बाकी दुनिया भी हैरान और किसी हद तक चिंतित भी है। जनमत संग्रह में ब्रिटेन के करीब बहत्तर फीसद मतदाताओं ने हिस्सा लिया, जो कि 1992 के बाद किसी भी आम चुनाव के मुकाबले मतदाताओं की सबसे ज्यादा भागीदारी थी। बावन फीसद ने यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के पक्ष में वोट दिए। बहुमत की इस राय का सम्मान करते हुए ब्रिटेन को यूरोपीय संघ की सदस्यता छोड़नी होगी। इसी के साथ जनमत संग्रह के और क्या-क्या असर होंगे, इसको लेकर अनुमान व विश्लेषण का दौर शुरू हो गया है।

जनमत संग्रह के परिणाम का एक असर तो फौरन यह आया कि डेविड कैमरन ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि रायशुमारी का प्रधानमंत्री पद पर उनके बने रहने या न रहने से कोई ताल्लुक नहीं था, लेकिन चूंकि कैमरन चाहते थे कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ का सदस्य बना रहे और इसके लिए उन्होंने अभियान भी चलाया था, इसलिए अपनी हार मानते हुए उन्होंने त्यागपत्र देना ही ठीक समझा। इस्तीफे की दूसरी वजह यह होगी कि अब ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से अलग होने की प्रक्रिया शुरू करनी होगी, जिसे कैमरन संपन्न कराएं यह बहुत विचित्र होगा। इसलिए उन्होंने कंजरवेटिव पार्टी के किसी और नेता के लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी खाली कर दी। सवाल है कि क्यों कंजरवेटिव तथा लेबर पार्टी समेत ब्रिटेन के सारे राजनीतिक दल जनमत संग्रह के विषय पर बंटे हुए थे, और क्यों इस देश के आधे से अधिक लोगों ने यूरोपीय संघ को ना कह दिया। जनमत संग्रह का नतीजा वैश्वीकरण में निहित पूूंजी तथा श्रम के अंतर्विरोध को ही रेखांकित करता है।

अट्ठाईस सदस्यीय यूरोपीय संघ इस अवधारणा पर वजूद में आया कि पूंजी, वस्तुओं, सेवाओं तथा लोगों की मुक्त आवाजाही होनी चाहिए। पूरे यूरोप में मुक्त व्यापार या बाजार के एकीकरण की वजह से यूरोपीय संघ वैश्वीकरण का अग्रदूत माना गया। पर इसी के साथ यह भी हुआ कि यूरोप के अपेक्षया कम संपन्न देशों से अधिक संपन्न देशों की तरफ आव्रजन तेजी से बढ़ा। ब्रिटेन के बहुत सारे लोगों को लग रहा था कि मुक्त आवाजाही के चलते उनके देश में काम-धंधे के लिए बाकी यूरोप से लोगों के आने का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है, जिससे खुद उनके लिए रोजगार के मौके कम हो रहे हैं। यूरोपीय संघ में रहते हुए ब्रिटेन न अपनी सीमाएं नियंत्रित कर सकता है न वर्क परिमट जैसा प्रावधान लागू कर सकता है जैसा कि गैर-यूरोपीय लोगों की बाबत लागू है।

इस बात को लेकर भी नाराजगी थी कि यूरोपीय संघ की सदस्यता के कारण नियमन के ढेर सारे कायदे थोप दिए गए हैं जो खासकर छोटे व मझोले उद्योगों के लिए बोझ साबित हो रहे हैं; ब्रिटेन को काफी रकम यूरोपीय संघ की सदस्यता के नाते देनी पड़ती है, पर बदले में कोई खास फायदा नहीं दिखता। पर यूरोपीय संघ की सदस्यता के फायदे भी थे। मसलन, ब्रिटेन का अधिकांश व्यापार बाकी यूरोप से होता है, और उसके अपने लोगों को भी यह सुविधा हासिल थी कि यूरोप में कहीं भी बिना वीजा के आए-जाएं औरकाम करें। फिर, उन्हें यूरोपीय संघ के अंतरराष्ट्रीय समझौतों का भी लाभ मिलता था और यूरोप की सम्मिलित राजनीतिक हैसियत का भी। जाहिर है, इस जनमत संग्रह का नतीजा ब्रिटेन के लिए जोखिम भरा भी साबित हो सकता है।