जनसत्ता 26 सितंबर, 2014: मंगलवार को दिल्ली के चिड़ियाघर में जिस तरह बाड़े में गिर पड़ा बाईस साल का एक युवक बाघ का शिकार बना, उससे कई सवाल उठे हैं। सही है कि युवक अपनी ही लापरवाही के चलते बाड़े में गिर पड़ा। लेकिन क्या यह केवल उस युवक की गलती थी? खबरों के मुताबिक वहां मौजूद किसी सुरक्षा गार्ड ने उसे मना किया था। फिर वह युवक कैसे बाड़े के घेरे की मुख्य दीवार के पहले खड़े किए गए अवरोध को पार कर गया और भीतर भी गिर पड़ा? क्या वह ऐसी जगह थी कि युवक की हरकत को देखते हुए उसे सिर्फ मना करके छोड़ दिया जाए? बात यहीं तक सीमित नहीं है। बाड़े में गिर जाने और मौत के रूप में बाघ के सामने खड़े होने के बावजूद उसे बचाने के लिए वक्त था। आमतौर पर बचाव दल अपनी ड्यूटी पर चौकस हो तो शेर या बाघ के बाड़े में किसी के गिरने या कूद जाने की हालत में उसके पास कुछ मिनट का मौका होता है। इस दौरान बाघ को बेहोश करने के लिए ट्रैंक्विलाइजर गन का भी इस्तेमाल किया जा सकता था। लेकिन दस मिनट से ज्यादा समय तक बाघ युवक के सामने खड़ा होकर उसे कौतूहल की नजर से देखता रहा, वहां खड़े बाकी दर्शक शोर मचाते रहे। कहते हैं, एक कर्मचारी ने बाघ को पुकार कर पीछे करने का जतन किया। पर शायद लोगों के शोर से घबरा कर बाघ ने युवक पर हमला कर दिया और मार डाला। जाहिर है, इस त्रासद घटना के लिए चिड़ियाघर की सुरक्षा-व्यवस्था में लगे कर्मचारी-अधिकारी अपनी जवाबदेही से पल्ला नहीं झाड़ सकते।
देश भर में रोजाना लाखों लोग कुछ खास अनुभवों की उम्मीद लिए चिड़ियाघरों में घूमने जाते हैं। इसलिए इन परिसरों में वन्यजीवों के मामले में पूरी तरह प्रशिक्षित लोगों को नियुक्त किया जाना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि ज्यादातर लोग ऐसी जगहों पर अपेक्षित संवेदनशीलता और परिपक्वता नहीं दिखा पाते हैं। प्राणी-उद्यानों में जंगली जीव-जंतुओं को देखने जाने वाले लोग कई बार ऐसी हरकतें करते हैं, जिनसे बाड़े में कैद होने के बावजूद पशु-पक्षियों को दिक्कत होती है। मनाही के निर्देश के बावजूद लोग अपनी उत्सुकता में जीव-जंतुओं को खाने-पीने की चीजें देते हैं, कई बार तंग भी करते हैं। ऐसे में किसी जानवर के आक्रामक हो उठने का अंदेशा बना रहता है। ऐसी स्थिति में फिलहाल उपाय यही है कि न केवल साधारण पशु-पक्षियों, बल्कि खासतौर पर खतरनाक जंगली जानवरों के बाड़े के आसपास के सुरक्षा-तंत्र और निगरानी में कोई चूक न हो, ताकि समय पर बचाव-दल को सक्रिय किया जा सके।
इस घटना ने चिड़ियाघरों के रखरखाव और प्रबंधन को लेकर चली आ रही व्यवस्था पर पुनर्विचार की जरूरत पेश की है। ऐसा लगता है कि केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण एक निष्प्रभावी निकाय बन कर रह गया है। यह बेवजह नहीं है कि कई विशेषज्ञ चिड़ियाघरों का प्रबंधन निजी-सार्वजनिक भागीदारी के तहत चलाने या फिर इसे निजी हाथों में सौंपने की वकालत करते हैं। उनके तर्क को अनदेखा नहीं किया जा सकता। चिड़ियाघरों की देखरेख और प्रबंधन वन विभाग के तहत आता है, पर इस जिम्मेदारी का वन विभाग के काम से कोई मेल नहीं है। यह ऐसा काम है जो अलग विशेषज्ञता की मांग करता है। इसलिए कई देशों ने इसमें दक्ष संस्थाओं को जिम्मेदारी सौंपी या उन्हें सहभागी बनाया है। भारत उनके अनुभवों से लाभ उठा सकता है।
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta