किसी भी विवाद का हल संवाद के सहारे और मिल-बैठ कर निकाला जा सकता है। मगर दिल्ली विश्वविद्यालय के भीमराव आंबेडकर कालेज में जो हुआ, उसे किसी भी सूरत में उचित नहीं ठहराया जा सकता। गौरतलब है कि कालेज की अनुशासन समिति की बैठक में छात्र संघ की एक पदाधिकारी ने सार्वजनिक रूप से शिक्षक से दुर्व्यवहार किया। सवाल है कि पुलिस की उपस्थिति में छात्रा के भीतर यह दुस्साहस कहां से आया कि उसने समस्या पर संवाद करने के बजाय प्रोफेसर पर थप्पड़ चला दिया।

इसके बाद स्वाभाविक ही दिल्ली विश्वविद्यालय को जांच समिति बनानी पड़ी और कालेज की ओर से भी पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। छात्र संघ की पदाधिकारी के रूप में छात्रा अगर विद्यार्थियों की समस्याएं लेकर कालेज में गई थी, तो क्या उसका समाधान किसी से दुर्व्यवहार करना हो सकता है? ऐसा करने वाली छात्रा को क्या यह ध्यान रखने की जरूरत नहीं थी कि वह एक विद्यार्थी के साथ-साथ छात्र संगठन में अहम दायित्व निभा रही है?

उसे इस बात का अहसास क्यों नहीं हुआ कि उसका यह व्यवहार उसे हर तरह से कठघरे में खड़ा करता है। अगर उसके पास कोई समस्या या शिकायत थी, तो वह मामले को उच्च स्तर पर उठा सकती थी। शिक्षक पर हाथ उठा कर उसने न केवल कानून की परवाह नहीं की, बल्कि गुरु-शिष्य मर्यादा का भी उल्लंघन किया।

DUSU के संयुक्त सचिव ने अनुशासन समिति के संयोजक को मारा थप्पड़, भड़के शिक्षकों ने की जांच की मांग

बहरहाल, मामले के तूल पकड़ने के बाद छात्रा ने माना कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। सवाल है कि अपनी भूमिका के प्रति वह इतनी लापरवाह कैसे हो गई। आरोप-प्रत्यारोप में जो बातें कही गईं, उसकी सच्चाई जांच के बाद ही सामने आएगी। मगर इस हकीकत को दरकिनार नहीं किया सकता कि संबंधित शिक्षक कालेज की अनुशासन समिति के संयोजक होने के नाते छात्रों की समस्याओं का हल निकालने ही बैठे थे।

कालेज परिसर में ऐसी घटना बताती है कि शिक्षकों के प्रति सम्मान और विश्वास की कितनी कमी होती जा रही है। वहीं नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने और भविष्य में नेतृ्त्व देने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थियों को अपने व्यवहार को विवेक के साथ संयमित रखना चाहिए और खासतौर पर किसी समस्या के समय अपनी परिपक्वता का परिचय देना चाहिए।