जनसत्ता 30 सितंबर, 2014: सभी बच्चों को कम से कम माध्यमिक तक शिक्षा मुहैया कराने का राष्ट्रीय उद््देश्य शुरू से संविधान का हिस्सा रहा है। पर यह कानूनी बाध्यता तभी बना, जब शिक्षा अधिकार अधिनियम संसद से पारित हुआ। इस कानून के तहत जहां सभी बच्चों का नामांकन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकारों पर डाली गई, वहीं स्कूलों में बुनियादी ढांचे से लेकर शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात समेत शैक्षणिक गुणवत्ता के पैमाने भी तय किए गए। इन कसौटियों को पूरा करने में तमाम राज्य सरकारें नाकाम रही हैं। पर राजस्थान सरकार तो एकदम उलटी दिशा में चल पड़ी है। सार्वजनिक शिक्षा-व्यवस्था की खामियों को दूर करने के बजाय उसने सरकारी स्कूलों को बंद करने की शुरुआत कर दी है। राज्य के सत्रह हजार से ज्यादा स्कूलों को अव्यावहारिक और आर्थिक बोझ मानते हुए बंद करने का आदेश दिया गया है। हालांकि तकनीकी तौर पर इसे दूसरे स्कूलों में ‘विलय’ का नाम दिया गया है, लेकिन सच यही है कि इन स्कूलों का वजूद अब नहीं रहेगा। यह राजस्थान के कुल स्कूलों का बाईस फीसद है। इसका सीधा असर राज्य के उन लाखों बच्चों पर पड़ेगा, जो इन स्कूलों में पढ़ते हुए थोड़ा ही सही, अपने बेहतर भविष्य के सपने पाल रहे थे। एक आकलन के मुताबिक जिन स्कूलों का विलय किया जाएगा, उनमें पढ़ने वाले सत्तर फीसद और कई स्कूलों के सौ फीसद बच्चे स्कूल जाना छोड़ देंगे। दरअसल, कई दलित बस्तियों में चलने वाले स्कूलों का विलय दबंग जातियों के क्षेत्रों में चलने वाले स्कूलों में कर दिया गया। यह किसी से छिपा नहीं है कि ग्रामीण इलाकों में ऊंची कही जाने वाली जातियों के लोगों का व्यवहार कमजोर सामाजिक तबकों के साथ कैसा होता है। देश के दूसरे हिस्सों सहित राजस्थान से भी दलितों के साथ भेदभाव और उन पर अत्याचार की घटनाएं सामने आती रही हैं। राजस्थान सरकार का नया फैसला उनके बच्चों को स्कूल जाने से हतोत्साहित करेगा।

यह फैसला शिक्षा अधिकार कानून के प्रावधानों का उल्लंघन भी है। कानून जहां एक किलोमीटर के भीतर स्कूल की व्यवस्था की बात करता है, वहीं इस विलय के बाद कई स्कूलों की दूरी तीन किलोमीटर तक हो गई। दलील यह पेश की गई है कि नए निर्णय से आरटीइ कानून के उस प्रावधान को पूरा करने में मदद मिलेगी, जिसमें तीस बच्चों पर एक शिक्षक के अपेक्षित अनुपात की बात कही गई है। सवाल है कि इसके लिए शिक्षकों के खाली पदों को भरने और फिर भी कसर रह जाए तो नए पद सृजित करने का रास्ता क्यों नहीं चुना गया? जो स्कूल विलय के नाम पर बंद कर दिए गए, वे शिक्षा की सुविधा के विस्तार के तकाजे से ही खोले गए थे। तब से राजस्थान की आबादी भी बढ़ी है और शिक्षा का कानून भी लागू है। वसुंधरा राजे सरकार ने इन दोनों बातों को नजरअंदाज कैसे कर दिया? सभी जानते हैं कि निजी स्कूल इतने महंगे हैं कि सबको पुसा नहीं सकते। जिन इलाकों में सरकारी स्कूल बंद होंगे, वहां निजी स्कूलों के लिए बेलगाम कमाई का एक और सुनहरा मौका होगा। ऐसे में जिन परिवारों की आर्थिक दशा ठीक नहीं होगी, स्वाभाविक रूप से उनके बच्चे शिक्षा से वंचित होंगे। इन हालात में शिक्षा अधिकार कानून के तहत इस व्यवस्था का क्या होगा जो छह से चौदह साल के सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा की गारंटी देती है?

 

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