कुछ समय पहले आई एक खबर के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में पचास वर्ष की उम्र के बाद तलाक के मामलों में दोगुनी बढ़ोतरी हुई। अकेले इंदौर शहर में जनवरी, 2023 के बाद करीब पौने दो वर्ष के भीतर करीब ढाई सौ मामले सामने आए। तलाक हमारे समाज में कोई असामान्य बात नहीं है, लेकिन अगर चालीस या पचास वर्ष साथ रहने के बाद पति और पत्नी के बीच ऐसी नौबत आ रही हो तब यह बात थोड़ी अचंभित करने वाली जरूर है। जब इन मामलों का विश्लेषण किया गया तो पता चला कि ‘घोंसला सिंड्रोम’ यानी ‘खाली घर’ उम्रदराज पति-पत्नी के बीच तलाक की बड़ी वजह है।

ज्यादातर मामलों में इन बुजुर्गों के बच्चों के बाहर दूर किसी शहर में या फिर विदेश में बस जाने या फिर बच्चों का मां-पिता का साथ छोड़ देने की वजह से बुजुर्ग पति-पत्नी को दुख और अकेलेपन का सामना करना पड़ता है और उससे उपजी पीड़ा को झेलना पड़ता है। अकलेपन के कारण उनकी दिनचर्या में आने वाले नोकझोंक तलाक तक पहुंच जा रहे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि ज्यादातर मामलों में तलाक सहमति से हो रहे है।

इसी संदर्भ में देखें तो दूसरी खबर अमेरिका से आई, जिसमें ‘फ्रेंड होर्डिंग’ नाम के नए चलन वहां के समाज में देखे जा रहे हैं। इस ‘फ्रेंड होर्डिंग’ का मतलब यह है कि लोग अपने दोस्त को दूसरे दोस्तों से नहीं मिलने दे रहे हैं। इसकी वजह यह बताई गई कि लोगों में कई तरह का असुरक्षाबोध और दोस्तों को खोने का डर है। हालांकि लोगों का मानना है कि दोस्ती में असुरक्षा और डर एक सामान्य मानवीय भाव हैं, लेकिन आधुनिक दौर की जीवनशैली और सोशल मीडिया के प्रभाव से और यह लगातार गहरा होता गया है।

लोगों में कहीं न कहीं यह डर भी है कि दोस्त के खोने से उनके जीवन में अकेलापन आ जाएगा। दूसरी तरफ, अपने दोस्त को दूसरे दोस्त के न मिलने देने की वजह से भी कुछ लोग अकेलेपन के शिकार हो रहे हैं। यह स्थिति अभी भारत में नहीं आई है, लेकिन खासतौर पर शहरों में जैसे हालात पैदा हो रहे हैं, उसमें इसकी संभावना बहुत ज्यादा हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि अब ज्यादातर रिश्ते आभासी मंचों पर ही तय किए और निभाए जा रहे हैं।

मौजूदा दौर में वर्तमान समाज में संबंधों के मामले में सबसे ज्यादा बदलाव की वजह तेजी से बढ़ता-पसरता अकेलापन है। इंसान ने तकनीक का आविष्कार अपने फायदे और सुविधा के लिए किया है, लेकिन आभासी दुनिया के चलते समाज में ज्यादातर अभौतिक बदलाव की दिशा नकारात्मक है। इंटरनेट पर लोग अलग-अलग समूहों से जुड़े हुए जरूर नजर आते हैं, लेकिन इस तरह के जुड़ाव का कोई ठोस आधार नहीं होता हैं।

ये जुड़ाव केवल चंद ‘लाइक’ और हल्की-फुल्की टिप्पणियों तक ही सीमित रहते हैं। अमेरिकी साइकेट्रिक एसोसिएशन की एक रपट के अनुसार, अमेरिका में हर तीसरा व्यक्ति अकेलापन का शिकार है। यह आंकड़ा युवाओं में अधिक है और तेजी से बढ़ रहा है। भारत के युवाओं के बीच भी यह समस्या तेजी से पांव पसार रही है।

हालांकि इस समस्या की गंभीरता को चिह्नित और विश्लेषित किया गया है और इस अकेलेपन के कारण उत्पन्न प्रभाव को कम करने के प्रयास भी हो रहे हैं। इसी तरह के एक प्रयोग की खबर अमेरिका से आई, जिसमें ‘प्रोजेक्ट गैदर’ को अपनाया गया है। इस प्रयास में लोग सामूहिक भोज का आयोजन कर रहे हैं, जिसमें अपने समूह के लोगों को उनके बचपन में भोजन प्रिय थे, उसी को भोज में शामिल किया जाता है।

इससे न केवल सामूहिकताबोध में मजबूती आती है, बल्कि भावनात्मक स्तर पर भी लोग एक दूसरे से जुड़ते हैं। इसका मकसद भी यही है। इस तरह बचपन का पसंदीदा भोजन परोसने के पीछे यह भी सोच है कि इसके बहाने हम अपनेी-अपनी दादी-नानी और मां को याद कर पाएंगे, क्योंकि बचपन में हमारी पसंद का खयाल वही रखती थीं। स्वाद की यह साझा संस्कृति उन्हें खुशी दे रही है और लोग आपस में जुड़ कर बेहतर महसूस कर रहे हैं। इसी तरह के एक अन्य प्रयास का नाम ‘कनेक्शन कल्चर’ रखा गया है। वहां के लोगों का मानना है कि अकेलेपन से जीत इसी तरह के प्रयासों से मिलेगी।

भारत में भी अकेलेपन से निजात पाने के लिए इस तरह की कई कोशिश हो रही हैं। इसमें एक प्रयास केरल के कोट्टायम के करीब हो रहा है, जहां एक साथ आसपास दो कमरों के कई घर बनाए गए हैं, जिनमें किसी घर में रसोईघर नहीं हैं। इनमें ज्यादातर बुजुर्ग पति-पत्नी डाक्टर, इंजीनियर और अन्य पेशे से जुड़े रहे हैं। इन घरों के समूह के सिद्धांत हैं- ‘अपना काम खुद करें और जो असमर्थ हैं, सब उनकी मदद करें’। खाना बनाने के लिए दो रसोइए का इंतजाम किया गया। मन बहलाने के लिए कई स्तर पर अच्छा-खासा इंतजाम किया गया है।

अब महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि इस तरह की स्थितियां क्यों बन रही हैं। आज का मनुष्य, जो अपने आप को सबसे ज्यादा आधुनिक समझ रहा है, उसे इस इस समस्या का कितना अहसास है। सच यह है कि तकनीक की दुनिया में गुम होते जा रहे ज्यादातर लोग इस पर गौर नहीं कर पा रहे हैं कि उनकी जिंदगी किस अंधेरे की ओर बढ़ रही है। वे शायद आधुनिकता के मतलब को नहीं समझ पा रहे है। आधुनिकता का मतलब सामूहिकता से है, न कि गंभीरता और निजता के नाम पर बढ़ रहे ऐसे अकेलेपन से, जो भीतर ही भातर इंसान को खोखला कर दे या फिर खा जाए। इस बात को सबको समझने की जरूरत हैं, खासकर युवाओं को।