कारपोरेट क्षेत्र के लिए सरकार ने कर संबंधी राहत का जो पैकेज पेश किया है, वह कंपनियों को संकट से उबारने में कारगर साबित हो सकता है। लेकिन ये कदम कितने प्रभावी होंगे, इसका पता आने वाले दिनों में ही चलेगा। कारपोरेट क्षेत्र के लिए पिटारा खोलने का मकसद निवेश को बढ़ावा देना है, ताकि मांग-उत्पादन का चक्र तेजी से चले। घरेलू कंपनियां कारपोरेट करों की दरें घटाने के लिए लंबे समय मांग कर रही थीं। कंपनियों को अब तीस फीसद के बजाय बाईस फीसद कर देना होगा। उपकर और अधिभार मिला कर यह 25.17 फीसद बैठेगा। इसके अलावा कंपनियों को न्यूनतम वैकल्पिक कर यानी मैट से भी मुक्ति दे दी गई है। साथ ही, एक अक्तूबर से जो लोग नई कंपनियां शुरू करेंगे, उनके लिए भी सरकार की यह पहल एक बेहतर अवसर साबित हो सकती है। अगर सरकार की यह तरकीब कामयाब रहती है तो विदेशी निवेश की उम्मीद बढ़ सकती है। इस फैसले के पीछे एक बड़ी बात यह भी है कि चीन से कारोबार समेटने वाली कंपनियां भारत आएं और करों में रियायत का फायदा लेते हुए यहां निवेश करें।
अर्थव्यवस्था में लंबे समय से बनी सुस्ती तोड़ने के लिए पिछले एक महीने में सरकार ने कई बड़े कदम उठाए हैं। उद्योग जगत खासतौर से विनिर्माण उद्योग, ऑटोमोबाइल उद्योग और रीयल एस्टेट क्षेत्र गंभीर संकट का सामना कर रहा है। वैसे तो अर्थव्यवस्था के तकरीबन सभी क्षेत्र मंदी की मार से त्रस्त हैं, लेकिन विनिर्माण क्षेत्र और ऑटोमोबाइल क्षेत्र की मंदी का असर यह हुआ कि ज्यादातर कंपनियों को अपना उत्पादन बंद करने और कर्मचारियों की छंटनी करने जैसे कदम उठाने को मजबूर होना पड़ा। लाखों लोगों का रोजगार चला गया। इसीलिए हाल में सरकार ने शेयर बाजार से लेकर बैंकिंग क्षेत्र और कारपोरेट क्षेत्र तक के लिए ऐसे उपायों का एलान किया है जो अर्थव्यवस्था में फिर से जान फूंक सकें। बैंकिंग क्षेत्र को सत्तर हजार करोड़ रुपए देने, नीतिगत दरों में कटौती का फायदा उपभोक्ताओं को दिलवाने, विदेशी निवेशकों को अधिभार पर राहत देने, रीयल एस्सेट क्षेत्र के लिए रियायतें और चार सौ जगहों पर शिविर लगा कर कर्ज देने जैसे कदमों से बाजार में मांग बनने की उम्मीद जगती है।
सरकार को अब अर्थव्यवस्था की रीढ़ बने उन उद्योगों पर भी ध्यान देना होगा जो नोटबंदी और जीएसटी की मार से ठप हो गए हैं और जिन्हें बड़े प्रोत्साहनों की जरूरत है। रोजमर्रा के उपयोग में आने वाला सामान बनाने वाली कंपनियों तक की हालत खराब हो गई। हाल में कपड़ा और हथकरघा उद्योग ने लाखों लोगों के बेरोजगार होने की बात कहते हुए सरकार का ध्यान इस संकट की ओर खींचा था। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर घटती हुई पांच फीसद पर आ गई थी, जो पिछले छह साल में सबसे कम थी। लेकिन जुलाई में पेश आम बजट में कई ऐसे प्रावधान किए गए जो कंपनियों के लिए व्यावहारिक नहीं थे। हालांकि सरकार को उम्मीद थी कि नए बजट प्रावधान राजस्व बढ़ाने वाले होंगे। पर हकीकत में ऐसा हुआ नहीं और जीएसटी संग्रह लक्ष्य से काफी कम रहा। कारपोरेट करों की दर में कटौती से सरकारी खजाने पर करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा। लेकिन यह आज की बड़ी जरूरत भी है। कारपोरेट करों में कटौती से अगर कारखाने चल निकलते हैं तो निश्चित ही रोजगार भी बढ़ेगा। लेकिन पैकेज तात्कालिक उपाय हैं। जरूरत है ऐसी दीर्घकालिक नीतियों की जो उद्योगों को ठप होने से रोक सकें।