बरसात में मच्छरों के काटने से पैदा होने वाले डेंगू, जापानी बुखार और मलेरिया आदि रोग जैसे सालाना चक्र बन गए हैं। अकेले दिल्ली में अमूमन हर साल डेंगू से दर्जनों लोग मौत की भेंट चढ़ जाते हैं। हर बार बरसात शुरू होने के पहले इन परेशानियों से पार पाने के लिए अस्पतालों को सावधान रहने को कहा जाता है, मगर स्थिति में कोई सुधार नजर नहीं आता। इस साल अब तक दिल्ली में डेंगू के एक सौ अट्ठावन मामले दर्ज हो चुके हैं। एक महिला की मृत्यु भी हुई है।

इसी तरह मलेरिया के इक्कीस मामले उजागर हुए हैं। विचित्र है कि इन बीमारियों से निपटने के लिए जहां व्यावहारिक कदम उठाए जाने चाहिए, राजनीतिक दल एक-दूसरे पर दोषारोपण कर राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास करते देखे जाते हैं। अभी कांग्रेस के नेता आम आदमी पार्टी की सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि वह मच्छर-जनित बीमारियों की रोकथाम के लिए समुचित उपाय नहीं कर रही। हालांकि इससे पहले कांग्रेस सरकार के समय इस समस्या ने कम भयावह रूप नहीं अख्तियार किया था।

डेंगू, जापानी बुखार, मस्तिष्क ज्वर, मलेरिया जैसी बीमारियों की वजह छिपी नहीं है। डेंगू के मच्छर साफ पानी में पैदा होते हैं और मलेरिया, मस्तिष्क ज्वर आदि के गंदे पानी में। इसे लेकर विज्ञापनों, सार्वजनिक अपीलों आदि के जरिए लोगों में जागरूकता फैलाने के प्रयास भी होते हैं, पर वे कारगर साबित नहीं हो पाते। खुले में साफ पानी का जमाव होने देने को लेकर जुर्माने की भी व्यवस्था है, हर बरसात में कुछ लोगों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई भी की जाती है। पर स्थिति नहीं सुधरती।

कुछ समस्याओं पर काबू पाने के लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ जनभागीदारी भी जरूरी होती है। मच्छर-जनित बीमारियों की रोकथाम में दोनों मोर्चों पर लापरवाही दिखती है। कचरे का उचित निस्तारण न हो पाना, नालियों में कचरा भरे होने के कारण गलियों में कई दिन तक बरसात का पानी जमा रहना, मुहल्लों में मच्छररोधी दवाओं का नियमित छिड़काव न हो पाना आदि मच्छरों के पनपने के मुख्य कारण हैं। साफ-सफाई की जरूरत को तो खूब रेखांकित किया जाता है, पर हकीकत यह है कि नगरपालिकाएं जल-निकासी का समुचित प्रबंध नहीं कर पातीं।

बरसात में अक्सर पानी के दबाव से नालियां फट जाती हैं, उनके ढक्कन उखड़ जाते हैं, पर उन्हें सुधारने में महीनों लग जाते हैं। ऐसे में स्वाभाविक रूप से मच्छर पैदा होते रहते हैं। फिर जब इनके काटने से बीमारियां भयावह रूप ले लेती हैं तो उनकी पहचान और उपचार के पर्याप्त साधन न होने से लोग दम तोड़ने लगते हैं। दिल्ली में कुछ ही सरकारी अस्पतालों में डेंगू की जांच और उसके इलाज की व्यवस्था है। मजबूरन लोगों को निजी अस्पतालों की शरण में जाना पड़ता है। जब दिल्ली का यह हाल है तो दूरदराज के इलाकों में स्थिति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। जब सरकारें मच्छरों की बढ़वार रोकने जैसी समस्या से निपटने में इस कदर शिथिल हैं, तो गंभीर बीमारियों को लेकर उनसे क्या उम्मीद की जाए!