हाल में एक अध्ययन में यह सामने आया है कि ऊर्जा संबंधी मोर्चे पर भारत को नए संकट से दो चार होना पड़ सकता है। यह संकट सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा की घटती क्षमता को लेकर है। अध्ययन पुणे स्थित भारत उष्णदेशीय मौसम संस्थान के वैज्ञानिकों ने किया है। चिंता की बात ज्यादा इसलिए है कि भारत ऊर्जा संकट की मार पहले ही से झेल रहा है। जीवाश्म र्इंधन पर निर्भरता कम करने के लिए अक्षय ऊर्जा को प्राथमिकता दी जा रही है।

ऐसे में अगर सौर और पवन ऊर्जा की क्षमता में कमी आती है तो गैर परंपरागत ऊर्जा को बढ़ावा देने की दिशा में जो प्रयास चल रहे हैं, उन्हें धक्का लग सकता है। अध्ययन बताता है कि देश की सौर और पवन ऊर्जा क्षमता में कमी आने की मूल वजह जलवायु परिवर्तन में छिपी है। यानी हमें जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से भी तेजी से निपटना है। हालांकि जलवायु संकट से सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया बेहाल है और इसके खतरों को समझ भी रही है। लेकिन भारत के लिए जलवायु संकट भी इसलिए बड़ा मसला है कि हमारी एक नहीं बल्कि कई समस्याओं की जड़ें भी इसी में हैं।

अध्ययन बताता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा की क्षमता में यह कमी देश के उत्तरी हिस्से में ज्यादा आ सकती है। इसका कारण उत्तर भारत में मौसमी बदलाव और हवा की गति कम रहना होगा। इससे सौर और पवन ऊर्जा की क्षमता प्रभावित होगी। जबकि ओड़ीशा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे तटीय राज्यों में यह संकट नहीं होगा। इन राज्यों में मौसमी हवाओं का प्रवाह अच्छा रहने की संभावना से पवन ऊर्जा की क्षमता बढ़ भी सकती है। लेकिन सौर ऊर्जा के मामले में ऐसा नहीं लगता।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भारत के ज्यादातर भूभाग पर सौर विकिरण की मात्रा में कमी आएगी। जाहिर है, ऐसे में सौर ऊर्जा संयंत्रों के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। गौरतलब है कि उत्तर भारत का बड़ा इलाका गंगा का मैदानी क्षेत्र है। इसके अलावा हिमालयी क्षेत्र भी यहां के बड़े हिस्से को छूता है। जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले कुछ सालों में हिमालयी क्षेत्र में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। ऋतु चक्र भी गड़बड़ा गया है। पहाड़ी क्षेत्रों में बारिश और बाढ़ की तीव्रता बढ़ी है। और इन सबका असर मैदानी क्षेत्र की जलवायु में बदलाव के रूप में देखने को मिल रहा है।

ऐसे अध्ययन हमें सचेत करते हैं। अगर जलवायु संकट हमारे लिए नई-नई समस्याएं खड़ी कर रहा है तो हमें एक नहीं, बल्कि दो-दो मोर्चों पर काम करना पड़ेगा। गैर परंपरागत ऊर्जा परियोजनाओं की समीक्षा तो करनी ही होगी, साथ ही जलवायु संकट से निपटने के लिए भी प्रयासों में तेजी लानी होगी। इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि हर जगह सौर ऊर्जा या पवन ऊर्जा परियोजनाएं शत-प्रतिशत कामयाब शायद न हों।

इसके अलावा हमें हर क्षेत्र में ऐसी प्रोद्योगिकी अपनानी होगी जो जलवायु परिवर्तन से पैदा होने वाले हालात से तालमेल बैठा सके। भारत के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती जीवाश्म र्इंधन के इस्तेमाल को तेजी से घटाने की है। इसके साथ ही सौर ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देना है। हालांकि ऐसा कहना भी सही नहीं होगा कि गैर परंपरागत ऊर्जा के क्षेत्र में कुछ भी काम नहीं हुआ, लेकिन हकीकत यह है कि हमें जितनी तेजी से इस दिशा में बढ़ना चाहिए, उसमें हम अभी बहुत पीछे हैं।