इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि देश भर में जिन कुछ परीक्षाओं को सबसे पुख्ता इंतजामों के बीच कराए जाने और उनकी गुणवत्ता के लिए जाना जाता रहा है, आज धांधली या फिर पहले ही प्रश्न-पत्रों के बाहर आ जाने की लगातार घटनाओं के बीच उनकी विश्वसनीयता को गहरी चोट पहुंच रही है। इन परीक्षाओं का आयोजन कराने वाली एजंसी की साख इस तरह गिर चुकी लगती है कि अब उसकी क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं। सवाल है कि अगर यह स्थिति पिछले काफी समय से निरंतर बनी हुई है, तो इसके लिए किसकी जिम्मेदारी बनती है।
गौरतलब है कि बुधवार को हुई विश्वविद्यालय अनुदान आयोग-नेट परीक्षा में कई स्तर पर हुई गड़बड़ी के संकेत मिलने के बाद केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने उसे रद्द करने की घोषणा कर दी। दरअसल, परीक्षा के अगले ही दिन यूजीसी को गृह मंत्रालय के भारतीय साइबर अपराध कोआर्डिनेशन केंद्र से परीक्षा में गड़बड़ी होने के स्पष्ट संकेत मिले थे। अब मंत्रालय ने परीक्षा रद्द करने के साथ-साथ इसकी जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआइ को सौंप दी है।
जाहिर है, अब समूचे मामले की जांच की प्रक्रिया चलेगी, लेकिन कितने दिनों में उसका नतीजा क्या आएगा, किसे कठघरे में खड़ा किया जाएगा, क्या कार्रवाई होगी, गड़बड़ी से बचाव के क्या इंतजाम किए जाएंगे, इसे लेकर कोई स्पष्टता शायद ही सामने आए! यूजीसी-नेट की परीक्षा में हुई गड़बड़ी इस तरह का कोई पहला मामला नहीं है। देश में अलग-अलग राज्यों में स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर चिकित्सा और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं के दौरान गड़बड़ी या प्रश्न पत्रों के पहले ही बाहर आ जाने की घटनाएं पिछले कुछ समय से लगातार सुर्खियों में रही हैं।
यह तब है, जब इन परीक्षाओं में शामिल होने वाले विद्यार्थियों को परीक्षा केंद्र में प्रवेश के पहले बहुस्तरीय और बारीक जांच की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और किसी भी तरह की संदिग्ध वस्तु अंदर ले जाने की छूट नहीं होती। इसके बावजूद परीक्षा के प्रश्न पत्र कुछ आपराधिक तत्त्वों के हाथ लग जाते हैं और उनका संजाल ऊंची रकम लेकर इन्हें अभ्यर्थियों को बेचता है। जब एनटीए और संबंधित महकमों की ओर से हर स्तर पर चौकसी बरतने और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाने का दावा किया जाता है, तब इतनी गंभीर गड़बड़ी कैसे संभव हो पाती है?
अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि हाल ही में जब नीट की परीक्षा में धांधली की खबर सामने आई, तब केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने पहले उससे इनकार कर दिया था। मगर बाद में जब इस मामले में कुछ माफिया की गिरफ्तारी हुई, तब जाकर यह कहा गया कि कुछ गड़बड़ी हुई है। सवाल है कि धांधली की खबरें आने के बाद उस पर उचित कार्रवाई सुनिश्चित कराने के बजाय उसे नजरअंदाज करने, पर्दा डालने या फिर उस पर राजनीति की कोशिशों को कैसे देखा जाएगा!
जिन परीक्षाओं में लाखों विद्यार्थी एक उम्मीद लेकर तैयारी करते हैं, उनके प्रश्न पत्रों को बाहर निकाल कर लाखों विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले माफिया या आपराधिक तत्त्वों की पहुंच कैसे परीक्षाओं के आयोजन से जुड़े उस तंत्र तक हो जाती है, जो पूरी पारदर्शिता और सख्ती के साथ परीक्षा आयोजित कराने का दावा करता है? बीते कुछ समय से जिस तरह लगातार इन परीक्षाओं में धांधली की घटनाएं सामने आ रही हैं, उसमें इनकी विश्वसनीयता को लेकर कैसी राय बनेगी और इसके लिए किसकी जवाबदेही तय की जाएगी?