जनसत्ता 2 अक्तूबर, 2014: माना जाता है कि अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं के निर्णायकों से शायद ही कभी चूक होती है। पर दक्षिण कोरिया के इंचियॉन शहर में चल रहे एशियाई खेलों में कुछ निराश करने फैसले सामने आए हैं। खासतौर पर मंगलवार को भारतीय महिला मुक्केबाज सरिता देवी के साथ जो हुआ, वह निहायत अप्रत्याशित है। इस मैच के दौरान न केवल खेल विशेषज्ञ, बल्कि कोई साधारण दर्शक भी देख सकता था कि कैसे सरिता देवी ने अपनी प्रतिद्वंद्वी दक्षिण कोरिया की मुक्केबाज जीना पार्क को हर पहलू से कमजोर साबित किया था। उनके लगभग सभी पंच सटीक और दमदार थे, यहां तक कि उनके मुक्के से जीना घायल भी हो गर्इं। लेकिन आखिरकार इस मैच के जजों ने जीना को विजेता घोषित कर दिया और सरिता के हिस्से कांस्य पदक आया। इससे कुछ लोगों को कहने का मौका मिला कि इस मैच का नतीजा पहले से तय था। सही है कि खेल के नियमों के मुताबिक किसी मैच के रेफरी का फैसला अंतिम माना जाता है। लेकिन जिन नियमों के तहत रेफरी या जज अपना निर्णय देते हैं, अगर उन कसौटियों को ताक पर रख दिया जाए तो सवाल उठने लाजिमी हैं।
हो सकता है कि नतीजे से बेहद निराश सरिता के पदक वितरण के वक्त रो पड़ने, पदक लेने से मना करने या जीना को गले लगा कर पदक उनके हाथ में देकर चले जाने को उनका अति-भावुक व्यवहार माना जाए। लेकिन सच यह है कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता के मैदान में उतरा खिलाड़ी लंबे प्रशिक्षण से गुजर कर वहां पहुंचता है। इस क्रम में वह संबंधित खेल के सभी नियम-कायदों, बारीकियों से खूब अच्छी तरह से वाकिफ हो चुका होता है। इसलिए सरिता के क्षोभ और उनकी प्रतिक्रिया को समझा जा सकता है। एक बड़ी विडंबना तब सामने आई जब इस फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए सरिता ने पत्रकारों और अपने साथियों की मदद से जरूरी पांच सौ डॉलर की राशि भी जमा कर ली, लेकिन भारतीय ओलंपिक संघ ने उनसे अपना पल्ला झाड़ लिया। यह हमारे खिलाड़ियों के प्रति भारतीय खेल के कर्ताधर्ताओं के घोर उपेक्षापूर्ण रुख को दर्शाता है।
भारत की स्टार मुक्केबाज मैरीकॉम के बाद सरिता देवी दूसरी ऐसी खिलाड़ी हैं, जिनका जीवन अभावों और संघर्षों से भरा रहा है। मुक्केबाजी के प्रति उनकी दीवानगी को देखते हुए उनके माता-पिता और पति ने भी उनका भरपूर साथ दिया। अपने दो बच्चों से अलग से रह कर उन्होंने कड़ा अभ्यास जारी रखा और ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों सहित कुछ अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत के लिए कई स्वर्ण और रजत पदक जीते। लेकिन शानदार रिकॉर्ड वाली सरिता की वाजिब शिकायत के पक्ष में खड़े होने की हिम्मत भारतीय ओलंपिक संघ नहीं जुटा सका। दूसरी ओर, इसी आयोजन में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय मुक्केबाज मैरीकॉम ने साफ तौर पर कहा कि सरिता के साथ अन्याय हुआ है और इसी का प्रतीकात्मक बदला लेने के लिए मैं स्वर्ण पदक जीतना चाहती थी; यह पदक मेरे तीन बच्चों के साथ-साथ सरिता को भी समर्पित है। आइबा यानी अंतरराष्ट्रीय बॉक्सिंग संघ ने पदक स्वीकार न करने पर सरिता देवी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की बात तो की है, मगर उसने मुकाबले के फैसले को लेकर उठे सवालों पर विचार करने की जरूरत नहीं समझी। यह प्रकरण एशियाई खेलों के इतिहास में एक शोचनीय प्रसंग के रूप में ही याद किया जाएगा।
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